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________________ ३२२ अनेकान्त वर्ष ५ उल्लेख इसी सूत्रमें इस प्रकार है: २२ जालंधर गोत्रीय भगवान महावीरकी माता नेवनंदा १ छबिहा कुलारिया मणुस्सा पन्नत्ता तं जहा: (कल्पसूत्र) ____इससे स्पष्ट है कि ५ वीं शताब्दी तक तो इन्ही गोत्रों १ उग्गा २ भागा ३ राइन्ना, इक्वागा, रणाया, का प्रचार था और वर्तमान जैन जातियोंका नामकरण इस कोरवा। समय तक नहीं हुआ था। उपलब्ध प्रमाण मे १५वीं शताब्दीके अर्थात् कुलार्य ६ प्रकारके हैं-१ उग्र+ २ भोग पहलेका एक भी उल्लेख अवलोकनमे नहीं आया जिसमे ३ राजन्य ४ इच्वाकु ५ ज्ञान ६ कौरव । वर्तमान जैन जातियोमेसे किसी भी जातिका नाम निर्देश (२) विहा जरइ अग्यिा मणुरुला पन्नत्ता तंजहाः- हो। १२वी-१३वी शताब्दीकी कई महत्वपूर्ण प्रशस्तिये एवं १ अंबढ़ाय, २ कलंदाय, ३ वेदेहा ५ वेदिगाइया शिलालेख मिलता है ५ हरिया ६ चंचुणा। भी ६ वीं शताब्दी तक ही है अर्थात् उनमें आये हुए अर्थातः-६ प्रकारके जाति प्रार्य ये हैं:-अंबस्द, कलिद, नामोका विस्तार भी वीं शताब्दी तक ही सीमित है। विदेह, विदेहगा. हरिता और चंचुया। मुनि जिनविजयजी सम्पादित जैन पुस्तक प्रशस्तिसंग्रहकी अब हमे देखना यह है कि इन गोत्र नामोंका उल्लेख (नं. ३५) सं० १३६५ की प्रशस्तिमें श्रीमाल वंशम शांतिकबसे कब तक पाया जाता है। और इनमेंसे कौनसे २ गोत्र सूरि द्वारा प्रतिबोधित डीडू श्रावककारित नवहर मदिरका प्रयुक्त रूपसे मिलते हैं समय सं० ७०४ बतलाया गया है यथा :आवश्यक सूत्रके ३८१ वी गाथामे लिखा है कि २४ "श्रामाल वंशोस्ति विशालकीर्तिः तीर्थकरोमेंसे । मुनिसुव्रत २ अरिष्टनेमि गौतमगोत्रके थे श्रीशांतिमूरि प्रतिबोधित डीडवाख्यः। अन्य सब काश्यप गोत्रके थे। चक्रवर्ती सब काश्यप गोत्रीय श्रीविक्रमावदनभमहर्षि-वत्सरे, थे। वासुदेव बन्देवोमे ८-८ तो गौतम गोत्रीय थे केवल श्रीआदिचैत्यकारापितनवहरे च (१)॥" लघमण और पउम (राम) दो कश्यप गोत्रीय थे। अर्थात यद्यपि यह उल्लेख घटनाके बहुत पीछेका है अत: ये गोत्र परम प्राचीनकालसे प्रवतित थे अब देखना यह है संवन् पूंर रुपये ग्राह्य नही माना जा सकता फिर .यह कि इनका सम्बन्ध जैनामे कब तक रहा और कौन कौनसे उल्लं ख अपना महत्व रखता है। इसी प्रकार जैनाचार्य गोत्रोंके उल्लेख मिलते हैं। श्रात्माराम शताब्दीस्मारक ग्रन्थमे श्रीमाली जातिकी एक वीरनिर्वाण १८. अर्थात विक्रमके ५ वी शताब्दी वशावलि प्रकाशित हुई है उसमे लिखा है कि "भारद्वाज गोत्रे मंवत ७६५ वर्ष प्रतिबोधित श्री श्रीमालज्ञातियः तकके श्वेताम्बर जैन युगप्रधान प्राचार्यों व स्थविरोकीन.मावलि नंदी और कल्पसूत्रकी स्थांवरावली में पाई जाती है श्रीशातिनाथगोष्ठिकः श्रीभिन्नमालनगरे भारद्वाजउनमें उन सभी प्राचार्योंके गोत्र इस प्रकार बतलाये हैं - गोत्र श्रेष्ठी तोज" इत्या द उल्लेखौको नजर तले रखते हुए एवं कतिपय भारतीय प्रसिद्ध ऐतिहासिक विद्वानोंका भी १ गौतम, २ भारद्वाज, ३ अग्निवेश्यायन, ४ वाशिष्ट, यही मत है कि भारतकी बहुत-सी क्षत्रिय एवं वैश्य ५ काश्यप, ६ हारितायन, ७ कोडिन्य, ८ कात्यायन, ६ चम्म, जातियोका नामकरण ८ वी शताब्दीम हुअा, कथम पर १. तुङ्गियायन, ५९ माढर. १२ प्राचीन, १३ ऐल्लापत्य, विचार करने पर वर्तमान जैन जातियोंका नामकरण-स्था५४ व्याघ्रापत्य, १५ कुत्म, १६ पौशिक, १७ कोडाल, १८ पनाका समय भी ७-८ वीं शताब्दीके लगभग होना उत्कौशिक, ११ मुवत (मावया) २०, हारित २१ सांडिल्य, संभव है ।* +यह वंश अब भी बगाल प्रान्तम है। *शेष जानने के लिये देखो मेग 'अोमवाल जातका स्थाहलमाफ-यायक मनसे वर्तमान जथ ग्या जाही ज्ञान पना मम्बन्धी प्राचीन प्रमाणोकी परीक्षा" शार्पक निबंध जो वंशन हे। कि.नरुण ग्रोमवाल के वर्ष २ अं०६-.मे प्रकाशन है।
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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