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अनेकान्त
जैन समाजके होनहार युवकरत्न, बाल प्रोपे.मर मोहनलाल जी जैनकी पुनीत सेवामें सादर समर्पित
अभिनन्दन पत्र। होनहार युवक ! अाज अापको अपने मध्य देखकर हमारा हृदय खुशीके मारे उछल रहा है। श्राप जैनसमाजके ही नहीं अपितु भारतवर्ष के एक होनहार युवक हैं। श्राप विश्वविख्यात राममूर्तिजीके ममान योग द्वारा शारीरिक शक्तिको संगठित करके अाश्चर्यजनक ग्वेलोंका प्रदर्शन करनेवाले जैन समाजके प्रथम युवकरन हैं। _ वीर बालक! अाप प्रतापगढ़ निवामी मेठ अमृतलालजी जैनके सुपुत्र हैं । अभी श्रापकी प्राय सिर्फ १३ वर्षकी ही है। इतनी कम श्रायुमं ही ग्राप योग, श्रामन, एक्रोबेटिक्स, बेलेंमिग, लाठी, बनेटी, तलवार, भाला अादि व्यायामके अनुकरणीय एवं याकर्षक प्रयोगों में अति निपण हैं। श्राप-सा पुत्र पाने के लिये श्रापके माता पिता बधाई के पात्र हैं।
जैन समाजके गौरव! आपने इतनी अल्य अायुमै ही, मीनेवर तथा हाथ परसे मोटर माइकिल उतरवाना, फासी लगवाना, लोहेकी सलियोको गर्दन व छातीस मोडना तथा १०० पौण्ड वजनके पत्थर यादिको दांतसे उठानमं दक्षता
दिग्या कर अपने जैन कुलको ही नहीं अपितु समस्त जैन समाजके गौरवको ऊँचा किया है, तदर्थ श्राप धन्यवाद के पात्र हैं।
कुल दीपक ! अापकी शिक्षाकी तरफ जब हम अपने विचारोको फंकत है तो हमारा दिल खुशीके मारे उन्मन मा होकर बार बार यही कहता है कि अापने इतने अल्पकाल में जो योग विद्यामें इतनी दक्षता प्राम की है उसका श्रेय अापके गुरु प्रोफेसर मत्यपालजीको है, जो " शक्ति-योगाश्रम बम्बई" में भारतकी बाल सन्तानों को योग विद्या में निपुणता प्रदान कर रहे हैं। अापके गुमने अनेक विद्यायोका अध्ययन किया है, उनकी बाग-विद्या को देखकर सहसा मह कह उठता है कि अापके शिक्षक नी कलियुगी अर्जुन है। अत: हमारी हार्दिक भावना है कि श्राप हम श्रेयस्करी शिक्षामें उनरोत्तर उन्नति करते हुए अपनी जातिका उत्थान करें।
जैन जातिके उज्ज्वल भविष्य ! अापके आश्चर्यचकित कर देनेवाले कार्योंमे प्रभावित होककर प्रतापगढ़ स्टेट, मन्तगमपुर म्टेट, लुनावाडा ग्रादि स्टेटो, श्रीमानी, श्राफिसगं अादि अनेक महानुभावा ने ही आपको स्वर्ण, रजतपदक एवं कप व मार्टिफिकट प्रदान नहीं किये वरन केप्टेन जेम्स कमाण्डर हनीफ, डलहोजी इण्डियन रायल नंव्हीकी अोरस मी मार्टिफिकेट तथा ५०) 5. इनाम मिले हैं। भारतकं बड़े २ पत्रों ने भी श्रापकी भूरि भूरि प्रशंसा की है । अापका उज्ज्वल मुख, कान्निरूप शरीर और व्यायामके कार्य जैन समाज के प्रत्येक युवक के हृदय में स्फूर्ति, बल और माहम पैदा करते हैं । अत: यार जैन जातिके उज्जल भविष्य हैं।
वीर हृदय ! अापकी योग विद्याकी दक्षता किमको मोहित नहीं कर मकती ! अापने इम थोड़ीमी उम्र में इतनी शिक्षा प्राप्त कर के जिस चीर-हृदय का परिचय दिया है। उम के लिये हमारी वीर भगवानसे यही प्रार्थना है कि श्रार चिगयु दी और अपनी जाति और देशका मुम्ब उज्ज्वल करते हुए संमार में उन्नति-शिम्बर पर श्रारदा । अन्तमें हम श्रापकी योग्यताकी मगहना करते हुए भावना करते हैं कि आप संमार-विजयी हो।।
हम हैं आपकी उन्नतिक इच्छुक देहली ता०८-६-१६४२
वीर-सेवक-संघ देहलीके मदम्यगरण