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'चूनड़ी ग्रन्थ
(लेखक-पं0 दीपचन्द जैन पारख्या)
प्रास्ताविक निवेदन
प्रस्तुत गुटका ३६० पत्रीका है । प्रत्येक पत्र में अजमेर जिलम नसीराबाद छावनीस दो मील
२३-२४ अक्षराकी ३०-३२ पंक्तियां हैं । गुटके के अंत की दूरी पर देगटू' नामका एक गांव है, वहांक
में उसकी लोकसंख्या ८५०० दी है। परन्तु यह गुट
का १८१ वे पत्रस प्रारंभ होता है। इससे पूर्व के पत्र जैनमन्दिरके शास्त्रभंडारकी शोध करते हुए अाजस कोई ५ वर्ष पहिले मुझे एक प्राचीन हस्तलिखित
प्राप्त नही हो सके, जिनक खोज जानकी जरूरत है। गुटका मिला था, जो इस समय मेर पास है। यह
उपलब्ध भागमें जो जो अप्रकाशित पाट मिले हैं, गुटका कुरुजागल देशक अन्तर्गत सुवर्णपथ दुर्गम
उनक नाम इस प्रकार है:सानीपत नगरमें-वि० सं० १५७६ ज्येष्ठकृष्णा प्रति
(१) अध्यात्मप्रकृति संस्कृतमे । इस रचनाका निम्न पदाको, सिकन्दरशाह के पुत्र सुल्तान इब्राहीमक राज्य
अन्तिम अंश ही १८१ वे पत्रक शुरूमे पाया काल में लिखा गया था। और इस अग्रवालवंशी जाता है। शेष समूचा ग्रंथ पूर्व पत्रो में ही जिंदलगोत्रीय साधु जोल्हाके पुत्र संघई मेघाने समांझय। लिग्बाकरगुणचन्द्र भट्टारकक शिय ब्रह्म०मांडणको भेट “णीयमुदरम्यं । निःकर्म शर्ममयमेतिद शी(शां)किया था। संघई मेधा गुणचन्द्र भट्टारककी आम्नाय- तरं सः।। इति अध्यात्मप्रकृति १४८।” म था। गुटकक अन्त म गुणचन्द्र भट्टारकका गुरु- (२) मोड़ढलु-श्रावककृत आगमक छप्पय, जिनमें २४ परम्परा इस प्रकार दी है
दंडकांका वर्णन है। ... "काष्ठासंघ माथुरान्वये पुष्करगणे आचा- (३, ४) विनयचन्द मुनिकृत 'कल्याणकरासु' और ये श्रीमाह(ध)वमन देवान् तत्प? भट्टारक श्री उद्धर- 'चूनड़ी' । सनदवान , तत्प? भ० श्रीदेवसनवान् , 'तत्प? (५) पंचमेरु संबंधी बीस विहरमाण तीर्थकर जयभ. श्राविमलमनदवान् , "तत्पट्ट भ० श्रीधर्मसन- माला। देवान , ६९ पढे भ० श्रीभावसनदवान , "तत्पी भ० (६) भ० जयकीर्तिकृत पार्श्वभवान्तर के छंद । श्रीमहसकीर्तिदेवान, 'तत्पट्ट भ० श्रीगुणकीर्तिवान, नं २ मे ६ तक के पाठ अपभ्रंश भाषाके हैं। "तत्प भ० श्रीयश कीर्तिदेवान , तत्प? भ. श्रा- (७) भद्रबाहुरासके अन्तर्गत चन्द्रगुप्त के १६ स्वप्न, मलयकार्तिदेवान, 'तत्प? भ० श्रीगुणभद्रदेवान, प्राचीन हिन्दीमें है। १२तत्प भ० श्री० गुणचंद्र तच्छिप्य ब. मांडण- (5) पं० सोमदेव बघेरवालकृत प्रास्त्रवत्रिभंगीकी एपां गुरुणामाम्नाये"-(इसके बाद विन्दुवाल स्थान लाटी (पुरानी गुजराती) भाषाकी टीका, अपूर्ण । पर गुटका लिखाने वाले संधई मेघाकी वंशपरम्परा यह टीका नेमिचंद्र सि० चक्रवर्तीकी प्रास्रवत्रितथा काम्बिकपरिचय दिया है)।
भंगी पर जो श्रतमुनिने कनडीमें टीका लिखी * स्वस्ति श्री विक्रमार्क संवत्सर १५७६ जेट गांद १ पडिवा
पनि थी उसके आधार पर बनाई गई है। शुक्रांदने कुरु जागलदेशे सुवर्णपथनाम्निसुदुर्गे सिकन्दर- (९) हरिवंशपुराणकी मेधावी(मीहा)कृत संस्कृतव्यासादितत्पत्रमुल्तान (५) वाहिमुराज्यं प्रवर्तमाने .... ख्या का अंश-समवसरण वणन, संस्कृतमें। (इसके बाद 'काठामधे' श्रादि गुरुपरम्परा बाला पाट है) (१०, ११) संस्कृत में दो मालागद्य, जो फूलमालके