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________________ *-১3 वर्ष ५ किरा ५ विश्व तत्त्व-प्रकाशक * ॐ अर्हम् * न क अ | नीतिविरोधी लोकव्यवहारवर्तकः सम्पन् । परमागमस्य बीजं भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः ॥ वस्तु तत्त्व-संघातक वीर सेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम) सरसावा जिला सहारनपुर द्वितीय - ज्येष्ट, वीरनिर्वाण सं० २४६८, विक्रम सं० १६६६ समन्तभद्र-भारती के कुछ नमूने [ % ] श्रीअभिनन्दन-जिन स्तोत्र गुणाभिनन्दादभिनन्दनो भवान्, दयाषधं क्षान्तिसखीम- शिश्रियत् । समाधिनं त्रस्त दुपोपपत्तये, इयेन नैर्ग्रन्थ्यगुणेन वायुजन् ॥ १ ॥ *-->> अचेतने तत्कृतबन्धजेऽपि च ममेदमित्याभिनिवेशिक प्रहात् । प्रभंगुरे स्थावरनिश्चयेन च क्षनं जगत्तत्त्वमजियहद्भवान् ॥ २ ॥ ज़न १६४२ ' ( हे अभिनन्दन जिन 1) गुणांकी अभिवृद्धि - श्राप के जन्म लेते ही लोक में सुख-सम्पत्यादिक गुंके बट जानेमे -- ग्राप 'अभिनन्दन' इस सार्थक मंजाको प्राप्त हुए हैं । श्रापने क्षमामखी वाली दयावधूकी अपने श्राश्रयमे लिया हैदया और क्षमा दोनोंको अपनाया है और समाधिवे-शुक्लध्यानचे - लक्ष्य को लेकर उसकी मिद्धिके लिये श्राप उभय प्रकारके निर्ग्रन्थत्व के गुरमे युक्त हुए हैं - श्रापने बाह्याभ्यन्तर दोनों प्रकार के परिग्रहका त्याग किया है ।'
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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