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विश्व तत्त्व-प्रकाशक
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वर्ष ५ करण ६-७
* ॐ अर्हम् *
न का
| नीतिविरोधध्वंसी लोकव्यवहारवर्तकः सम्यक् । | परमागमस्य बीजं भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः ॥
वीरसेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम) सरसावा जिला सहारनपुर पाद-श्रावण वीरनिर्वाण सं० २४६८, विक्रम सं० १६६६
समन्तभद्र-भारतीके कुछ नमूने
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श्रीपद्मप्रभ-जिन स्तोत्र
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तत्त्व-संघोतक
पद्मप्रभः पद्मपलाशलेश्यः पद्मालयाऽऽलिगितचारुमूर्तिः ।
वो भवान भव्यपयोरुहाणां पद्माकराणामिव पद्मत्रन्धुः ॥ १ ॥
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जुलाई-अगस्त १६४२
'पद्म-पत्रके समान द्रव्यलेश्याके— रक्तवर्णाभ-शरीरके—धारक ( और इसलिये श्रन्वर्थसंज्ञक ) हे पद्मप्रभजिन ! पकी ( आत्मस्वरूप तथा शरीररूप ) सुन्दरमूर्ति पद्मालया - लक्ष्मी प्रालिंगित रही है- श्रात्मस्वरूप मूर्तिका अनन्तज्ञानादि-लक्ष्मी ने तथा शरीररूपमूर्तिका निःस्वेदतादि-लक्ष्मीने दृढ आलिंगन किया है, और इस तरह आपकी उभय प्रकारकी मूर्ति उभय प्रकारकी लक्ष्मीकेशोभाके साथ तन्मयताको प्राप्त हुई है । और आप भव्यरूप कमलोंको विकसित करनेके लिये उनका श्रामविकास सिद्ध करनेके लिये - उसी तरह भासमान हुए हैं जिस तरह कि पद्मबन्धु-सूर्य पद्माकरोंका - कमलसमूहका — विकास करता हुआ सुशोभित होता है।'