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अनेकान्त
विचार करें तो महात्मा गांधी तथा कांग्रेसका 'हिन्दुस्थानी' भाषाका सिद्धान्त उपयोगी उचित और श्रावश्यक प्रतीत हुए बिना न रहेगा। उनकी राष्ट्रीय श्रहिंसक भावनाका यह सहज फल है । जब जान या श्रनजानमें हमारे खाने-पीने पहिनने, चलने श्रादिके साधनोंमे लहरोंकी तरह अनेकों परिवर्तन हो रहे हैं और हमारी बोलचाल में स्टेशन, रेल, पोस्टग्राफिस आदि विदेशी शब्द भी पूरी तरह घुलमिल गए हैं तथा हमारी हिन्दीभाषा भी जब अनेक प्रान्तीय भाषाओं तथा उर्दू अरबीके शब्दोंको हमेशा से पचाती आई है तब 'हिन्दुस्थानी' के नामपर ही न जाने क्यो इस प्रकारका हायतोबा किया जाता है ।
[ वर्ष ५
कोई भी संस्था जिसका श्राधार और विकास श्रहिंसा सिद्धारसे होगा उसे सबकी बोली बोलना होगा सबक उद्वारकी चेष्टा करनी ही होगी । यही कारण है कि श्रमण-संस्कृति सदासे लोकभाषा के द्वारा ही सर्वजन - हिताय सर्वजन सुखाय जनताजनार्दनको अहिसक मार्ग दिखाती श्राई है और उसकी इस सार्वजनीन भावनामे ही उसकी प्राण प्रतिष्ठा है । यह संस्कृति साधनों के विषय में श्रहङ्कारको बढ़ाने वाले ऐकान्तिक आग्रहको स्वीकार ही नही कर सकती। इसका तो मुख्य लक्ष्य है सबकी बोली में सबके हिनके लिए सब तक श्रहिसाकी पुण्य विचारधारा पहुंचाना ।
जैनशास्त्र - भण्डार सोनीपत में मेरे पाँच दिन
[ ले ०. १० - बा० माईदयाल जैन, बी० ए० ( श्रानर्स) बी० टी० ]
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सोनीपत मेरा दूसरा निवास-स्थान है । यह देहली
२८ मील उत्तरकी तरफ देहली- अम्बाला-कालकारेलवे पर स्थित पुराना प्रसिद्ध नगर है। यहाँ चार जैनमन्दिर और दो चैत्यालय हैं। पंचायती मन्दिर विशाल है, इतना बड़ा मन्दिर दूर-दूर तक देखने मे नही आया । जैनियो की बस्ती होने के साथ-साथ यह नगर जैनपंडितोक लिये भी प्रसिद्ध है । स्वर्गीय पं० मथुरादास, पं० मेहरचन्द, पं० मुसद्दीलाल, पं० उमरावसह और मुन्शी श्रमनसिंह जैसे विद्वान यहीं पर हुए है, जिन्होंने अपने-अपने समय में जनसमाजकी खूब सेवा की है और धर्मके मार्गको कायम रक्खा है । आज भी पं० निरंजनदासजी हर प्रकार से अपना समय देकर हर रोज शास्त्र पढ़ते और समाजकी निःस्वार्थ भाव से धार्मिक सेवा करते हैं । परन्तु वेद है कि यहां के समग्र समाजमें अब आगेको कोई ऐसा व्यक्ति नजर नही आता जो इस काममे पंडितजीको सहयोग दे सके अथवा उनके बाद इस धर्म -कार्य को बालू रख सके ।
मुझे इन गर्मियो की छुट्टियो मे निजी कार्य से सोनीपत जाना पड़ा कुछ अवकाश होनेके कारण यह इरादा किया कि यदि सुयोग लग गया तो जैनशात्रभण्डार सोनीपत के हस्तलिखित ग्रन्थोकी सूची बना कर श्रद्धेय पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार, अधिष्ठाता वीरसेवा मन्दिर सरसावाको भेजूंगा, जिसे वे उपयोग में ला सके और जिसमे से कुछ आवश्यक ग्रन्थो को उस बृहत दिगम्बर जैन ग्रंथ-सूची मे भी शामिल कर सके जो गतवर्ष से वहां तैयार हो रही है । मुझे तथा सोनीपत जैनसमाजको अत्यन्त हर्प होगा, यदि इस परिश्रम के फलस्वरूप एक भी उपयोगी ग्रन्थ प्रकाशम आगया । मेरा विश्वास है कि ४०-५० ग्रंथ इस सूची में ऐसे है जो अभी तक प्रकाशमे नही आए है ।
इस शास्त्र भण्डारमे ४०० हस्तलिखित ओर ६०० मुद्रित ग्रन्थ है और उनमें कुछ वृद्धि होती ही रहती है ।
यद्यपि मै अपने ही घर गया था, तथापि मै इसे अपनी एक साहित्यिक यात्रा ही समझता हूँ । इसलिए