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गोम्मटेश्वरका दर्शन और श्रमणबेलगोलके संस्मरण
(ले०-५० सुमेरचन्द जैन दिवाकर, बी० ए० न्यायतीर्थ )
श्रमणबेलगोल मैसूर रियासत का अन्यन्त महत्त्वशाली के साथ २ पुनः भगवान गोमटेश्वरके लोकोत्तर दर्शनका
स्थल है। यह हासन रेलवे स्टेशनसे ३२ मील और पुण्य अवसर प्राप्त होगया। मैसूरसे करीब ६० मील पर है । बंगलोरसे यह १० मीलके मैं ३ जनवरी को वहा पहुंचा। रात्रिको भग्वानकी लगभग है। मैमुरके दीवानमाहबने एक बार कहा था कि मतिपर प्रकाश (Flood light) प्रवाह की व्यवस्था सम्पूर्ण सुन्दर मैमूरराज्यमे श्रमणबेलगोल सरश अन्य हासनके श्रेष्ठि श्री पुट्टस्वामी तथा उनके पुत्रों की सहायतासे स्थान नहीं है, जहां सुन्दरता एवं भव्यताका मनोहर होगई है, किन्तु जब हम वहां पहुंचे तो ज्ञात हुआ कि सम्मिश्रण पाया जाता हो।"
महापुद्ध के कारण प्रकाशका कार्य बन्द कर दिया गया है, यह स्थान जैनियो के लिये तो अन्यन्त पूज्य है ही, ताकि भावि अनिष्टकी सम्भावना न हो। प्रभु बाहुबलिकी किन्तु कलाके पुजारियों के लिये भी अत्यन्त श्रादरणीय एवं मूर्तिके दर्शनकी तीव्र उत्कण्ठा थी, अत: हम जैनवेदमहादर्शनीय स्थल है। प्रमणबेलगोलमे जैनश्रमण-तपस्वी पाठशालाके स्थानीय एक छात्रको साथमे लेकर पर्वतपर भगवान गोम्मटेश्वर (बाहुबली) की अत्यन्त उन्नत और चले गये, उसी समय चन्द्रदेव अपनी चतुर्दश कलाओंसे नयनाभिगम मूर्ति विद्यमान हैं, साथ ही वहां का मनोज्ञ अलंकृत हो उदित हुए थे। जिस पर्वत पर प्रभु विराजकल्याणी सरोवर जो कन्नडमे बेलगोल कहा जाता है, मान हैं, उसे इन्द्रगिरि, विध्यागिरि अथवा दोड्डवेट (बड़ा विशेष प्राकपा है। वहांसे श्रवण गोम्मटेश्वरका सुन्दर पहाड) कहते हैं। यह जमीनसे तो ४७० फीट ऊंचाई पर दर्शन नगरवासियों को होता है, इस प्रकार उस प्रदेशको है. किन्तु समुद्र-तलसे ३३४७ फीट पर है। पर्वतका व्याप श्रमणबेलगोला कहना संगत है।
चौथाई मील के लगभग है। नीचे से ऊपर तक पहुचनेके सन् १६४० की २६ फरवरीके महामस्तकाभिषेक लिए लगभग ५०० मीढ़ियाँ पहाडमे ही उत्कीर्ण हैं। महोत्सवपर श्रमणबेलगोल जानेका हमे शुभावसर प्राप्त प्रवेशद्वार बड़ा आकर्षक है; वहाँसे पर्वन बड़ा मनोहर हुया था। उस समय एक दिन रात्रिको करीब ४ घंटे दिखाई देता है। अन्य पर्वतोंके समान वह भीषण या भगवान बाहुबलीकी भव्यमृतिके शरणमे बैठनेका सौभाग्य दुर्भग नही दीखता है। पाषाण अत्यन्त चिकना और ढाल मिला था, तब प्रभुका दर्शनकर चित्तमे अनेक कल्पनाएं लिए हुए चित्तको हरण करता है। पर्वतके अासपासकी उत्पन्न होती थी. खेद इतना ही था, कि लेखनकी मामग्री सम्पूर्ण सामग्री ऐसी है जो नेत्रोंको अानन्द एवं शान्ति पासम न होनेसे उन कल्पनाओंको न लिख मका, फि भी प्रदान करती है। हम प्रवेशद्वारमेमे होकर पर्वत पर चढने कुछ कल्पनाएँ स्मृति-पथमे विद्यमान ही रह श्राई । कई लगे। क्षणभरमें अर्थात १० मिन के भीतर ही हम बार ऐसा विचार हुश्रा, कि श्रवणबेलगोलके संस्मरणरूप गोम्मटेश्वरस्वामीके समीप पहुच गए। उस समय चित्तमें कुछ लिखू किन्तु साथमें यह भी खयाल होता था, कि वृत्ति सबसे प्रथम भगवान बाहुबलिके दर्शनको आकलित यदि एक बार पुनः दर्शन करके लिखू तो विशेष प्रानन्द हो रही थी, अतः श्रापपाममे अन्य अनेक सुन्दर मन्दिरोंके प्राप्त होगा। सौभाग्यकी बात है, कि बैगलोर गोमटेश्वर- विराजमान होते हुए भी हम प्रभुके चरण कमलोंके रक्षिणी कमेटीकी बैठकमें सम्मिलत होनेके लिए २१ दर्शनार्थ सीधे पहुंचे। दिसम्बरको जाना पड़ा, अत: दक्षिणके जैन तीर्थोंकी वंदना उनके चरणोंकी वन्दना करनेके अनन्तर हम एक