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किरण ६-७
चामुण्डराय और उनके ममकालीन आचार्य
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शिखर या चंद्रगिरिक ऊपरके गोम्मटजिन और दक्षिण जलसे सिद्धोंके चरण धुलते रहते थे। डा० उपाध्ये कुक्कुजिन । गोम्मटसारमं प्राचार्य नेमिचन्दने इन का खयाल है कि यह स्तंभ 'त्यागद ब्रह्मदेव' स्तंभ है, तीनोकी जय मनाई है। इनमेसे गोम्मटजिन नेमिनाथ जो बिन्ध्यगिरिपर है। की इन्द्रनीलमणिकी उस प्रतिमाके लिए कहा गया है ये गंगवत्र मारमिहके गरु अजितमेनाचार्य के जो पहले चामुण्डराय-वस्तिम थी परन्तु अब उसका ही शिष्य थे। अजितमन अपने ममयके बहत बड़े पता नही कि कहां गई और अब उसके बदले में प्रभावशाली प्राचार्य थे और वे आर्यमनके शिष्य थे। एचणके बनवाये हुए मन्दिरमस नेमिनाथकी दूसरी गोम्मटमारके कान उन्हें ऋद्धिप्राप्त गणधरदेवादिप्रतिमा लाकर स्थापित कर दी गई है जो पाँच फीट महश गुग्गी और भुवन-गुरु कहा है । चामुण्डरायके ऊँची है और दक्षिण-कुक्कुट जिन बाहुबलि म्वामीकी
कुट जिन बाहुबाल म्वामाका पुत्र जिनदेवन भी इन्हीके शिष्य थे। उस विशाल मूर्तिक लिए कहा गया है जो जगत्प्रसिद्ध
चामुण्डगय जैनधर्मके उपासक तो थे ही, मर्मज्ञ है। एक प्रवाद था कि भरत चक्रवर्तीने उत्तग्में
विद्वान भी थे । उनका कनड़ी भापाका विपष्टिलक्षण बहुबलिकी प्रतिमा निर्माण कराई थी, जो कुवकुट
महापुगण (चामुण्डराय-पुगण) प्रसिद्ध है उपलब्ध सोसे व्याप्त हो गई थी। इस वही न ममझ लिया
गदा-प्रन्थोमे यह मबसे प्राचीन गिना जाता है । इसके जाय, यह उमम पृथक ह,इम बतलाने के लिए दक्षिण प्रारम्भ में लिखा है कि यह चरित्र पहले (कृचि (१) विशेषण दिया गया है।
भट्टारफ,तदनन्तर नन्दिमुनीश्वर नत्पश्चात कविपरमेश्वर उक्त बाहुबलि स्वामीकी विशाल प्रतिमाके सुन्दर र फिर जिनमन-गुणभद्र इम प्रकार परम्पराक्रममे और आकर्षक मुग्यके विपयमें कहा गया है कि उमे चला आया है और उन्हीक अनुमार मै भी लिग्बना है। साथमिद्धिक देवान और सर्वावधि-परमाधि- गोम्मटमारक अन्तमें एक गाथा है जिसमे ऐसा ज्ञानके धारी योगियोने दृरसे देग्या'।
भाम होता है कि गोम्मटमारकी कोई ऐसी टीका उनके बनवाये हुए जिन मन्दिरका नाम 'ईसिप- (कनड़ी टीका) भी उन्होने लिखी थी जिमका नाम भार' या 'ईपत्प्राग्भार' था जो कि शायद इम समय वीरमत्तण्डी था। चामुण्डायवम्तिके नामसे प्रसिद्ध है। कहा गया है।
जेणाभयथं भुवग्मिजवरवतिरीटकिरण जलाया। कि उमका तलभाग बन जमा है, और उसपर मौन
महाण मुद्वपापा मागो गान्मटी जयउ ॥६७१-क.का. का कलश है।
१० गोम्मट्टमुतल्लिटिगं गोन्मटगयेण जा कया देसी। चामुण्गयने एक स्तंभ भी बनवाया था जिम
मी (मा) गयो (अ) चिरकालं गाम य वीरमत्तंही। ऊपर यक्षाका मृर्नियाँ थी और जिनके मुकुटोक किरा
हम गाथ काटक अन्वय नही बैटना । पाट भी ६ गाम्मटमंगहमुन गोम्मटामहरि गोम्मटाजणो य। शायद कुछ अशुद्र है। परन्तु यदि मचमुच ही चामुण्ड
गाम्मटगयविणिम्मियदाकावणुकुक्कुड जिगोजयउ॥६६८ गयकी कोई दम। या कनदी टीका हो, जिमका कि नाम ७ जेण विगिन्मि पडिमावयणं सव्वामद्धिदवहिं।
'चारमनडी' था, नो व केशवगिकी कर्नाटकी वृत्तिमे मवारमोहिजोगिहि विमो गोम्मटो जयउ ||६|| जुदा ही होगी, यह निश्चित है । एक कल्पना यह भी ८वजयलं जिणवणं ईमपभारं सुत्रएणकलमं तु |
होता है कि उन्होंने गोम्मटमारकी कोई देमी ( कनड़ी) तिहुबगपडिमाणिक्कं जेणकयं जयउ मा गयो ||७०॥ प्रतिलिपि की हो । केशववणीकी कनड़ी-वृत्ति के लिए
मिद्धलाक या अाठवा पृथवीका नाम 'ईपत्याग्मार है। देविए डा उपाध्यायका 'जीवतत्वप्रदविका श्रॉन गोम्मट उमीक अनुकरण म यह नाम रक्खा गया है । देखो, सार : इटम श्राथर पन्टु इंट' शीर्षक लेग्व। (इंडियन त्रिलोकमारकी ५५६ वी गाथा ।
कल्चर जिल्द ७, नं० १ । तथा (अ० वर्ष कि० ३-४)