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________________ किरण १:२] कविवर भगवनीदाम और उनकी रचनाएँ - अर्थ भनेक जु नामकी, माला भनिय विचारि ॥६॥ लघु सीता सतु- इस प्रथमे सीताके सतीत्वका गुरु गुणचंदु अनिंद रिसि, पंच महावत चार । अच्छा चित्रण किया गया है। यह भी पंचायती मंदिर सकलचन्त तिस पहभनि, जो भवसागर तार ॥६॥ देडलीक उमी गुटकेमे है जिमका परिचय ऊपर दिया गया तासु पट्ट [पुनि] जानिए. रिमि मुनि माहिंदसेन । है, और यह उम गुटकम शुरुके १७ पत्रोम दिया हुआ है। भट्टारक भुवि प्रगट जसु, जिनि जितियो रणि मैनु ॥६६॥ परन्तु ग्रन्थ-सूचीम हमका नाम नहीं दिया गया। मालूम सिंह ज सिहइ, [कविसु भगवतीदासु। हाता है ग्रन्थ-मची बनाते समय लघु मीता मतु और तिनि लधुमति दोहा करे, बहुमति करहु न हामु ॥७॥ अनेकार्थनाममाला इन दोनोंको एक ही ग्रन्थ समझ लिया खषु दीरघ मात्रा वरण, सबद भेद अवलोह। गया है। ये दोनों ग्रंथ गुट केके २६ पत्रांमे समान हुए है। बुधिऊन मबह सवारियहु, हीन अधिक जहं होइ ॥७॥ इनकी रचना मंवत् १६८७ में चैत्र शुक्रा चतुर्थी चंद्रवार इति श्री अनेकार्थ नाममाला पंडितभगोतीदासकृत दोहा के दिन, भरणी नक्षत्रम सिगद नगरम (दिल्ली-शाहदग) बंध बालबोध-देसभाषा समाप्तं ॥छ॥ म की गई है, जैसा कि उसके निम्न प्रशस्ति-पद्याम प्रस्तुन ग्रन्थोम तीन अध्याय हैं और वे क्रमश: ६५ प्रकट है:१२२.अौर ७१दीदी को लिये ० है । यह कोष हिन्दी भाषा- इन्द्रपुरी सम सिहरदि पुरी, मानवरूप अमरघुति दुरी। भाषी जननाके लिये बता । उपयोगी है। इसकी रचना अग्रवाल श्रावक धनवन्त, जिनवर भकिकरहिं समकंत ॥ बनारमीनाममालास १७ वर्ष बाद हुई है। अनार्थ शन्दों तहं कवि आइ भगोतीदास, सीतासुत भनियो पुनि मासु। का हिन्दीम ऐमा मुन्दर पाबद्ध कोष अब तक दूमग देवने बहु विस्तरु सरुवंद घनेरा, पढत प्रेम बाह चित्तरा॥ म नही पाया । कविवर भगवतीदाम जीकी भारतीय हिन्दी- एक दिवस पूरन हा नाही, अति अभिवाप रहा मनमाहीं। माहिन्यको यह अनुपम देन है। ग्रन्थ की रचना सुन्दर और ... ... ... ...... . ......... ... ... ॥ माम है। यहाँ पाठकोकी जानकारीक लिये 'मारग' और दोहा—तिहिं कारण लघु सुत करयो, देस चौपाई भास । 'गो' इन दो शन्दाके वाचक अनेक अर्थों वाले पद्य नीचे वंद जूम सबु छोडि कह, राधे बारह मास ॥ दिये जाने हैं, जिनमें प्रस्तुन काय महत्वका मटन दीम मोरठा-संवतु मुणहु सजान, सोलह सहरु सवासियह । पता चल मकेगा: चैति सुकल तिथि दान, भरणीमसि दिनि सो भयो। कुरकटु कापु कुरंगु कपि कोकु कुंभु कोदंदु। ___ इम ग्रंथम बारह मामांक मंदादरी-मीता प्रश्नोत्तर के कंजरु कमल कुठारु हलु मोड कोपु पविदंदु ॥५॥ म्पमे कविने रावण और मंदोदरीकी चित्तवृत्तिका परिचय करटु करमु केहरु कमटु कर कोलाहल चोरु। देते हा सोताके दृढतम सतीत्वका जो चित्रण किया है वह कंचनु काकु कपोतु अहि कंबल कलसरु नीरु ॥६॥ बड़ा ही मुन्दर और मनमाहक है। अत: यह ग्रंथ भी मत्रग्वगु नगु चातिगु वह खलु खरु खोदनड कुदालु । माधारणके लिये बहुत उपयोगी और शिक्षाप्रद है। पाठको भूधरु भूमह भुवनु भगु भटु भेकजु अरु कालु ॥७॥ की जानकारीके लिये आपाढ मासका प्रश्नोत्तर नीचे दिया मेखु महिषु उत्तिम पुरुमु पु पारसपाषानु । जाता है:हिमु जमु ससि सूरजु सलिलु बारह अंग बखानु ॥८॥ (मंदोदरी) दीपु कृपु कजलु पवनु मेघु सबल सब भृक्ष । चौपाईकवि सुभगोती उच्चरह ए कहियत सारंग ॥३॥ तब बोलह मंदोदरी रानी । ति अषाढ धन घट घहरानी ॥ -इति सारंगशब्दः। पीय गए ते फिर घर मावा । पामर नर नित मंदिर छापा। गो धर गो तरु गो दिसा गो किरना भाकास । जवहि पपीहे दादुर मोरा । हियरा उमग धरत नहि मोरा । गो इंद्री जल छन्द पुनि गोवानि जन भास ॥५॥ बादर उमहिरहे चौपासाातिय पिय बिनु तिहि उसन उसासा ।। -इति गोशब्दः। नन्हीं बंद मरत मरवावा । पावस मम भागमु परसावा ।
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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