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किरण ३-४ ]
सीतल-सेवामंदिर, देहलीके लिये अपील
१-सैट्रल बैंक आफ इण्डिया, देहली
सहायता भेजने के पतेः २ - बा० रतनलालजी Ex ML.C., B. Sc. LL. B बिजनौर ३ - बा०चन्दूलालजीजैन 'अख्तर' B.A., वकील, कोषाध्यक्ष, दरीबा कलां, देहली निवेदक:
१ - साहू शान्तिप्रसादजी डालमियानगर
२ - चम्पतरायजी जैन, बार एट. लॉ०
३ - साहू श्रीयामप्रसाद जैन, डायरेक्टर भा०बीमा कं०, लाहौर ४ - लालचन्द जैन Advocate, राहतक ५ - राजेन्द्रकुमार जैन, डा० इञ्चार्ज भा०बी०कं०, लाहौर ६- लालचन्द जैन बीड़ी वाले, देहली
७ रनलाल जैन Ex MLC महामंत्री, बिजनौर बालचन्द कौलल्ल (सभापति परिषद्), सागर
६ - उग्रसैन जैन, MALL.B. मधुरा
१० - सिंघई श्रीनन्दनलाल, बीना इटावा
११ - राज्यवैद्य कन्हैयालाल जैन, कानपुर
१२- जमुनाप्रसाद जैन सबजज
१३ - जुगलकिशोर जैन, मग्मावा
२०- निर्मलकुमार जैन श्राश
२१- कामताप्रसाद जैन श्रा० मजिस्ट्रेट, अलीगंज २२ - मूलचन्द किशनदास कापल्या, सूरत २३- बलवीरचन्द जैन श्रा० मजिस्ट्रेट, मुफ्फ़रनगर २४ - राजकिशन जैन बैंकर्स, देहली २५-जयभगवान जैन, B.A.L.L.B. पानीपत २६-बरातीलाल जैन, बैकर्स, लखनऊ २७-कबूलचन्द मित्तल, एडवोकेट, लाहौर २८ - प्रा० हीरालाल जैन M A, अमरावती २६ – राजमल गुलाबचन्द बैंकर्स, भेलसा
३० - मिघई डालचन्द, सागर
३१ - (रा.सा.) देवीमहाय अकाउंटेट जनरल, बड़वानी
३२- भगवानदास जैन, सागर
१४- मेट लक्ष्मीचन्द, भेलसा
३३ - खुवीरसिंह जैन सर्राफ, प्रकाशक वीर, देहली
१५ - ननसुरवराय जैन, डायरेक्टर तिलक बीमा कं०, न्यू देहली ३४ - सिंघई कस्तूरचन्द जैन B.A.LL. B दमोह १६ - उग्रसेन जैन Principal, मेरठ ३५ - मथुरादास जैन समैया, सागर १७–चन्दूलालजैन अख्तर’B A LL.B कोषा परिषद्, देहली ३६ - T. L, Junankar, Subjudge, खुरई १८ - लेखवती जैन Ex. M.L.C, अम्बाला ३७-रायबहादुर नोदमल, अजमेर १६-महेन्द्र सम्पादक, श्रागरा पंच, आगरा ३८ - उग्रमैन जैन बड़ौत
"हमें पता नही कि प्रकृतिके दरबार में उन भयंकर समझे जाने वाले प्राणियोंका स्थान कहाँ है ? परंतु हिमा-द्वारा हम प्रकृति के कानूनोंको कभी न समझ सकेंगे । ऐसे पुरुषोंके वर्णन हमारे पास मौजूद हैं जिनकी दया मनुष्यों को व्याप्त कर उसे लांघ गई थी, और जो भयंकर हिंस्र पशुओ के बीच रहते थे । समस्त जीवन - सृष्टिमें कोई ऐसा अतिरिक्त संबंध जरूर है कि शेर, सिंह, बाघ और सांपोंने उन मनुष्यों को कोई उपद्रव नही पहुँचाया जो निर्भय होकर उन पशुओं के मित्र बनकर उनके पास गये थे ।"
"अगर साधर्म सच्चा धर्म है तो हर तरह
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व्यवहारमें उसका आचरण करना भूल नहीं बल्कि कर्तव्य है । व्यवहार और धर्मके बीच विरोध नही होना चाहिये । धर्मका विरोधी व्यवहार छोड़ देने योग्य है । "सब समय सब जगह संपूर्ण अहिंसा संभव नही" यों कहकर अहिंसा को एक ओर रख देना, हिंसा है, मोह है, ज्ञान है। सच्चा पुरुषार्थ तो इसमें कि हमारा आचरण सदा अहिंसा के अनुसार हो । इस तरह आचरण करने वाला मनुष्य अंतमें परम पद प्राप्त करेगा। क्योंकि वह संपूर्णतया अहिंसाका पालन करने योग्य बनेगा । और यों तो देहधारीके लिये संपूर्ण हिंसा बीज रूप ही रहेगी।"
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- 'विचारपुष्पोद्यान भाग २'