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वर्ष ५ किरा ५
विश्व तत्त्व-प्रकाशक
* ॐ अर्हम् *
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| नीतिविरोधी लोकव्यवहारवर्तकः सम्पन् । परमागमस्य बीजं भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः ॥
वस्तु तत्त्व-संघातक
वीर सेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम) सरसावा जिला सहारनपुर द्वितीय - ज्येष्ट, वीरनिर्वाण सं० २४६८, विक्रम सं० १६६६
समन्तभद्र-भारती के कुछ नमूने
[ % ] श्रीअभिनन्दन-जिन स्तोत्र
गुणाभिनन्दादभिनन्दनो भवान्, दयाषधं क्षान्तिसखीम- शिश्रियत् । समाधिनं त्रस्त दुपोपपत्तये, इयेन नैर्ग्रन्थ्यगुणेन वायुजन् ॥ १ ॥
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अचेतने तत्कृतबन्धजेऽपि च ममेदमित्याभिनिवेशिक प्रहात् ।
प्रभंगुरे स्थावरनिश्चयेन च क्षनं जगत्तत्त्वमजियहद्भवान् ॥ २ ॥
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' ( हे अभिनन्दन जिन 1) गुणांकी अभिवृद्धि - श्राप के जन्म लेते ही लोक में सुख-सम्पत्यादिक गुंके बट जानेमे -- ग्राप 'अभिनन्दन' इस सार्थक मंजाको प्राप्त हुए हैं । श्रापने क्षमामखी वाली दयावधूकी अपने श्राश्रयमे लिया हैदया और क्षमा दोनोंको अपनाया है और समाधिवे-शुक्लध्यानचे - लक्ष्य को लेकर उसकी मिद्धिके लिये श्राप उभय प्रकारके निर्ग्रन्थत्व के गुरमे युक्त हुए हैं - श्रापने बाह्याभ्यन्तर दोनों प्रकार के परिग्रहका त्याग किया है ।'