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________________ मैं और वीरसेवामन्दिर बहुत मुद्दतसे मेरे दिल में यह भावना बनी थी कि ३. ला. राजेन्द्र कुमार जी लाहौर । मैनसमाजमें कोई ऐसी योजना हो, जिसके द्वारा लुमप्राय: ४. बा० छोटेलाल जी, कलकत्ता । जैनसंस्कृतिका पुनरोद्घाटन हो सके। विचारपरम्पराक ५ ला. अयोध्याप्रसाद जी गोयलीय डालमियानगर । मूल स्रोतोको खोजकर इसके निकाम और विकासका पता ६. ला. जयभगवान जैन वकील, पानीपत । लगाया जा सके तर्क और परिभाषाके बने हुए दार्शनिक ७.६० जुगल किशोर मुख्तार सरसावा । कंकालको तोड़कर इसकी जीती जागता मूर्तिका दर्शन ८. पं. महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य, बनारस किया जा मके-इसे साम्प्रदायिक व्यामोहके गवैसे निकाल ६. डा० ए० एन० उपाध्याय, कोल्हापुर । कर एक बहती हुई विश्वकल्याण) गंगा बनाया जा सक। १०. बा० लालचन्द एडवोकेट, रोहतक । परन्तु, कुछ घरबारकी चिन्ताएँ कुछ शरीरको व्यथाएँ, कुछ ११ बा. कौशल प्रसाद जैन, सहारनपुर । तबीयतको ढील, कुछ प्रोत्साहनको कमी, ऐसी बाड़े अाती नई योजना अनुमार इस संस्था द्वारा निम्न प्रकारका रही, कि यह भावना अानतक भावना ही बनी रही। माहित्य सम्पादित हुश्रा करेगा। अयक पर्युषण पर्वमे देहली श्राकर, बा० जुगलकिशोर १-संग्रहात्मक रचनाएँ-जैसे जैनग्रन्थ सूची, जैन जी मुग्वताग्ने मुझे इस मामलेम विशेष प्रोत्साहन दिया, प्रशस्तिसंग्रह. जैनशिलालेग्यसंग्रह, जैनमन्त्रसंग्रह, जैनऔर इम योजनाका केन्द्र 'वीर-सेवा-मन्दिर' को बनाने के पट्टावली-संग्रह, जैनकलासंग्रह, पुगतन जैनवाक्य-सूची, लिये एक सुझाव पेश किया-उधर इस फरवरी के महीनेमे जैगलक्षणावली, जैनपारिभाषिक शब्दकोष, जैनमंत्रकोप, साह शान्तिप्रसादजीने इस संस्थाका संरक्षक बनना स्वीकार ऐतिहासिक जैन व्याक्तकोष इत्यादि। किया, और योजना अनुमार इमकी बढ़ती हुई श्रावश्य- २-मौलिक रचनाएँ-जैसे जैनसंस्कृतिका इतिहास, कताग्रीमे सहायक होने के लिये बड़ी उदारताका परिचय जैनदर्शनका इतिहास, जैनसाहित्यका इतिहास, जैनकलाका दिया-इन सब ही बातोंको दृष्टिमे रखकर मेने अपनी इतिहास, जैन तीर्थकगे, श्राचार्यों और अन्य महापुरुषाका सेवाएँ वीरसेबामन्दिरको अर्पण कर दी। इतिहास, ज्ञेय ज्ञान-मीमॉमा, बुद्धि और श्रुति, मत्यासत्यचीरमेवा मन्दिर, गो शुरुसे ही देश, धर्म और जाति वाद, अपेक्षाघाद काल और विकासवाद, मृत्युविज्ञान, के हित के लिए बनाया गया था, और शुरूसे ही वह इन स्वप्नविज्ञान, मन्त्रविज्ञान, अदिसा और सदाचार, जीवनहितके कामोके लिए योजनाएँ करता रहा है, लेकिन कानून मीमामा, अात्मसाधना आदि नये दार्शनिक-प्रन्थ । की दृष्टिसे वह याज तक मुख्तार माहबकी ही निजी चीन ३-अनुवाद सहित पुरानी रचनाएँ-जैसे वास्तुकला, समझा जाता रहा है। इस दोपको मुख्तार साइबने २४ मनिकला, चित्रकला, संगीतकला, श्रादि कला ग्रन्थअप्रैलको अपनी वसीयत रजिष्ट्री कराकर बहुत अंशोम दूर गणित ज्योतिष, आयुर्वेदिक, मन्त्र-तन्त्र, पशु-पक्षि आदि कर दिया है । इसके अलावा इसके संचालन में भी बहुत वैज्ञानिक ग्रन्थ-नीति, कथा, छन्द, व्याकरण और कोष बडा परिवर्तन आ गया है। अब तक इमके संचालनका श्रादि माहित्यिक ग्रन्थ । समस्त भार मुख्तार माहबके ही ऊपर था, मगर अब यह इस कार्यको प्रामाणिक ढंगसे पूरा करने के लिए जहाँ सब काम एक संचालक कमेटी द्वारा हुश्रा करेगा, जिसे आजकल सेवामन्दिर लायरीको विविध प्रकारके ऐतिइसकी रीति-नीति में सब प्रकार हेरफेर करनेका पूग पूरा । हासिक, धार्मिक, दार्शनिक और कोष-ग्रन्थोसे सम्पन्न करने अधिकार होगा। अब तक इम कमेटीके लिए निम्न का यत्न किया जा रहा है। वहाँ प्रौढ अनुभवी विद्वानोको महानुभावोंके नाम प्रस्तावित हुए हैं : भी इस संस्थामे काम करनेके लिए निमन्त्रण दिया जा १. साहू शान्तिप्रशादजी, डालमियाँनगर । रहा है। -जयभगवान जैन २. साहू श्रेयॉसप्रशादजी, लाहौर
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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