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विषय-सूची
२ समन्तभद्र-भारतीक कुछ नमूने-[सम्पादक- पृष्ठ २७३ ८दीवाली और काव-० काशीगम शमा 'प्रफुल्लित' २६५ २ श्री अकलंक और विद्यानन्दकी गजवानिकादि कृतियार ६ साहित्यपरिचय और समालोचन-[परमानन्द जैन २६६ पं० सुरवलाल मीके गवेषगापूर्ण विचार-[संपादक २७५ १० महाकविस्वयंभु और त्रिभुवनस्वयंभ [पं नाथूगममी२६७ ३ 'मोक्षमार्गस्य नेनारं'-न्यायाचार्य महेन्द्रकुमार २८१ ११ जैनसंस्कृतिका हृदय--[40 मुखलाल संघवी ३१० ४ जीवन है मंग्राम (कहानी)-श्री भगवत्' जैन २८८ १२ प्रेम-कमांटी-श्री दौलतराम 'मित्र'
३२० ५ वासनाश्रोके प्रति (कविता)--[श्री भगवत्' जन २६२ १३ जैन जातियों के प्रानीननिहामकी समस्या श्रीश्रगरचंद३२१ ६ चलनी चक्की--डा० भैयालाल जैन PH. D. २६३ १४ मेडन के विषयमे शंकासमाधान-दौलतगम मित्र' ३२३ ७ मंगलाचरणापर मेरा अभिमत-पं.समेरचंद दिवाकर६४ १५ मामादकीय (. महेन्द्रकुमारजीका लेव) ३२६
स्वास्थ्य और प्रागार
अबकी बार अतिवृष्टिक फलस्वरूप मलारया ज्वरकी जो वबा फैली इससे अपना मारा हा आश्रम पीड़ित होगया ! बहुत कुछ संयमके साथ रहन और महीनों में एक वक्त भोजन करने के कारण मै समझता था कि इस बवामे बचा रहँगा परन्तु अन्तको मुझे भी उसकी बलि चढ़ना ही पड़ा ? और उसने मुझे कोई डेढ़ महीने तक रगड़ा !! इतनी कमजोरी हो गई कि उठते-बैठते और दो कदम चलते चक्कर आने लगे। अस्तु; अब मेरा स्वास्थ्य उत्तरोत्तर सधर रहा है। आशा है जो भारी कमजोरी पैदा हो गई है वह शनैः शनैः दूर हो जायगी। पाश्रमके दसरे विद्वान भी प्रायः ठीक हैं। मेरी तथा आश्रम के अन्य विद्वानोको अस्वस्थताको मालूम करके जिन सजनी ने चिन्ता व्यक्त की ह और महानुभूति के पत्र भेजे हैं उन मचका मै हृदयसे आभारी है, और उन्हें यह सूचित करते हए मुझे प्रमन्नता होती है कि मै चंदगेजमे अपना कुत्र काम धीरे धीरे करने लगा है । इधर ग्वाली बैठ मुझन नहीं और उधर मेरे पाममें कोई हाथ बटानेवाला भी नहीं....इसीसे बीमारोकी हालत में भी मुझे अनेकान्तादिका कितना ही काम मजबूरोको करना ही पड़ा है श्रीर उमम मेरे बाम्यक सुधरनेम विलम्ब हुआ है, और हो रहा है।
जुगलकिशोर मुग्रनार
अधियाना 'वीर मेयामन्दिर'
वार्षिक ३) नीन रुपये
अनेकान्तका मूल्य।-
एक प्रतिका ।) छह माना