SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 346
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण ८-६] मेंडकक विषयमें शंका समाधान ३२३ अद्यावधि हमारे जैन विद्वानोंने जैन जातियोंके इतिहास कि ४-५ विद्वान इसके लिये नियुक्त करें और वे स्थान का अन्वेषण कार्य बहुत ही कम किया है । इसमें भी श्वेता- स्थानमें भ्रमण कर प्रनिमालेखोंका संग्रह करें एवं हस्तम्बर समाजसे कुछ एतासम्बन्धी सामग्री प्रकाशित तो हुई लिम्वित ग्रन्थभंडागी मृचीनिर्माण के साथ साथ ग्रन्थहै पर दि० विद्वानोंका ध्यान तो अभी इस ओर गया ही रचना एवं लेग्वनी प्रशस्तियों का संग्रह करें। श्राशा है नहीं कह सकते हैं। जैन जातियोके इतिहासकी प्राचीन मेरे नम्र निवेदन पर वह शीघ्र ध्यान देगी। और दि. मामग्रीमे १ शिलालेख एवं २ प्रशस्तिसंग्रह घटनाके पम- ऐतिहासिक विद्वान जैन जातियों के प्राचीन इतिहास पर कालीन लिखित होनेसे अधिक उपादेय हैं, दि. समाज विशेष प्रकाश डलंगे। की ओरसे शिलालेखसंग्रहका काम थोडा सा हुआ है और का इतिधाम दर्गाशरणलाल जायसवाल का देखा तो प्रशस्तिसंग्रहका कार्य तो उससे भी कम हुआ है, अत: इन उममे जायमवाल जनिकी उत्पनि जेसलमेर के भाटी जैमलमे दोनों महा पूर्ण कार्योकी भोर दि० विद्वानोंको अतिशीघ्र बतलाई हैं जो मर्वथा भ्रमित है क्योकि जैमलमेकी स्थाध्यान देना चाहिये। अन्यथा दि.जातियोंका इतिहास अंधकार पना मं० १२१२ में हुई हैं और यमवाल जातिका मं० में ही पढा रहेगा। दि. समाजका परमावश्यक कर्तव्य है । रहगा । दि० समाजका परमावश्यक कत्तव्य है ११४५ का बकुंडकार जैन शालेग्ब उपलब्ध है अर्थात् जैनशिलालेखी एव प्रशस्तियांकी खोज में केवल जैनीका हौ * अग्रवाल और जायमवाल जाति दि. जेनांकी भी है और हित है यह नह। पर भारतीय इतिहाममे भी नया युगान्तर जेनेर ममा.में भी ये जाये है उनमेसे जायमबाल जा। उपस्थित होगा। मेंडककें विषयमें शंका-समाधान (ले०-श्री दौलतराम 'मित्र' ) अक्टोबर सन १८४० के अनेकान्तमें मैंने मेंडक हासिक नहीं किन्तु कल्पित जान पड़ती है ? के विषय में एक शंका उपस्थित करते हुए यह आशा इस शंकापर नीचे लिखे जवाब मेरे देखने में प्रकट की थी कि इसपर कोई सज्जन प्रकाश डालेंगे। आये शंका सिर्फ इतनी-मी थी कि जलचर पंचेन्द्रिय १ जनमित्र २०-२.४५ श्री० नेमीचन्दजी मिघई तिर्यञ्च सम्मूर्छन भी होते हैं, गर्भज भी होते है इंजिनियर नागपुर ।। (गो० जी० गाथा ७६ ) परन्तु इनमें से मेंडक वर्गक २ जनमित्र १०-२-१५ श्री०वीरचन्द कोदरजी गांधी प्राणी गर्भज हैं या सम्मन्छन या दोनों ही प्रकार की कल्टण । इसी लग्बमें मेंडकके सम्मूर्छन होने के प्रमाण देकर ३ अनेकान्त मई १६४१ श्री० नेमीचन्द जी मिघई फिर यह शंका उठाई थी कि अगर वह राजगृही इंजिनियर नागपुर । वाला मेडक सम्यकदृष्टि था तो उसका गर्भज होना ४ जैनसंदेश १-१०-४२ श्री. पं० सुमेरचन्दजी आवश्यक है (लब्धिमार गाथा . ) परन्तु मडक तो "न्निनीपु”, न्यायतीर्थ ।। सम्मूच्छन होते हैं, अतः राजगृही वाले मेडककी कथा इन जवाबो में तीन महाशयांने जो लिखा है सो तियश्च भी भगवद्भक्तिके फलमे देव-ाति प्राप्त कर देखियसकता है, इस मत्यप्रयोजन पापक होकर भी ऐति- १ श्री नेमीचन्दजी निघई तो गर्भज मूच्छनकी
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy