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जैन जातियोंके प्राचीन इतिहासकी समस्या
( ले०-श्री अगरचन्द नाहटा )
जैन जातियों का इतिहास जैन इतिहासकी एक जटिल ते सेलयया, ते अट्ठसेणो, ते वायकरहा। समस्या है। वर्तमान समस्त जैनजातिय अपनेको पूर्णावस्थामें ४ जे कोत्था ते सत्तविहा पन्नता तजहाःक्षत्रिय एवं जैनेतर बतलाती हैं और अमुक समयमें ते कोत्था, ते मोग्गलायणा, ते पिंगायणा, ते अमुक प्राचार्य द्वारा प्रतियोधित कही जाती हैं, पर इसके कोर्ड णा, ते मंडलिणो, ते हारिया, ते सोमया। विषयमें प्राचीन एवं समकालीन प्रमाणोंका पर्वथा अभाव ५ जे कोसिया ते सतविहा पन्नत्ता तजहाःनज़र पाता है। समझमें नहीं पाता कि प्राचीन जैन विद्वान ते कोसिया ते कच्चायणा, ते सालंकायणा, ने जैन जातियों के उत्पनि एवं इतिहासके सम्बन्धमें उदासीन क्यों गोलिकायणा, ते पारिककायरणा, ते अग्गिच्चा, रहे । जब कभी भी कि 1 जैनाचार्यमे हजारों अजैनोंको तेलेहिच्चा। जैन बनाया तो वह घटना एवं समय जैन इतिहासकी ६ जे मंडवा त मत्तविहा पन्नत्ता तं जहाःमहत्वपूर्ण बात अवश्य थी फिर भी प्रनिबोधक श्राचार्य के त मडया, ने आरिट्ठा, ते संमुत्ता, तेहेरा ते एलाशिष्योंने अपने गुरुके महत्वपूर्ण कार्यका उल्लेख क्यो नही बच्चा, ते कतल्ला, त कवायणा । किया और प्रभावक प्राचार्य रूपमे उनका उल्लख उन ७ ते वामिट्ठा ने मत्त व्हिा पन्नत्ता तंजहाःसमकालीन या कुछ पश्चात्वा विद्वानों ने भी उसका उल्लेख ते वामिट्ठः, त उंजायणा, त जारुकण्हा, ते वग्धाक्यों नहीं किया?
बच्चा, ने कोडिन्ना, ते सत्ती, ते पागसरा। प्राचीन जैनागमोको टटोलने पर वर्तमान किसी भी अर्थात:-मूलगोत्र । हैं ५ कश्यप, २ गौतम, ३ वत्म, जैन जासिका कही नामरूपसे भी उल्लेख नहीं मिलना। ४ कुत्म, ५ कौशिक, ६ मंडप और ७ वाशिष्ठ इनमें से उस समयके प्रसिद्ध गोत्र मेरे अन्वेषणानुसार निम्नोक्त हैं-- प्रत्येक्के ७-७ उपभेद हैं जो इस प्रकार हैं:___ श्वेताम्बर जैनागम स्थानाङ्ग सूत्रके ७ वे स्थानके १८ वे १ कश्यप, मांडिल्य, गोल, वाल, मुंज, पर्वत, वरिसकृष्ण मत्रमे जिग्खा है कि:
२ गौतम, गर्ग, भारद्वाज, अंगीरम, शर्कराभ, भास्कराभ, मत्त मूल गोत्ता पन्नत जहा:
उदनाभ। १ कामवा, २ गोयमा, ३ वत्था, ४ कोत्था, ३ वस, अंगिय, मित्तिय, सामलीय, मेलवय, अस्थिम्पेन, ५ कोसिया, ६ मंडवा, ७ वसिट्ठा।
वन्मुकृष्ण । १ जे कासवा से सत्तविहा पन्नत्ता तंजहाः
४ कुस्म, मौदगलायन पिगतण, कोडिन्न, मंडलीक, हारित, ते कामवा, ते मंडिल्ला, ते गोला. ते वाला, ते सोमय ।
मुजतिणो, ते पबतिणो, ते वरिसकहा। ५ कौशिक, कात्यायन, शालकायन, गोलिकायन, परिकका२ जे गोयमा ते सत्तविहा पन्नत्ता तंजहाः
यन, अगित्या. लोहित्य । ते गोयमा, ते गग्गा, ते भारदा, ते अंगिरमा, ६ मंडप, अरिष्ट, संमुत्त, भेला, पलापश्य, कंतेल्ल, ग्वायण ।
ते मकराभा, ते भक्ग्वगभा, ते उदत्ताभा। वाशिष्ट उंजायन जास्कृष्य, व्याघ्रापन्य, कोदिन्न, सत्ती, ३ जे वत्था ते मत्तविहा पन्नत्ता नजहाः
पाराशर । ने बत्था, ते अग्गिया, ते मित्तिए, ते मामलिणो, बह प्रकारक कुलार्या व प्रकारके जाति पार्यका