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एक साहित्य-सेवी पर घोर संकट
ऐसा कौन जैनी अथवा हिन्दी-साहित्यका प्रेमी होगा का देन', कि एकाएक बर ईमे बम-गोलोंकी श्राशंकासे जो हिन्दी-ग्रन्थ-रत्नाकर कार्यालय हीराबाग, बम्बई के भगदड़ मची ! शान्तिभंगके खयालसे भापने भी अन्यत्र मालिक श्रीयुत पं. नाथूरामजी 'प्रेमी' के नामको न जानता जाना उचित समझा और तदनुसार चालीसगावमे डेरा हो । पाप जैनसमाज और हिन्दी-संसार में वर्षोंमे साहित्य- जमाया । अभी कुटुम्बीजनोंके साथ अपने कार्यालयका सेवाका कार्य कर रहे हैं। आपके द्वार सैकड़ों अच्छे-अच्छे श्राधा सामान भी श्राप वहाँ भेज न पाये थे, सामानके ग्रन्थ प्रकाशमें श्राए हैं और हजारों-लाखो व्यक्तियोंने बण्डल भी पूरी तौरसे खुलने न पाये थे कि चालीसगाँवमें उनसे लाभ उठाया है। श्रापका सारा जीवन साहित्य-सेवा जो दुर्घटना घटी उसे लिखते हुए हृदय काँपता और लेखनी में ही व्यतीत हाहै। साहित्य मेवाकी आपको अनुपम थर्गती है ! आपकी आशाओका केन्द्र, आँखोका नूर, लगन है, इसीसे माणिकचंद्र ग्रन्थमालाके संचालकाने शुरू बुढ़ापेका सहारा, इकलीता पुत्र चि० हेमचन्द मोदी से ही आपको अपनी ग्रंथमालाका मंत्री चुन रक्खा है। अचानक टाइफाइड फीवरसे बीमार हो गया। समाचार
उत्तम प्रकाशक ही नहीं किन्त श्रेष्ठ लेखक और पाते ही आप वहाँ दौड़े गये, चिकित्साके लिये बहुत कुछ सम्पादक भी हैं। आपके सम्पादकग्वमे कितने ही वो दौड़-धूप की, कितने ही डाक्टरको जुटाया, परन्तु किसीकी तक 'जैनहितैषी' पत्र भी निकलता रहा है, जिसने जैन
एक न चली। और हेमचन्द १५ दिनकी बीमारीमें ही समाजकी भारी सेवा की है। आपका हिन्दी ग्रन्थ-रत्नाकर
१६ मईको रातके १२ बजे परलोक सिधार गया !! इससे कार्यालय हिन्दी में उत्तमोत्तम ग्रंथोके प्रकाशनके लिए
प्रेमीजीका कुलदीपक बुझ गया, उनकी श्रोखोके भागे प्रसिद्ध है, जिसकी कीर्ति देश-विदेश में व्याप्त है और अच्छे
अँधेरा छागया । और उन्हें समझ नहीं पड़ रहा है कि अच्छे विद्वान आपके द्वारा प्रकाशित साहित्यके प्रशंसक हैं,
अब क्या करे और कहाँ जाएँ। हमकी युवती स्त्रीका धापको अच्छे ठोम एवं लोक-हितकारी साहित्यको प्रकाशन
श्राक्रन्दन और दो छोटे छोटे बोका रोदन उन्हें और भी करनेकी खाम धुन और लगन है-थर्डक्लास साहित्यको
बंचन किये देता है। इस घोर संकटके समय आपने किसी अपने कार्यलयले काशित करना उचित नही अभागे पिताके रूपमे जो दर्दभरा पत्र पं० परमेष्टिदासको समझते । यदि अन्य कितने ही प्रकाशकोंकी तरह आपने लिखा है और जो जनमित्र' में प्रकाशित हुआ है उसे प घर्डक्लाम साहित्य प्रकाशित किया होता तो आप कभीके
कर रोना पाता है और प्रेमीजीकी वर्तमान मन.स्थिति एवं लखपती बन गये होते. परन्तु यह श्रापको कभी इष्ट नहीं मनोव्यथाका साफ चित्र धोखोंके सामने खिंच जाता है। हुश्रा । आप उस प्रकारके साहित्य-प्रकाशनको देश, धर्म और निःसन्देह, प्रेमीजी पर यह भारी बमगोला गिरा है और समाजकी सच्ची सेवा नही समझते, इसीसे प्रकाशकोंमे श्राप इससे उनपर जो घोर संकट उपस्थित हुया है उसका को ऊँचा स्थान प्राप्त है और आप गौरवकी दृष्टिसे देखे वर्णन नहीं हो सकता । हेमचन्द्र इकलौता पुत्र ही नही जाते है। स्वभाव भी आपका बडाही प्रेममय सौम्य, उदार, था किन्तु अतिशय संयमी, उदार, सुशील और ३२ वर्ष सरस, कोमल तथा दयालु प्रकृतिका बना हुआ है। आप की अवस्थाको प्राप्त एक प्रतिभाशाली विद्वान पुत्र थासमय-समयपर कितने ही विद्यार्थियोंको स्कालशिप श्रादिके अनेक भाषाओंका पंडित और लेखक था। प्रेमीजीके शब्दों द्वारा उनके अध्ययनमे सहायता भी पहुंचाते रहे हैं। इस मे "जिसको जन्म देना हर एक पिताके लिए गौरवका तरह समाज आपके ऋणसे बहुत कुछ ऋणी है। कारण है।" प्रेमीजीने जसे सब योग्य बनाया था और वह
साहित्यसेवामें मग्न हुए श्राप अानन्दके साथ अपना उनके कार्यालयके सारे भारको सँभालता हुअा उन्हें बहुत जीवन व्यतीत कर रहे थे-'न ऊधोका लेन और न माधो कुछ निश्चिन्त कर रहा था। योगका भी उसने अच्छा अभ्यास