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________________ विषय-सूची १ समन्तभद्र-भारतीके कुछ नमूने " पृष्ठ १६६/१० एक मुनिभक्त (पद्यकहानी) श्री भगवत्' जैन २०२ २ श्वे. तत्वार्थसूत्र और उसके भाष्यकी जाँच संपादक १७३११ जीवन इसका नाम नहीं है (कविता) [श्री 'भगवत् २०३ ३ शान्ति-भावना (कविता)[पं० काशीराम शर्मा 'प्रफुल्लित'१८११२ प्रश्नोत्तरी-[बा. जयभगवान वकील २०४ ४ वह देवता नहीं, मनुष्य था [ दौलतराम 'मित्र' १८२१३ जीवस्वरूप-जिज्ञासा (पश्नावली)-[जुगलकिशोर मु० २०५ ५ रान० अमोघवर्षकी जैनदीक्षा [प्रो० हीरालाल एम.ए.१८३ १४ अनेकान्तबहिर्लापिका-[पं० धरणीधर शास्त्री २०६ ६ वीरशासन और उसका महत्व-[पं० दरबारीलाल जैन१८८१५ सेठ भागचंदजीके भाषण के कुछ अंश ७ श्रमणसंस्कृति और भाषा-[पं० महेन्द्रकुमार न्या. १६३९६ भट्टारकभण्डार मूडविद्रीके कुछ लि० ग्रंथोकी सूची २०६ ८ जैनशास्त्र सोनीपतमें मेरे पाँचदिन माईदयालबीए.१९८१७ पंचायती मंदिर सोनीपत के कुछ लि० ग्रन्थोंकी सूची २११ ६ आबू-अान्दोलन-[बा. जयभगवान वकील २०७ अनेकान्तकी सहायताके चार मार्ग १-२५), ५०) १००) या इससे अधिक रकम देकर | बराबर ख़याल रखना और उसे अच्छी सहायता भेजना सहायकोंकी चार श्रेणियोर्मिसे किसी में अपना नाम लिखाना। तथा भिजवाना जिससे अनेकान्त अपने अच्छे विशेषाङ्क २-अपनी ओरसे असमर्थोंको तथा अजैन संस्थानों निकाल सके, उपहार ग्रंथोंकी योजनाकर सके और उत्तम को अनेकान्त फ्री बिना मूल्य या अधमूल्यमें भिजवाना लेखीपर पुरस्कार भी देसके। स्वतः अपनी पोरसे उपहार और इस तरह दूसरोंको अनेकान्तके पढनेकी सविशेष प्रेरणा ग्रंथोंकी योजना भी इस मदमें शामिल होगी। करना । (इस मदमें सहायता देने वालोंकी ओरसे प्रत्येक --अनेकान्तके ग्राहक बनना, दूसगेको बनाना और दस रुपयेकी सहायताके पीछे अनेकान्त चारको फ्री अथवा | अनेकान्तके लिये अच्छे २ लेख लिखकर भेजना, लेखोंकी पाठको अर्धमूल्यमें भेजा जा सकेगा। | सामग्री जुटाना तथा उसमें प्रकाशित होने के लिये उपयोगी ३-उत्सव-विवाहादि दानके अवसरोंपर अनेकान्तका चित्रोंकी योजना करना, कराना ।-व्यवस्थापक श्रनेकान्त' प्रार्थनाएँ 'अनेकान्त" किसी स्वार्थ -बुद्धिसे प्रेरित होकर अथवा चाहिये और हो सके तो युक्ति-पुरस्सर संयतभाषामें लेखक आर्थिक उद्देश्यको लेकर नहीं निकाला जाता है, किन्तु को उसकी भूल सुझानी चाहिये। पीरसेवामन्दिरके महान् उद्देश्योको सफल बनाते हुए लोक "अनेकान्त" की नीति और उद्देश्यके अनुसार लेख हितको साधना तथा सच्ची सेवा बजाना ही इस पत्रका एक लिखकर भेजने के लिये देश तथा समाजके सभी सुलेख्यकों मात्र ध्येय है। अत: राभी सज्जनोंको इसकी उन्नतिमे को श्रामन्त्रमा है। सहायक होना चाहिये । सहायताके चार मार्गोंपर ख़ास तौर "अनेकान्त" को भेजे जाने वाले लेखादिक कागज़की से ध्यान देना चाहिए। | एक और हाशिया छोड़कर सुवाच्य अक्षरों में लिखे होने जिन सज्जनोंको अनेकान्तके जो लेख पसन्द आएँ, चाहिये । लेखोंको घटाने, बढ़ाने, प्रकाशित करने न करने, उन्हें चाहिये कि वे जितने भी अधिक भाइयोंको उनका लौटाने न लौटानेका, सम्पूर्ण अधिकार सम्पादकको है। परिचय करासकें जरूर कराएँ। अस्वीकृत लेख वापिस मँगाने के लिये पोष्टेज खर्च भेजना __ यदि कोई लेख अथवा लेखका अंश ठीक मालूम न आवश्यक है। लेख निम्न पते से भेजने चाहियें :-- हो, अथवा धर्मविरुद्ध दिखाई दे, तो महज उसीकी वजह से किसीको लेखक या सम्पादकसे द्वेषभाव न धारण करना सम्पादक 'अनेकान्त' चाहिये, किन्तु अनेकान्त-नीतिकी उदारतासे काम लेना | वीरसेवामन्दिर, सरसावा, जि. सहारनपुर
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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