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________________ किरण १२] मरुदेवी-स्वमावली नेक ह न होय नर्म बात बात माहिं गर्म, मान ठीक हो तो आपका जन्म मंत्रत् १६६० या इसके रहो चाहे हेम हर्म बस नाहीं पाँच है। श्राम-पासका अनुमानित किया जा सकता है। सं० १६६३ एते पैन गहे शमं कैसे हैं प्रकाश पर्म, मे नाटक समयसारकी रचना करते हुए पं. बनारसीदासजी ऐसे मूढ भर्ममाहि नाचै कर्म नाच है। ने, अोर सं० १७११ में पंचास्तिकायका पद्यानुवाद करते इम तरह कविवर भगवनीदासजीकी उपलब्ध सभी हुए जहानावाद निवामी पं० हीगनन्दजीने इनका उल्लेख रचनाएँ बढी सुन्दर हैं। ब्रह्मावलाममें आपकी रचनाएँ किया है। बहुत सम्भव है कि प्रयत्न करने पर आपकी सं० १७३१ से १७५५ तककी उपलब्ध होती हैं। इसके अन्य रचनाएँ भी उपलब्ध होजाएँ और उनपरस फिर बाप बाद कितने समय आप और जीवित रहे, यह कुछ भी का जीवन परिचय भी उपलब्ध होजाए: क्योकि १६८७ से मालूम नहीं हता, और न प्रयत्न करनेपर यही मालूम हो १७३१ क मध्यकी कोई रचना उपलब्ध नहीं है, इस लम्बे सका है कि आपका जन्म और मरण किस संवतम हश्रा है। ममयमे श्रापने कोई न काई रचना करूर की होगी। इस ममय आपकी संवत् १६८० से १७५५ तककी जो भी अाशा है विद्वान इस दिशाम प्रय श्राशा हे विद्वान इस दिशाम प्रयत्न करगे और भगवती रचनाएँ उपलब्ध है, उनसे ता सिर्फ यही कहा जा सकता है दास जीकी अभ्य किमी रचनाका पता लगाकर सचिन करने कि अनेकार्थनाममालाकी रचना करते समय आपकी उम्र की कग करेंगे। कमसे कम २४-२५ वर्षकी नरूर रही होगी, पदि यह अनु- --चीरसेवामन्दिर, मरसावा । श्रीदेवनन्दि-विरचितमरुदेवी-स्वप्नावली (अनुवादक-पं० पन्नालाल जैन साहित्याचार्य) [गत भादा माममे श्रीजनमन्दिर सेठका कुँचा देनीक शाम्बभण्डार पर प्रन्य-मची मम्बन्धी कुछ नोट्स लेन ममय मेरे मामने यह 'स्वप्नावली' आई. जो मुझे माहित्यकी दृष्टि से एक नई चील मालूम पड़ी और टलिये मैं इमे काम करानेके लिये अपने साथ ले अाया। इमकी रचना शब्दालङ्कागदिको लिये हुए बड़ी मुन्दर जान पड़ती है और इसके पहनेमे मङ्गीत जैसा अानन्द श्राता है। रचना 'मिद्धिप्रिय' स्तोत्रके दृगकी है और उन्ही देवनन्दि मुगिकी कात मालूम होती है जो 'मिद्विप्रिय स्तोत्रके कर्ता है। अनेकान्त के पाटकाको इसका रसास्वादन करानेके लिये अाज यह रचना उम अनुवाद के साथ नीचे प्रकाशित की जाती है जिसे पं० पन्नालालजी जैन माहित्याचायं सागग्ने मेरी थोड़ी सी प्रेरणाको पाकर बड़ी प्रसन्नताके साथ प्रस्तुत किया है और जिसके लिये मैं श्रापका बहुत अाभारी हूँ। अनुवाद के माथमें संस्कृत टिप्पणियोको लगाकर आपने हमके माहित्यक-धर्मको बोलने का जो यत्न किया है वह प्रशमनीय है और उमग इस पुस्तककी उपयोगिता बढ़ गई है । आशा है साहित्यमिक इसे पढ़कर जरूर प्रसन्न होंगे। -सम्पादक मातङ्ग-गो-हरि-रमा-वरदाम-चन्द्र मार्तण्ड-मीन-घटयुग्म-तडाग-वाधिसिंहासना-ऽमरविमान-फणीन्द्रगेह रत्नप्रचाय-दहना रजनीविरामे ॥शा ये मेदिनी-धरण-मन्दर! नाभिराज! स्वप्न यशोभवन ! मुन्दरनाभिराज ! दृष्टा मया शयिनया खल-नाप-राग' । १खलाना-दुर्जनानातापे गगी यम्य तत्सम्बुद्धौ हे ग्वलनापगग!
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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