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________________ अनेकान्त [वर्ष५ -Prerromoeoymseerecao.com-memiccousawrencICONICONI98 -B-ra pa BHARATIOBH b rameSURENCER.N IDAOOKa NaNCONSORIVARMADIMOONNOONAMOMIN@ econdstoreon cace conscam ECONICONICONICORNING:Bunder of स्व० लाला जिनदासजी संघवी मुलतानवासी जिन श्रीमान् ला० जिनदासजी संघवी दि० जैन ओसवालका स्वर्गवास गत द्वितीय है ज्येष्ठ वदी १३ गुरुवार के दिन ता० २१ जून १६४२ ई० को हो चुका है और जिनके देहावसानका समाचार पाउक 'अनेकान्त' की गत किरण नं०३-४ में 'वह मनुष्य नहीं देवता था' इस शीर्षकके नीचे पढ़ चुक न हैं, आज उन्हींका यह भव्य चित्र पाठकोंको भेंट किया जाता है। Brmaanitamin-rintention:CONOMICimiaominary tem पं० अजितकुमारजी जैन शात्री, मुलनानक शब्दों में 'आप मृर्तिमान परोपकार और मंबाकी मृनि थे, मञ्चरित्रके आदर्श थे. नगरमान्य न्यायाधीश थे, शरीरसे कृश किन्तु आत्मवल-मनोबल के धनी, अनुपम माहमी एवं धैर्यकी प्रतिमा थे तथा आतिथ्यसवाक प्रमुख पाठक थे । आपकी चतुर्मुखी प्रतिभा माधारण शिक्षा पानेपर भी प्रत्येक विषय में आगे दौड़ती थी। आपकी रमनामें अदभुत वाणीरस था-मानां सरस्वत ने अपने हाथोंसे उसपर मंत्र लिख दिया हो । साथ ही आप सफल व्यापारी भी थे, सतत उद्योगी और उत्साही थे, अच्छे समाज-सुधारक थे, धर्मके श्राश्रय थे, निरभिमानी और निरीह संवक थे, मादा रहन-सहन, के प्रेमी थे; विश्वमैत्री-गुणिप्रमोद, दयालुता आपमें साकार विद्यमान थी। आपकी आयु ५० वर्षमै भी अधिक पार कर चुकी थी किन्तु अापका उत्साह युवा पुरुपोंको भी लाजन करता था और इन्हीं सब गुणोंसे आप सर्वप्रिय थे।' निःसन्देह आपके निधनसे जैनममाजको भारी क्षति पहुंची है, । आपको सद्गतिकी प्राप्ति हो और कुटुम्बी जनोंको धैर्य मिले, यही अपनी भावना है। शास्त्रीजीने अपने उक्त लेखमें प्रकट किया था कि "आपने अपनी सावचेत दशामें अपने हाथमे लिख कर दान किया है।" परन्तु अभी तक उसकी कोई तफसील अपनेको जाननेको नहीं मिली, अच्छा हो उमे प्रकट कर दिया जाय । -सम्पादक
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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