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________________ अनेकान्तके सहायक वीरसेवामन्दिरको फुटकर सहायता 'भनेकान्त' की किरण १.२ में प्रकाशित सहायताके अब तक जिन सजाने अनेकान्तकी ठोस सेवाओं के बाद वीरसेवामन्दिर सरसावाको ५६). फुटकर पनि सहायता निम्न सजनोंकी भोरसे प्राप्त हुई है, जिसके लिए मुक्त रहकर निराकुलतापूर्वक अपने कार्यमें प्रगति करने दातार महानुभाव धन्यवादके पात्र हैं:श्रीर अधिकाधिक रूपसे समाजसेवाओंमें अग्रसर होने २५) ला० कुन्थदासजी जैन, वाराबंकी (पिता श्री गुलाबलिये सहायताका वचन देकर उसकी सहायकश्रेणीमें अपना रायजीके स्वर्गवासके अवसरपर निकाले हुए दानमेंसे) नाम लिखाया है उनके शुभ नाम सहायताकी रकम-सहित २१)ला. मक्खनलालजी ठेकेदार, दरियागंज, देहली। इस प्रकार हैं: ५) बा. पक्षालालजी जैन अग्रवाल व ला० रतनलालनी २२५) बा. छोटेलालजी जैन रईस, कलकत्ता। जैन कपडे वाले (पुत्र-पुत्रीके विवाहकी खुशी में)। १०१) बा. अजितप्रसादजी जैन एडवोकेट, लखनऊ। ला. बाबूरामजी जैन, मालिक फर्म बाबूराम मूलचंद १०१) बा. बहादुरसिंहजी सिंघी, कलकत्ता। मोरगंन, सहारनपुर (लायब्रेरीमें कोई जैनग्रन्थ १००) साहू शान्तिप्रसादजी जैन, डालमियानगर । मँगानेके लिये) अधिष्ठाता 'वीरसेवामन्दिर' १००) बा० शांतिनाथ सुपुत्र बा० नन्दलाल जी, कलकत्ता। 'अनेकान्तं को सहायता १००) सेठ जोखीरामजी बैजनाय जी सरावगी, कलकत्ता। गत किरणमें प्रकाशित सहायताके बाद अनेकान्तको १००) साहू श्रेयाँसप्रसादजी जैन, लाहौर । द्वितीयमार्गसे १७॥) रु. की जो सहायता प्राप्त हुई है १००) बा० लालचन्दजी जैन, एडवोकेट, रोहतक । वह निम्नप्रकार है और इसके लिए दातार महाशय १००) वा. जयभगवानजी वकील आदि जैनपंचान, पानीपत धन्यवाद के पात्र है:१००) ला० तनसुखरायजी जैन, न्यू देहली। १०) गुप्त सहायता, सदरबाज़ार देहलीके उन्हीं परोपकारी ५१)रा-ब-बा- उलफतरायजी जैन रि०. इजीनियर, मेरठ महानुभावकी ओरसे जो इससे पहले इसी मदमें ५०) ला० दलीपसिंह काग़ज़ी और उनकी मार्फत, देहली। ३६॥) की सहायता भेज चुके हैं और जिन्होंने २५) ५० नाथूरामजी प्रेमी, हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर, बम्बई। अपना नाम पत्रमें प्रकट करनेसे मना किया है। २५) ला० रूढामलजी जैन शामियाने वाले सहारनपुर । (४ विद्वानोंको और 'अनेकान्त' फ्री भेजनेके लिए)। २५)बा० रघुबरदयालजी जैन एम०ए०करोलबाग देहली।७॥) लालचमीचन्दजी जैन सेठी, केकड़ी जि. अजमेर २५) सेठ गुलाबचन्दजी जैन टोंग्या, इन्दौर । (पांच संस्थाओं तथा व्यक्तियों को 'अनेकान्त' एक २५) ला. बाबूराम अकलङ्कप्रसादजी जैन, तिस्सा जिला वर्ष तक अर्धमूल्यमें देनेके लिये)। व्यवस्थापक 'अनेकान्त' मुजफ्फरनगर। (पृष्ठ २०८ का शेष) २५) सवाई सिंघई धर्मदास भगवानदासजी जैन, सतना। बनकर उनके स्वयं ज्ञानी बनें और समाजको ज्ञानी बनामेका २५) ला. दीपचन्दजी जैन रईस, देहरादून । २५) चा० प्रद्युम्नकुमारजी जैन रईस, सहारनपुर । सतत प्रयत्न करते रहें । मैं मानता हूं कि ये सब बाते महसे कह देना श्रासान है, किन्तु करना कठिन है, क्योंकि २५) मुंशी सुमतप्रसादजी जैन रि० अमीन, सहारनपुर । भाशा अनेकान्तके प्रेमी दूसरे सजन भी आपका इसके लिये दानियोंमें भी सुलझी हुई सदिच्छा होना आवश्यक है। जब तक उनकी समझमें यह बात भलीभाँति अनुकरण करेंगे और शीघ्र ही सहायक स्कीमको सफल नहीं बैठ जाती जब तक ग्रन्थागार या ग्रन्थाध्यक्ष इस दिशा बनानेमें अपना पूरा सहयोग प्रदान करके यशके भागी में एक कदम भी भागे नहीं बढ़ सकते । निस्सन्देह दानियों बनेंगे। की सदिच्छासे ही ऐसा साधक बुधजनोंका संग्रह हो सकता व्यवस्थापक 'अनेकान्त' है, इसलिये उनका ध्यान तो इस ओर सबसे पहिले जाना वीरसेवामन्दिर, सरसावा (सहारनपुर) चाहिये।"
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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