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अनेकान्त
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ऐसा जो कहा गया है उससे यह भी ध्वनित होता है कि तीन कारणोंका दर्शन, ज्ञान, चारित्रके क्रमसे निर्देश है। भाष्यकी रचना उस समय हुई है जब कि तत्त्वार्थसत्रपर जैमा कि निम्न सबसे प्रकट है'सर्वार्थसिद्धि' आदि कुछ प्राचीन दिगम्बर टीकाएँ बन सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः॥ १॥ चुकी थीं और उनके द्वारा दिगम्बर समाजमे तत्वार्थसत्रका अत: यह सत्र श्वेताम्बर आगमके साथ पूर्णतया अच्छा प्रचार प्रारंभ हो गया था। इस प्रचारको देख कर संगत नहीं है। वस्तुत: यह दिगम्बरसत्र है और इसके द्वारा ही किसी श्वेताम्बर विद्वानको भाष्यके रचनेकी प्रेरणा मोक्षमार्गके कथनकी उस दिगम्बर शैलीको अपनाया गया मिली है और उसकेद्वारा तत्त्वार्थसत्रको श्वेताम्बर बनाने है जो श्रीकुन्दकुन्दादिके ग्रंथामे सर्वत्र पाई जाती है। की चेष्टा की गई है, ऐसा प्रतीत होता है। ऐसी हालत में (२) श्वेताम्बरीय सत्रपाठके प्रथम अध्यायका चौथा भाष्यको स्वयं मूल सूत्रकार उमास्वातिकी कृति बतलाना सत्र इस प्रकार हैऔर भी असंगत जान पडता है।
जीवाऽजीवाम्रवबन्धसवरनिर्जरामोक्षास्तत्वम । सूत्र और भाष्यका आगमसे विरोध
इसमे जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा
और मोक्ष, ऐसे सात तन्वोका निर्देश है। भाप्यमे भी सत्र और भाष्य दोनोंका निर्माण यदि श्वेताम्बर
“जीवा अजीवा आम्रवा बन्धः संवरो निर्जग मोक्ष आगोंके आधारपर ही हुआ हो, जैसा कि दावा है, तो
इत्यप सप्तविधार्थतत्वम एते बा सप्तपदार्थास्तत्वानि" श्वे. आगमोंके साथ उनमेंसे किसीका जरा भी मतभेद,
इन वाक्योके द्वारा निर्देश्य तत्वोंके नामोके साथ उनकी असंगतपन अथवा विरोध न होना चाहिये। यदि इनमेसे
संग्ख्या सात बतलाई गई है, और तन्व तथा पदार्थको एक किसी में भी कहींपर ऐसा मतभेद, असंगतपन अथवा
सचित किया है। परन्तु श्वेताम्बर श्रागममे तत्त्व अथवा विरोध पाया जाता है तो कहना होगा कि उसके निर्माण
पदार्थ नव बतलाए हैं; जैसा कि 'स्थानांग' आगमके का अाधार पूर्णतः श्वेताम्बर अागम नहीं है, और इस
निम्न सूत्रमे प्रकट हैलिये दावा मिथ्या है। श्वेताम्बरीय सम्रपाठ और उसके
"नव सम्भावपयत्था पण्णत्त । तं जहा-जीवा भाष्यमें ऐसे अनेक स्थल हैं जो श्वे. श्रागोंके साथ
अजीवा पुण्णं पावो श्रामवा संवरो निज्जरा बंधो मतभेदादिको लिये हुए हैं। नीचे उनके कुछ नमूने प्रकट
ट मोकग्वो।" (म्थान : मू०६६५) किये जाते हैं:
सात तत्वोंके कथनकी शैली श्वेताम्बर श्रागममि है (१) श्वेताम्बरीय भागममें मोक्षमार्गका वर्णन करने
' ही नही, इसीसे उपाध्याय मुनि श्रात्मारामजीने तन्वार्थसूत्र हुए उसके चार कारण बतलाये हैं और उनका ज्ञान, दर्शन,
का श्वे. आगमके साथ जो समन्वय उपस्थित किया है चारित्र, तप, इस क्रमसे निर्देश किया है, जैसाकि उत्तरा
उसमे वे स्थानांगके उक्त सत्रको उद्धत करनेके सिवाय ध्ययन सत्रके २८ वै अध्ययनकी निम्न गाथाओंसे प्रकट है
श्रागमका कोई भी दुसरा वाक्य ऐसा नही बतला सके मोक्खमग्गगई तच्च सुणेह जिणभासियं। जिसमे सात तत्त्वांकी कथनशैलीका स्पष्ट निर्देश पाया चउकारणमंजुत्तं नाणदंसणलक्खणं ॥१॥ जाता हो । सात तत्त्वोके कथनकी यह शैली दिगम्बर हैनाणं च दंसणं चेव चरितं च तवो तहा। दिगम्बर सम्प्रदायमें साततत्वों और नव पदार्थोका अलग एस मग्गुत्ति परुणत्तो जिणेहि वरदसहि ॥ २॥ अलग रूपसे निर्देश किया है। दिगम्बर-सत्रपाठमें यह नाणं च दंसणं चेव, चरिच तवो तहा। सत्र भी इसी रूपसे स्थित है। अत: इस चौथे सत्रका एयं मग्गमुप्पत्ता, जीवा गच्छंति सोग्गई ।।३।। आधार दिगम्बरश्रत जान पडता है-श्वेताम्बरश्रुत नहीं। नाणेण जाणई भावे दसणेण य सद्दहे। चरित्तण निगिरहाइ तवेण परिसुज्झई ॥३५॥ *सव्वविरो वि भावहि णवयपयत्थाहं सत्तसच्चाई। परन्तु श्वेताम्बर-सूत्रपाठमें, दिगम्बर सूत्रपाठकी तरह,
-भावनामृत ६५