________________
* श्रीदादीजी *
माता जिला महारनपुर के जन रईस स्वर्गीय जिस कामके लिए पुरुष भी उकता जाय उसको श्राप सहज
माननीकी धर्मपत्नी हैं, मेरे पिताकी सगी मामी माध्यकी तरह सम्पन्न करती रही हैं। इस बद्ध अवस्थामें होने से मोबादी है। स्थानीय जनता श्रापको बडीजी भी श्रापका इतना पुम्पार्थ- अवशिष्ट है कि श्राप भोजन नाबादीजीनाममे ही पुकारती है। यो श्रापका नाम बना लेती हैं. चक्की चला लेनी हैं और गाय-भैसको दहने 'गमी बाई है। आपकी अवस्था इस समय ८३ वर्षकी तथा दृध-दहीक बलोनका काम भी कर लेती हैं। माथ ही है। श्रापका जन्म देवन रि० फरीदकोट (पंजाब) में वि० एक अाश्चर्यकी बात यह है कि अंगोंमें बहुत कुछ शिथिलता संवत १९१७ में हुआ था।
|श्रा जाने और शरीरपर झुरियां श्राप के पिताका नाम कन्हैया-1
पड़ जानेपर भी आपके सिर लाल और माताका अनोग्बीथा।
का एक भी बाल अभी तक यद्यपि जन्मसे थाप अग्र
सफेद नही हया है। वाल वैश्यकुलमें उत्पन्न हुई
कोई ४५ वर्षकी अवस्था थी, परन्तु विवाहित होते ही
में आपको वैधव्यकी प्राप्ति श्राप जैनधर्ममें ऐसी परिणत |
हुई उसके छः वर्ष बाद ही होगई जैसी कि पशिडता चंदा
श्रापका देव-कुमार-सा इकबाईजी। भले ही आपकी शिक्षा
लौता पुत्र 'प्रभुदयाल' भी चल विशेष नही हुई–माधारण
बमा । जो बहुत ही बुद्धिमान भकामगदि स्तोत्र, भजन
तथा साधु-स्वभावका था । पग्रह, भृधरजनशतक और
उसमे थोडे ही दिन बाद श्राप जापाठकी पुस्तके ही श्राप
की पुत्री 'गुणमाला' बालपढ लेती हैं, फिर भी आपने |
विधवा होगई । और फिर शाम खूब सुने हैं और जैना
श्रापकी पुत्रवध भी २-३ वर्षचार सबन्धी बत नियम-उप
की पुत्री 'जयवन्नी को छोडवास तथा शीलमयमादि की
कर चल बसी। इससे आपके कोई भी बात ऐसी उठा नहीं |
ऊपर भारी संकटका पहाड़ टूट ग्क्स्वी जिसपर आपने दृढ़ताके
पडा ' परन्तु इस दुखावस्था माथ अमल न किया हो।
में भी आपने धैर्य तथा पुरमुख्य मुख्य यात्राएं भी श्रापने |
पार्थ नहीं छोडा, कर्तव्यसे मुग्ध पब ही की हैं-तीन महीने दक्षिण देशीय यात्रामे आप नहीं मोडा और श्राप मोंकी भाति बराबर निर्भय होकर सकटुम्ब मेरे साथ भी रही हैं और पूर्वकी यात्राओंमे भी जमीदारी के कार्य-संचालनमें लगी रही। ग्वगइगिरि उदयगिरि नक माथ रही हैं।
पुी गुणमाला तथा पोती जयवन्तीको शिक्षा देना भी श्रापका स्वभाव जीवन-भर बडा ही नम्र, प्रेमपूर्ण और अब श्रापका ही कर्तव्य रह गया था, जिसकी ठीक पूनि मेवा-परायण रहा है। कोई भी अतिथि घरपर पाये उसे दोनोंको घरप। रग्वनेमे नही हो सकती थी। अत: आपने अापने सादर भोजन कगये गिना जाने नहीं दिया। अतिथि- दोनोंको मेरे पास देवबन्द शिक्षाके लिए भेज दिया। जब मवामे श्राप बहुत दक्ष हैं। आपमें पुरुषों जैसा पुरुषार्थ मेरी धर्मपस्निका देहान्त हो गया तब मैंने इन्हें पंडिता
और वीग मी हिम्मन तथा होमला रहा है। चार-चार चन्दायाईजीके अाश्रममे भाग भिजवा दिया और इनकी भयो तक की धार आपने अकेले एक साथ निकाली हैं। शिक्षाका ममुचित प्रबन्धकर दिया । नगरके लोगों और
Post
य