SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 316
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चलती चक्की (ले०-डाक्टर भैयालाल जैन, Ph. D.) दुनिया बहुत तनीसे घम रही है, ममय पत्नक मारते विधवा बहू या भौजाईके साथ बलात्कार कर अपना मुंह ही बदल रहा है । जो जातिया मजग हैं वे अपना अस्तित्व काला करते हैं । गर्भ रहजाने पर भ्रूणहत्या करते हैं । यदि कायम सम्बने क लिए, ममारक रुखको देग्य कर. समयकी गर्भ न गिरा तो किसी गुण्डको रुपया देकर उसका हमल गतिके माय अपना कदम बढ़ा रही है। छोटीसे छोटी और सबूत कर देन है और बच्चा हो जाने पर उस बेचारी बिलकुल पिछड़ी हुई जातिया भी अपने उत्थानके प्रयत्न अहिमा-धर्म की पालने वाली अवलाको उस मासाहारी मे कमर कमके जुट पड़ी हैं। एक अभागा जैन समाज ही गुण्डेके सुपर्द कर देते हैं ! तुर्ग यह है कि इन दुष्कृत्या पर ऐमा है जो मृदेंस बाजी लगा कर मोया है। और इसकी पंच-परमेश्वरोको स्वीकृति की मोहर भी लग जाती है और दुर्गति ऐमी हालतम हो रही है जब इम ममानके अन्दर । वे नर-पिशाच अपने उच्च वर्णकी डाम दोकने हुए, समाज बड़े बड़े वैभवशाली धनकुबेर मोजद है। की छाती पर कोदो दला करते हैं ! उफ ! कैसा भयंकर गढ़वाद, नो ममा जान्नतिके मार्गका रोड़ा है, इम अत्याचार !! समाजस दिनोदिन चुम्बककी नाई चिपकता जाना है और महानुभूति तथा जातिप्रेम तो जैन समाजस बिलकुल धर्मके व अग जो किसी वस्तुके ट्रेडमार्कके ममान जैनत्वका ही रफूचक्कर हो चुका है। छोटे २ ग्रामोमे कोई रोजगार पता देत है, ममास ऐसे लार होने जारह है जैसे गजेके धंधा न हानसे हनाग जैनी भूग्बो भरने है, उनकी सन्तानका सिरम बाल । विद्या-प्राप्ति के कोई साधन न होने में मृवतामे जीवन व्यतीत पहिले जहाँ प्रत्येक जैनी देव-दर्शन करना, जल छान करना पड़ रहा है। गर्गबीके कारण उनमसे धर्म भी लोप कर पीना और गात्रम भोजन न करनेको अपना पवित्र हो रहा है। बीमार हाने पर बेचारीका दवा-इलाजका कोई कर्तव्य ममझना था, वहाँ अाज-कल इन बातोका नियमित- प्रबन्ध न होनेमे मैकडोकी संग्व्याम प्रतिवर्ष मृत्युकं महमे रूपसे पालन करने वाले मुश्किलसे २५ प्रतिशत मिलेगे। धसते चले जाते हैं, जिमसे ममा जकी मंख्या घटती चला देवदर्शनके लिये मन्दिर जाना नो अब लोगोंको भार मालूम जाती है। एक और घोर निर्धनताके कारण ऐसी भयंकर पड़ने लगा है। पपग् पर्वम शर्मा-शर्मी यदि १० दिनके दुर्दशा है, दुमरी ओर ममाज के धनकुबेर अपने इन श्रम:लाए जाने भी है तो आपमा गाली गलौज तथा लात-जना हाय बन्धुश्राकी ओर से श्राग्व-कान बन्द किये, अपने महलो करक धर्मकी ग्वब प्रभावना करत हैं ! बिना छना पानी में चैनकी बंशी बजा रहे हैं ! कुछ समय हुश्रा एक समापीना तो अब बहुत मामूली बात होगई है, यहा तक कि चारपत्रम पढ़ा था कि एक शहरमे एक जैनीकी मृत्यु हुई, होटलाम जाकर महाअशुद्ध सोडा लमन इत्यादि झूठे बेचारा निर्धन था। शहग्मे इंदमो घरके जेनी, पर उसके गिलासांग पीनम भी जैनी भाई अग्नी शान ममझने लगे मृतक-संस्कारके लिए एक भी घरमे न निकला! तब दो हैं ! गतको स्वाना भी अब फैशनमें दाखिल होगया है ! नवयुवकोने उसे एक गाड़ीम डालकर उसकी मिट्टी ठिकाने जो लोग पाँव तले चींटी दबजानेमे भी पाप समझने लगाई !! एक और स्थानमे एक बहुत गर्गव जैनीका हाल थे उनके लिए नर-हत्या तक कर डालना बाएँ हाथका इससे भी अधिक हृदय दहलाने वाला है। अग्वेि खराब खेल हो गया है ! पिछले कुछ वर्षोंम ऐसे लोगों पर कत्न हो जानेके कारण बेचाग बड़े कष्ठम था । वहाँके निकांसे के मकदमे चलना इसका प्रमाण है। श्रॉग्बोका इलाज कराने के लिए ५०) रुपया उधार मॉगे, जो नैनसमाज नैतिक आचरणम श्रादर्श माना जाता जिससे प्रॉग्वें सुधर जाने पर कुछ काम धंधा कर सके; पर या उमका ऐमा घोर पतन हुआ है कि कई दुराचारी अपनी किसी जेनीको उम पर दया न बाई ! ईमात्यांने उम पर
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy