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अनेकान्त
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है। जो अज्ञानी मानव संसार-यंक में फंसे हुए है, विषय- इम समालोचना परस पाठक कविवर भगवतीदासजी वामनाके गुलाम है तथा श्रात्म-तनकी ओर अग्रसर हो रहे की प्रकृति, परिमानि और चिनवृनिका कितना ही अनुभव हैं उन्हें संबोधित करके सम्मार्गपर लगानेका आपने भरसक कर मकते हैं । अस्तु । काववरकी इस ममय तीन रचनाएँ प्रयत्न किया है । अापकी कविता के उच्चादर्शका पता उपलब्ध हैं। अनेकार्थनाममाला, लघुसानामतु और ब्रह्मविलासकी कवितायाका अध्ययन करनेमे महज दीम ब्रह्मविलास । इन नीनो रचनाश्रीमसे अब तक मिर्फ ब्रह्मचल जाना है। उसमें लोकरंजन और ख्यानि-नाम-पूजादि बिलाम ही प्रकाशित हुआ है । शेष दोनों अन्य अप्रकाशित का कोई स्थान नहीं रहा है। अलंकार तथा प्रामाद गुणमे है। इनका शायद नाम भी अब तक प्रकाशम नहीं. अाया विशिष्ट होने के साथ माय आपकी रचना मरल, मरम एवं था। हालम वीर सवामन्दिरसे अनेकान्त द्वारा प्रकाशम गंभीर अर्थको लिये हुए हैं। कविताम अापने की कहीपर लाई जानेवाली देहली पंचायती मन्दिरके भण्डारकी ग्रंथउर्दू, गुजराती और अपभ्रंश प्राकृतक, शन्दका बहुत ही मूचीपरसे इन दोनों ग्रन्थाका पता चला है। इन तीनका सुन्दर प्रयोग किया है।
मंक्षित परिचय निम्न प्रकार है:कवि केशवदामजी हिन्दीक एक प्रसिद्ध कवि हो गए अनेकार्थ नाममाला-यह एक पद्यात्मक कोष है. हैं, जिनको शृङ्गार रसम अगाध प्रेम था। इतना ही नहीं जिमम एक शब्द के अनेकानेक अर्थोका दाहोंम संग्रह किया किन्तु वृद्धावस्थाम भी शृङ्गार-विषयक लालसा कम नहीं गया है। यइ पंचायती मन्दिर देहलीके एक गुटकम संगृहीत हुई थी। केशाके सफेद हो जाने पर भी उनका हृदय ।
है। गुटका प्राचीन और वह कोई ३०० वर्षसे भी अधिक विलामताकी कलुषित कालिमामे कलुपित था। परन्तु वृद्ध ।
पगना लिखा हुअा जान पड़ता है, लिपि पुगनी माफ तथा हानेके कारण वे अपनी वामनााकी पूर्ति करनेम अशक्य सुन्दर है, परन्तु कही कही लिखनेकी कुछ अशुद्धियो ज़रूर हो गए थे युवनियों एवं तरुण बान अनि मफेद केशको हैजा दूमग किमी प्रति परसे ठीक की जा सकती है। अन्ध देवकर उनके समीप जाना ग्राना बन्द कर दिया था. इसम का प्रशास्तम कविवरन अपना कोई परिचय न देकर रचना उन्हें असह्य पोड़ा होती थी अपनी हम अन्नपीडाको उन्होंने
के ममयादकको हा व्यक्त किया है । रचना संवत् १६८७ निम्न दोहेमें व्यक्त किया है :
म अाषाढ कृष्णा तृतीया गुरुवार के दिन श्रवण नक्षत्रमे केशव केशनि असिकरी, जैसी अरि न कराय।
शाहजहाँक गज्यकालम पूरी की गई है। परन्तु यह रचना चन्द्रबदन मृगलोचनी, बाबा कहि मुरि जाय ॥
किस स्थानपर की गई है यह प्रशस्तिम दिया जरूर है पर केशवदास जीने अपने को तथा रामक नाका मंतुष्ट करनं ठीक उपलब्ध नही होता । सम्भवतः इसकी और लघु सीताके लिये प्रसिकप्रिया' नामकी एक पस्तक बनाई थी. जमम सतुकी रचना देहली या शाहदरा दोनोमसे किसी एक स्थान नारीक. नन्वये शिग्वातक मभी अंगांका अनेक तरहकी परकी गई है। प्रशस्तिम सिहरदि' पाठ दिया है जो कछ उपमाओंसे अलंकृत कीर्तन किया गया है।
अशुद्ध जान पड़ना है, उसके स्थान पर 'महदरि' पाठ कहा जाता है कि कवि केशवदामने इस प्रस्तककी।
अधिक उपयुक्त जचता है । यदि यह ठीक हो तो इनका एक प्रति कविवर भगवतीदामक पाम ममालो ननार्थ की रचना स्थान सहदरा (शाहदरा) हो सकता है, जो देहलीसे थी, कविवरने उसे देग्वकर एक छन्द बनाया और 'रमिक- मिलता है; क्याकि प्रशास्तम दहलाका भट्टारक गदाक तान प्रिया' के पृष्ठ पर लिखकर वह पस्तक उन्दीक पाम वापिम मट्टारका---गुणचन्द्र, सकलचन्द्र और महेन्द्रसेनके नाम भेज दी, वह छन्द इस प्रकार है:
दये हैं। रचना के ममय भ० सकलचन्द्र के पट्टपर महेन्द्रसेन "बदी नीति लघु नीति करत है वाय-सरत बदबोय-भरी। विराजमान थे । पशास्तके पद्य हम प्रकार है:कोदा मादि फुनगनी मंडित सकल देह मनु रोग-दरी॥ मोलह सय रु सतासियइ, साढि तीज तम पाखि । शोणित-हार-मांस-मय मूरति तापर रीझत घरी घरी। गुरु दिनि श्रवण नक्षत्र भनि, प्रीति जोगु पुनि भाषि ॥६६॥ ऐसी नारि निरख कर केशव 'रसिकप्रिया' तुम कहाकरी॥" माहिजहाँके राजमहि, 'सिहरदि' नगर मंझारि ।