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अन्य विद्वानोंके इस समय भाषण न हो सके अतः सभा रात्रि के लिए स्थगित कर दी गई ।
रात्रिमें श्री० माणिक गवैयेके गायन होने के अनन्तर श्रीयुत बा० जैनेन्द्रकुमारजी की अध्यक्षता मे सभा प्रारम्भ हुई। पं० राजेन्द्रकुमार जैन न्यायतिीर्थका कार्यारंभ पहिले मंगलाचरण हुआ । श्री० कर्मानंद पं० कृष्णचन्द्र, पं० श्रेयांमकुमार, पं० बाबूलाल, श्री० प्रेमलता 'कौमुदी' आदिके व्याख्यान हुए, तथा कविताएँ और गायन भी हुए।
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दूसरे दिन अधिक पानी बरसने के कारण निय मित सभा तो नहीं हो सकी किन्तु सुबह ६ बजे बजे तक विद्वानोंकी महत्वपूर्ण गोष्ठी हुई, जिसमे बा० जैनेन्द्रकुमार, पं० राजेन्द्रकुमार, बा० जयभगवान, श्री० कर्मानन्द, बा० कौशलप्रसाद, श्री लेखवती, पं० परमानंद शास्त्री आदिने प्रमुख भाग लिया । मै भी इस गोष्ठी में सम्मिलित था । बा० जैनेन्द्रकुमारजीके समाधानकारक उत्तरोंमें बड़ा आनंद आता था। क्या ही अच्छा हो, जल्सोंके समय इसी तरह विद्वानोंकी साहित्य-गोष्ठियाँ हों, और विभिन्न विषयों पर तत्वचर्चा की जाये तो विद्वानोंको ही नहीं, बरन् अन्य लोगों को भी बड़ा लाभ हो और सामयिक समस्याओं पर भी प्रकाश डाला जा सके ।
भूले पथिक ! कहाँ फिरते हो ? मार्ग विपर्यय है यह तेरा अनय-असुर ने किया अँधेरा विषय - व्यालने तुमको घेरा
ज्ञान-प्रकाश जगा जीवनमें; जन्म-मरण-दुख क्यों भरते हो ?
अनेकान्त
करण- कंटकाकीर्ण विजनमें मनोवृत्तियों के भव-वनमें राग-द्वेष के शल्य-सदन में
[ वर्ष ५
मध्याह्न ने श्री लेवनी जैन के नेतृत्व में महिलाओं की सभा हुई जिसमें अनेक महिलाओं के उत्तम व्याख्यान हुए ।
थिर हो बैठ हृदयमें सोचो, अमित कालमे क्या करते हो ?
पथिक !
मायाके इस विकट जाल में, जान बूझ क्यों पग धरते हो ?
श्रागन्तुक सभी सज्जनोंने वीर सेवा मन्दिर के कार्यों की प्रशंसा की । न्यायाचार्य पं० माणिकचंद्र जैनने बहुत खुशी प्रकट की। आपके वे शब्द ये हैं- "खुशी की बात है कि वीर सेवामंदिर में यह पुण्य दिवस पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार कई वर्ष से मना रहे है। बालोपयोगी जैनधर्म की पुस्तके यहांसे प्रकट हों तो बहुत अच्छा होगा; क्योंकि यहां अच्छे विद्वान मौजूद है ।"
अन्त मे मुख्तार साहबने बड़े ही मार्मिक शब्दों द्वारा अपनी लघुता प्रकट की ओर सबका आभार प्रदर्शित किया तथा सभापतिजी और अन्य आगन्तुक सज्जनोंको हार्दिक धन्यवाद दिया ।
स्थानीय सज्जनों में बा० नानकचंद्र, वैद्य रामनाथ, ला० जम्बूप्रसाद, ला० अनन्तप्रसाद, ला० महाराजप्रसाद, ला०] रोढामल, ला० सुखमालचंद, बा० प्रघ्म्नकुमार, बा० तिलोकचंद्र, ला० नेमिचंद्र आदि धन्यवाद के पात्र हैं जिन्होंने इस जल्सेमें हमें किसी न किसी रूप में सहायता पहुंचाई है। इस तरह यह जल्मा बड़े आनंद एवं समारोहके साथ संपन्न हुआ | दरबारीलाल जैन कोठिया
दद्द लाल जैन
रि० हेडमास्टर
भूले पथिक ! कहाँ फिरते हो ?
तेरा है जगसे क्या नाता ? सोच अरे क्या भूला जाता ? काम क्रोध मद क्यों अपनाता ?
कुटिल-काल के चंगुल में फॅस, अन्धकूपमें क्यों गिरते हो ?
अमर ज्ञानकी ज्योति जगाओ; शुद्ध-चिरन्तनचिन्मय ध्याश्रो; कर्म-वृन्दकी चिता जलाओ;
'दद्द' दिव्य ज्ञान-दर्शन से, क्यों नहि भव-सागर तरते हो ?