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________________ Registered No. A- 731. अनेकान्तके प्रेमी सज्जन 1 अनेकान्तसे प्रेम रखने वाले सज्जन सात प्रकारके हैं एक प्रेमी वेजो 'अनेकान्त' पत्रको प्रेमके साथ मँगाते हैं, पढ़ते हैं और दूसरोंको पढ़ने के लिये देते हैं; ये प्रेमी ग्राहक सज्जन हैं । दूसरे प्रेमी व जो 'अनेकान्त' पत्रको स्वयं मँगाते ही नहीं किन्तु दूसरोंको मँगानेकी प्रेरणा करते हैं और उन्हें ग्राहक बनाते हैं तथा अनेकान्त के लेखोंका परिचय देते हैं; ये प्रेमी प्रचारक सज्जन हैं । नोसरे प्रेमी व जो यह चाहते हैं कि 'अनेकान्त' पत्र बराबर चालू रहकर समाजकी ठोस सेवा करता रहे। सेवाके लिये उसे अधिकाधिक प्रोत्साहन मिले तथा घाटेके कारण उसके बन्द होनेकी नौबत आवे, और इसलिये जो पच्चीस, पचास, सौ या सौसे अधिक रुपयोंकी एकमुश्त सहायता प्रदान करके उसके सहायकोंकी चार श्रेणियों में से किसीमें अपना नाम लिखाते हैं; ये प्रेमी सहायक सज्जन हैं। ale प्रेमी व जो 'अनेकान्त' की सेवाओंसे प्रसन्न होकर विवाह शादी यादि दानके अवसरों पर अनेकान्तका बराबर ख़याल रखते हैं और उसे स्वयं सहायता भेजते तथा दूसरोंसे भिजवाते हैं, ये प्रेमी अनुसहायक सज्जन हैं । पाँचव प्रेमी - जो 'अनेकान्त' के लिये उपहार या पुरस्कारकी योजना करते हैं, उसके ग्राहकोंको उपयोगी ग्रन्थ उपहार में देते - दिलाते हैं तथा लेखकोंको उत्तम लेखोंके लिखनेकी प्रेरणा के लिये पुरस्कार निकालते हैं, अनेकान्त में प्रकाशित ऐसे लेखोंपर पुरस्कार देते हैं या उन्हें पुस्तकाकार में अलग प्रकाशित करके वितरण करते हैं, और इस तरह अनेकान्तके प्रचार में सहायक बनते हैं; ये प्रेमी प्रचार-सहायक सज्जन हैं । ad मी * जो 'अनेकान्त में लिखना अधिक पसन्द करते हैं, उसके योग्य लेखोंके लिये बराबर परिश्रम करते हैं और अपने लेखोंसे उसे ऊँचा उठाना तथा समृद्ध बनाना जिन्हें सदा इष्ट रहता है; ये प्रेमी सुलेखक सज्जन हैं। सातव प्रेमी के जो 'अनेकान्त' के लेखोंसे प्रभावित होकर यह चाहते हैं कि अनेकान्त-साहित्यसे जो लाभ हम उठा रहे हैं उसे वे दूसरे विचारक लोग भी उठाएँ जो अनेकान्तसे बिल्कुल अपरिचित हैं, उसके मंगाने की प्रेरणा से रहित हैं अथवा मँगानेके लिये थोड़े बहुत असमर्थ हैं, और इसलिये जो अपनी ओर से उन्हें अथवा जैन- जैनेतर संस्थाओं को अनेकान्त बिना मूल्य या अर्ध मूल्यमें भिजवाते है; ये प्रेमी परोपकारक सज्जन हैं। ऐसे परोपकारियोंके परोपकार कार्यमें अनेकान्त कार्यालय भी कुछ हाथ है, अर्थात चारको यदि अनेकान्त बिना मूल्य भिजवाना चाहते हैं तो उनसे १२) रु०के स्थानपर १०) रु० ही लेता है । अनकान्नके ऐसे सभी प्रेमियों के बढ़नेकी इस समय नितान्त आवश्यकता है, जिससे अनेकान्त पत्रको इच्छानुसार ऊँचा उठाया जासके और इसके जिस साहित्य के सृजन में इतना अधिक परिश्रम किया जाता है वह लोक अधिकाधिकरूपसे प्रचार पासके जनता उससे समुचित लाभ उठासके । व्यवस्थापक 'अनेकान्त' वीरसेवामन्दिर, सरसावा, ज़ि० सहारनपुर । प्रकाशक, मुद्रक पं० परमानंद शास्त्री वीरसेवामंदिर सरसावाके जिये श्यामसुन्दरलालद्वारा श्रीवास्तवप्रेस, सहारनपुर में मुद्रित
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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