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प्रेम-कसौटी
(o-श्री दौलतराम 'मित्र') "प्रेम-पात्रके हित-साधनको, उसे त्याग कर सकनेमें- सुख माताका है, पुत्रका नहीं है । माताको देखनेसे अगर और प्रसंग-कठिन पड़ने पर तन-धन-युत मर मिटने में--- पुत्रको सुख हो नो हो, वह जुदी बात है, उसमें पुत्रकी प्रवृत्ति हो न अगर पीटा-अनुभव, तो हममे प्रेम सचोटी है। होनी चाहिये। माताने यहांपर अपना एक सुख ढढा-नित्य उपादेय बस यही एक अति उत्तम प्रेम-कसौटी है॥" पुत्रका मुख देखना । उसकी अभिलाषा करके उसने पुत्रको
यह मेरी एक तुकबंदी है। इसके प्राचार दो हैं-एक दरिद्रताके दुखसे दुःखित बनाना चाहा। यहां मातास्वार्थपर सिद्धान्त, दूसरा उदाहरण ।
है, क्योंकि उसने अपने सुखके लिये अन्यको दुखी किया।" (१ सिद्धान्त)
___ 'स्नेहका यथार्थ स्वरूप ही अस्वार्थपरता है । जिस श्री-वंकिमचन्द्र प्यारका अत्याचार"नामक लेखमें लिखते हैं:
माताने पुत्रके सुखके लिये पुत्र मुखदर्शन-सुखकी कामना "मानलो कोई ग़रीब है। देवके अनुग्रहसे उसे कोई
छोड़ दी, वही यथार्थ स्नेह करने वाली है। जो प्रणयी अच्छी जगह मिल गई और वह दूर देश जाकर ग़रीबीसे पीछा
प्रणय-त्रात्रकी भलाई के लिये प्रणय-सुख-भोगको छोड़ सका बुदानेका उद्योग कर रहा है। इसी बीच में मानाने रोना-धोना
वही सच्चा प्रणयी है।"(वंकिम-निबन्धावली, पृ०११०।१३) मचा दिया। उसे अपनेसे दर जाने के लिये मना किया। वह
_ (२ उदाहरण) मातृ-प्रेमसे लाचार होकर रह गया । मातृ-प्रेमके अन्याचारसे कथा है-"एक लड़का दूध पीता चोरी चला गया। उसने अपनेको सदाके लिये गरीबीके गढ़ेमे डाल दिया।' असेंके बाद पता चला। दोनों माताओंमें झगडा पैदा हुआ।
'कह सकते हैं कि जिस माताने स्नेहवश पुत्रको जननी माताने चोर-माता पर न्यायालयमें दावा दायर किया । धन कमानेके लिये परदेश नहीं जाने दिया, वह क्या स्वार्थ- दोनो तरफसे सबूत पेश किए गए। न्यायाधीश किसी एक पर है ? बल्कि यदि वह स्वार्थपर होती तो पुत्रको धनकी पक्षकी तरफ रहने के लिए मतुष्ट न हो सके। वे बड़े विचार खोजमें दूर देश जानेके लिये ममा न करती क्योंकि कौन में पड़े । अाखिर एक दिन उन्हें एक सूझ सूझी। माता पुत्रकी कमाई का सुख नहीं भोगना चाहती ? अतएव अदालतमें दोनों माताओं और लडकेको हाजिर किया इस प्रकारके दर्शन मात्रकी आकांक्षा रखने वाले स्नेहको गया। मंठ-मूठ फैसला सुनाया-'लेख और गवाह परसे बहुत लोग श्रस्वार्थपर स्नेह समझते हैं। किंतु वास्तवमे मामला सशंकित है. दोनों पक्षों में जाता है । अतएव हुक्म यह खयाल ठीक नहीं है। यह स्नेह भस्वार्थपर नहीं दिया जाता है कि लडकेके दो टुकडे करके एक एक है। जो लोग इसे अस्वार्थपर मानते हैं, वे केवल धन- टुकडा दोनोंको बांट दिया जाय ।” परायणताको ही स्वार्थ-परता समझते हैं। जो धनकी
अदालतमे सन्नाटा' श्रोताजन सकंप ।। चोर माता कामना नहीं करता, उसे वे स्वार्थपरतासे शून्य समझते हैं।
- मनुष्ट ।। असली माता चिल्ला उठी-'मुझे प्राधा नहीं
चाहिये, पूरा इसे दे दो।' वे यह नहीं समझ सकते कि धन-लाभके अलावा पृथ्वीपर
श्रोता जनोंकी कपकपी दूर हुई, मह खुले, तरह तरह अन्यान्य सुख हैं और उसमेंमे किमी किसी सुखकी आकांक्षा
इसमम किमी किसा सुखका आकाक्षा की चर्चा करने लगे। धनकी आकांक्षासे अधिकतर वेगवाली है। जिस माताने
स्वत: सिद्ध हो गया. लग्केकी जननी--सचा प्रेम धनका मोह त्यागकर पुत्र-मुख देखनेके सुम्बकी वासमासे करने वाली माता कौन है ! पुत्रको सदाके लिये ग़रीब बना डाला, अथवा अपनी प्रेम-कमौटीपर परीक्षा हो गई। तब न्यायालयसे असली अवस्था संभालनेका अवसर उसके हाथसे निकल जाने फैसला हुश्रा-"जो माता लडकेके हित के लिए उसे और दिया, उसने भी अपना सुख खोया । वह धनका सुख नहीं अपने स्वार्थको त्याग देनेको राज़ी है, वही सरचा प्रेम करने चाहती, किन्तु पुत्रको सदा देखनेका सुख चाहती है। वह वाली लड़की जननी है। लडका उसके सुपुर्द कियाजाय।"