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________________ साहित्य-परिचय और समालोचन वन विश्ववाणीका जन-संस्कृति अंक-:लाहाबादसे वाट महितप्रथम खण्ड जीवाणका अन्तरमाव अल्प- पं० मुन्दाजकी मंरक्षना और पं० विश्वम्भरनाथ के बहुत्वानुगम नामक पंचम अश। मृनलम्बक, भगवान पुष्प- ममादकत्वम प्रकाशित होने वाली विश्ववाण का यह जैन । दन्त-भूतबलि । सम्पादक प्रो. हीरालाल जैन एम ए. मस्कृति अक दूसरे मंस्कृति अंकांके ममान ही प्रकाशित संस्कृताध्यापक किंग एडवर्ड कालेज, श्रमगवनी । प्रकाशक किया गया है । प्रस्तुत अंकमे एक विनाको छोरकर १८ श्रीमन्त मेठ लक्ष्मीचन्द्र सिताबराय जैन साहित्योद्वारकफण्ड गद्य लेख है जिनमेस क्तिने ही अच्छे पठनीय हैं, और कार्यालय, अमगवती। बड़ा मादन पृपुमंग्या मब मिलाकर कुछ माधारण भी हैं। श्वेताम्बरीय विद्वान पं० सुम्बलाल .४५८। मूल्य, सजिल्द प्रतिका १०), शाम्राकारका १२)। जीका 'जनमंस्कृतिका हृदय' शीर्षक लेख महत्वपूर्ण है। इस पंचम भागम जीवस्थानके पाठ अनुयोगदागेमेमे दमम जैन-अजैन माहित्यके तुलनात्मक अध्ययन और अन्तके अन्तर-भाव और अल्म्बहुत्व ऐमें नीन अनुरोग- अन्वेषण द्वारा जैन, हिन्दू तथा बौद्ध मंस्कृतियोवा पहार द्वारीका गुगास्थान नथा मार्गणा स्थानाकी अपेक्षा कथन में एक दूसरे पर कब कितना और कैमें प्रभाव पड़ा और है। प्रस्तावनामे इन तीनो अनुयागदागंका मंक्षिप्त परिचय जैनमस्कृतिका आमतौर पर भारतीय संस्कृतियों पर क्या भी दिया है तथा १५ भक्शी द्वाग उनके विषयको और अमर हुअा, इमे स्पष्ट करके बतलाया गया है। महात्मा स्पष्ट कर दिया है। अन्नगनुयोगम मलमत्र में उपलब्ध होन भगवानदीन नीका 'जैनमंझन जगह जगह' नामक लेख भी वाले विशेष कथनाको टीकाकग्ने उदाहरणादि के माय अपने ढंगका अच्छा है। विश्ववाणीके विद्वान सम्पादककी खलासा करते हए कपनकी सापेक्षताको भी स्पष्ट कर दिया विविध-संस्कृत ग्रंक निकालनेकी यह योजना बड़ी अच्छी है। और कहीं कही सूत्रोका श्राशय व्यक्त करते हुए श्राचार्य है, इसम जनता एक दूमर की संस्कृतिकी कितनी हा विशेबोलो यांना सामानमनित पताका परिचय प्राप्त कर सकती है। अत: इसलिये समाधान भी दे दिया है। ग्रन्थके अध्ययनमे कि-न ही सम्पादक महोदय धन्यवाद के पात्र हैं। , विशेष कथनांकी जानकारी होती है। अनुवाद गरल तथा ३ भूगोलका द्वितीय महाममर परिचय-सम्पादक मूलानुगामी है और वह सम्पादकीय दृष्टिकोणके अनुसार और प्रकाशक पं० गमनागयण मिश्र बी ए, भूगोल कार्यालय, इलाहावाद । पृष्ठ मंख्या १५०, वार्षिक मूल्य निमे अबकी बार समालोच कोके अनुचित प्रहारको टालने के ३) ० विशेषाक का मूल्य १॥) रु.। लिये स्पष्ट कर दिया गया है, अन्छा ही हो रहा है। प्रस्ता प्रस्तुत १५० पृष्ठोके. विशेषाकमे जो पांच खंडोम वनामे लम्बनऊ यूनिवमिटीके प्रोफेमर टाक्टर अवधेश विभाजित है मन १६३६ में जन मन् १९४२ नककी सभी नारायणमिहके 'धवलाका गणितशास्त्र' नामके अंग्रेनी युद्ध मम्बन्धी घटनाग्रां पर प्रकाश डाला गया है जो पश्चिम लेविका हिन्दी अनुवाद भी २६ प्रोम दे दिया है, जिमसे योरुप. मम-जर्मनी, अफ्रीका, मीग्यिा, इनक, ईगन, अटहिन्दीके अभ्यामी भी अब उममे मचित लाभ उठा सकन लाटिक महामागर और प्रशंनिमागरके युद्धम और भारतम है। इसके मिवाय कनाड़ी प्रशनि और शंका ममाधान भी कृम-चागकाईशेकके आगमन सम्बन्ध आदिमें घटित हुई। दिया गया है साथ ही विस्तृत विषय-मची भी लगाई गई हैं । माथ ही ६० नक्शे देकर विषयको और भी सरल एवं है, जिसमें ग्रन्थ के प्रतिपाद्य विषयका मजदीम परिचय हो पठनीय बना दिया है। इसके सिवा लेखामे सम्बंधित व्यक्तियों जाता है। ग्रन्यके अन्नमे ५ पांगशष्ट लगे हैं जिनसे उक्त के चित्र भी दिये गये हैं। प्रस्तुत अंक भूगोलके विद्यार्थियों खण्डकी उपयोगिता अधिक घट गई है। रम नरह यह नया वर्तमान युद्धका भूगोलिक स्थितिके साथ ठीक परिचय भाग भी पहले भागोंके समान ही उपयोगी एवं मग्रहणीय पानेके इच्छुकांके लिये बड़े कामका तथा विशेष उपयोगी बनाया गया है जिसके लिये विद्वान सम्पादक महोदय है और हर तरहसे संग्रहणीय है। विद्वान् सम्पादक हम धन्यवादके पात्र है। योजनाके लिये धन्यवादके पात्र है। -परमानंद जैन शात्री
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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