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________________ १६४ श्रनेकान्त जैनधम भूषण, धमदिवाकर स्व० ब्रह्मचारी सीतलप्रसादजीका स्मारक सीतल सेवामन्दिर, देहली के लिये ५००००) रु० की अपील > [ वर्ष ५ प्यारे जैन बन्धुओ ! स्त्र० प्र० सीतलप्रसादजीने अपने जीवन काल में जो स्वाये उन मजकी की हैं वह किसी से डिपी नही है । उनका समस्त जीवन परोपकारमे ही व्यतीत हुआ। काल करालने उन्हें हमसे छीन लिया। ऐसे परोपकारी महान व्यक्तित्वा भौतिक शरीर भले ही नष्ट हो गया परन्तु उनका यशस्वी शरीर सदैव बना रहेगा | ब्र० जीने ४० वर्ष तक देशक कौने २ में घूमकर जैनधर्मका प्रचार किया, युवकों को समाज सेवा के लिये तैयार किया । धनिकवर्ग से खूब दान कराया, जगह बोर्डिंग और अनेक जैनस्स्थाएं स्थापित कराई गरीब छात्रोंके लिये छात्रवृत्तियोका प्रबन्ध कराया । सरल भाषामे करीब १०० ग्रन्थ लिखे । अर्जेन विद्वानाम जैनधर्मका प्रचार करके उनके हृदय पर जैनधर्मका सिक्का जमाया, तीर्थोंका प्रबन्ध कराय, बहुत से जैनको जिनकी श्रद्धा जैनवमे से हट गई थी उन्हें पक्का जैन बनाया । व्र० जीने एक नहीं, सैक्ड़ो उपकार जैनसमाजपर किये है। जो जैन इतिहास मे स्वर्णाक्षरोम लिखे जायेंगे और जैनसमाज सदैव उनका ऋणी रहूंगा। भा० दि० जैन परिषद् के वह केवल संस्थापक ही नहीं थे बल्कि इसके प्रारण थे । यद्यपि परिषद् उनके प्रति कृतत्रताके ऋण को चुकाने में असमर्थ है तथापि श्रद्धावे पुष्प के रूप में परिषदने अपनी २०-३-१६४२ की मीटिंग में स्व० व्र० जीके स्मारकके रूप में देहलीमे मीनल सेवा मन्दिर बनवाने का प्रस्ताव पास किया है और निश्चया किया है कि एक आदर्श बत्ती बनाई जावे । जिसमें अनुसंधान मन्दिर, लाइब्रेरी, परीक्षा बोर्ड, प्रकाशन कार्यालय, शिक्षामन्दिर, सेवाश्रम, ज्योगशाला आदि धार्मिक और सामाजिक संस्थाये स्थान पाये । इस योजनाको चालू करनेके लिये परिपने फिलहाल ५००००) का फण्ड इकट्ठा करने की घोषणा की है। परिपद् कार्यकारिणी समितिका विचार है कि आगरेकी दयाल बाग़ सरीखी आदर्श संस्था ब्रह्मचारीजी की पुण्य स्मृति में जैनममाज के सामने उपस्थित की जावे । वैसे तो स्व० ब्र० जी द्वारा समस्त जैनसमाजका किसी न किसी रूपमें उपकार हुवा है । परन्तु शिक्षित भाईयों का जो उपकार उनके द्वारा हुवा है वह किसीमें छिपा नही है । जैन शिक्षित भाइयोंमें जो कुछ भी धर्म प्रेम और समाज सेवाका भाव आज पाया जाता है उसका श्रेय ब्र०जीको ही है । श्रतः हम जैन समाज के समस्त भाईयो से सादर निवेदन करते है कि वह ५०००० ) हजारके पण्डकी पूर्ति शीघ्र से शीघ्र करके इसके संयोजको की हिम्मत और साहस बढ़ायें । स्वयं इसमें अच्छी रकम प्रदान करें तथा अपने मित्रों से सहायता दिलवायें । तन, मन, धनसे जैसे भी बन सके इस प्रयोजनाको सफल बनाकर सुयशके भागी बनें | इस संकट तथा भयानक समयमे लक्ष्मीका सदुपयोग कर लेना ही बुद्धिमत्ता है । सहायताका तमाम रुपया सैन्ट्रल बैंक आफ इण्डिया, देहलीमे भा० दि० जैन परिषद् के खाते में जमा किया जावेगा ।
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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