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अनेकान्त
[वर्ष ५
अपभ्रंश काव्यमे, जो वि० सं० १०४० की रचना है, सकते । इसी तरह जलक्रीडा-वर्णनमे स्वयंभुको, गोग्रहचतुर्मुख, स्वयभु और पुष्पदन्त इन तीनों कवियोकी स्तुति कथामें चतुर्मुखदेवको और मस्यवेधमे भद्को आज भी की है और तीनकी संख्या देकर तीनों के लिये जुदा जुदा कविजन नहीं पा सकते। विशेषण दिये है।
इन उद्धरणोमे बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है कि चतु हरिवंशपुराणमे स्वयंभु कवि स्वयं कहते हैं कि पिंगलने मुंबदेव स्वयंभुमे पृथक् और उनके पूर्ववर्ती कवि हैं जिनकी छन्दप्रस्तार भामह और दंडीने अलकार, बाणने अक्षरा- रचनामें शब्द-मौन्दर्य विशेष है और जिन्होने अपने हरिडम्बर, श्रीहर्पने निपुण व और चतुर्मुग्वने छर्दनिका, द्विपदी और वंशमे गोग्रह-कथा बहुत ही बढ़िया लिखी है। ध्र वर्कोसे जटित पद्धड़िया दिया-"छदाणिय-दुवड-धुवपहिं अपने स्वयंभु-छन्दमें स्वयं ने पहलेके अनेक जडिय, चउगुहेण समप्पिय पद्धदिय ।" इससे चतुमुम्ब
कवियोंके पथ उदाहण स्वरूप दिये हैं और उनमें चतुमुम्ब निश्चय ही स्वयंभुसे जुदा हैं जिनके पद्धडिया काव्य (हरि
या काव्य ( हार के 'जहा चउमुहस्प' कहकर ५-६ पद्य उद्धत किये हैं। वंश-पद्मपुराण ) उन्हें प्राप्त थे ।
इसमे भी चतुमुखका पृथकन्च सिद्ध होता है। ६ इसी तरह कवि स्वयंभु अपने पउमा उमें भी
'करकंडुचरिउ' के कर्ता कनकामर (कनकदेव) ने चतुर्मुखको जुदा बतलाते हैं। वे कहते हैं कि चतुर्मुखके
स्वयंभ और पुष्पदन्त दो अपभ्रंश कवियोका उल्लेख किया शब्द और दंति और भद्रके अर्थ मनोहर होते हैं, परन्तु
है, परन्तु स्वयंभुको केवल 'स्वयंभ' लिखा है, 'चतुर्मुम्ब स्वयंभु काव्यमें शब्द और अर्थ दोनो सुन्दर है, तब शेष
स्वयंभ' नहीं।' कविजन क्या करें ?
पउमचरिउमें पंचमि चरिश्र' के विषयमे लिम्बा हैमागे चलकर फिर कहा है कि चतुर्मुखदेवके शब्दोंको, चउमुहमयंभुवागण वाणियत्थं अचक्खमाणेण । स्वयंभुदेवकी मनोहर जिह्वा (वाणी') को और भद्र तिहुअणसयंभु रइयं पंचामचरित्रं महच्छरिअं॥ कवि गोग्रहणको आज भी अन्य कवि नही पा इमके 'चउमुहमयंभुवाण' (चतुर्मुग्यस्वयभुदेवान म् )
सेन था। चित्तोड (मवाइ ) को छोड़ जब वे किमी पदमे चतुर्मुग्व और स्वयभु जुदा जुदा दो कवि ही प्रक्ट काममे अचलपर गये थे, तब वहा उदने धम्मपरिक्वा स्वयंभु-छन्दम च उमुहु के नी पद्य उदाहरणस्वरुप उद्धृत बनाई यां।
किये हैं, उनमें ४-२, ६-८३, ८६ १५२ उद्योम मालूम १ चउमह कव्वविश्यण मयंभु वि, पफ्फयंतु अएगणारा गिामुंगिवि होना है कि उनका पउमचरिउभा अवश्य रहा होगा। तिएण विजोग्ग जेण न सीमइ, चउमुहमुह थिय ताममरामइ काकि उनमें राम-कथाक प्रमंग हैं । सा मयंभुमो देउ पहाणउ, अह कह लोयालोयवियाण उ।
४-५ पउमचरिउके प्रार्गमक अंशके पद्य न० ३-४ । पष्फयंतु ण विमाणुमु वुच्चइ, गोसम्महाए कया विण मच्चः ।।
६ मंभव है 'पउमरि' के ये प्रार्गम्भक पदा स्वयं स्वय २ देखा 'पउमचरि 3' के प्रागंभक अंशका दूमग पद्य । ३ भद्र अपभ्रंशके ही कवि मालूम होते हैं । उनका कोई
के रचे हुए न हो, उनके पुत्र त्रिभुवन के हा, फिर भी महाभारत या हाग्वंश होगा जिसके अन्तर्गत 'गोग्रह- इनम चतुम व भार स्वयमुका पृथक्च मद्व हाता है। कथा' थी। क्योंकि अपभ्रंश-कवि धवलने भी अपने हरि- ७ जयाएव मयंभु विमालचिन, वागमग्घिा मिरिपफयतु । वंशपुराणम चतुमुखकी 'हरिपाण्डवाना कथा' का उल्लेग्ब ८ ग्विंशपगण और पद्मपुराण के ममान 'पचम-कहा' भी किया है
जैनोकी बहुत ही लोकप्रिय कथा है। मस्कृत और अपहरिपड्वाण कहा च उमुहवामहि भासियं जम्हा ।
भ्रशके प्रायः सभी प्रसिद्ध कवियाने इन तीन कथानाको तह विग्यमि लोयपिया जेण ण यासेइ दंसण पउरं ।। अग्ने अपने ढगसे लिखा है। महापुराण (इममे पद्मइसमे च उमुहवामहि ( चतुर्मुग्वव्यास:) पद श्लिष्ट है। चरित और हरिवंश दोनो है) के अतिरिक्त पुष्पदन्तक