SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण १२] दही बड़ोंकी डांट घटीमें दलकर दो दो टुकड़े किये गये, रात भर पानी "क्या कहते हो, यह कि शत्र कोई न हमारा? मे डाले गये, मसल मसलकर हमारी खाल उतारी छि:जिसने कर्तव्य-माग पर गमन विचारागई, सिला-लोढ़ीसे रगड़ रगड़ कर पीसे गये, नमक- जो वीरो की भाँति माग पाक्रमणित करतामिर्च-मसाले के साथ घोटे गये, तेलमे तले गये, फिर है, अवश्य ही वह बन जाता शत्रु-विधाता ॥ पानी में डाले गये, निचोड़ निचोड़ कर दहीम पटक दुश्मन कोई है नहीं, तो तुम कर्म अपात्र हो। गये,-इतनी परिषद जय की तब कही जाकर बड़े अथवा कहने दीजिये, कर्म-क्षेत्र के छात्र हो । बन पाये हैं जनाब ! बड़ा बननक उम्मेदवार धोके बाजों की न कमर यदि तुमने तोड़ी। ज्ञानूबा , अब आप बतलाइये कि क्या इस प्रकार कुपथ-गामियो की न अगर वह-टोली फोड़ी ।। की परिपह आपने कभी जय की है ?-हमतो तुम्हे एक तो फिर तुमने भ्रात, किया क्या हमें दिखाओ ? लम्बे अर्मेमे देख रहे है, तुम्हारी दृष्टि(लक्ष) अभी युद्ध-क्षेत्र में भीरु बने, क्यो हमे लुभात्रो ! शुद्ध नहीं है। उसमें दोप हैं नाम कमाना चाहते, तजो आज ही भीरुता। १ तुम शंङ्कित (भयभीत) भी हो। शुद्ध भाव से मित्रवर, ग्रहण करो कर्तव्यता ।।*" २ तुम कांक्षित (इदियविषय-भोगाभिलापी) ज्ञानचन्द्र-(सिर भु.काकर) तथास्तु।-आप भी हो। धन्य हो, आपके सदुपदेशसे मेरी आत्मा आज ३ तुम दीन-हीन जनांसे ग्लानि भी करते हो। अंधकारीसे प्रकाशमें आगई, इसके लिये मै आपका मद भी करते हो। अत्यन्त आभारी हूँ। ४-५ तुम भय, आशा, प्रीति और लोभके वश असत्यमार्गियोकी प्रशंमा तथा संस्तव भी करते हो। आँख खुली तो ज्ञानचन्द्रने देखा-दही बड़े मौजूद और इस तरह दृढता छोड़ लोक-हितकी उपेक्षा कर है और वे सभी चुप चाप अपनी अपनी जगह बैठे हैं। जाते हो। परन्तु उनके अपने हृदयमें आन्दोलन शुरू है। विकार दही बड़े-क्यो हैं न ये दोष? बाबू , हम और विचार दोनोकी गुत्थमगुत्था होरही है। अंतमें मानते हैं कि तुम उदार हो, पर-सेवक हो, भद्र विकार हारा, विचारकी विजय हुई। दही-बड़ोंकी परिणामी हो, परंतु इतनेसे ही अगर अपनेको बड़ा डाट असर कर गई। मान बैठो तो भूल करते हो, ज्ञानू! यह मागे बड़ा टेढ़ा है । देखो हम तुम्हें कुछ सलाहें बतला देते हैं, ज्ञानचन्द्रकी दृष्टि (लक्ष) अब शुद्ध है। उनमें उन पर ध्यान रखते हा चलोगे, घबड़ाओगे नही, आत्म-विश्वास और दृढ़ता (चारित्र) नजर आती है। तो ठीक ठिकाने पहुंच जाओगे, और दसरों के लिये अब तो वे जनमतकी नहीं, जनहित की पर्वाह करते हैं। मार्गदर्शक भी बन जाओगे You have no enemies, you say? "अगर तुम्हारा निश्चय है यह, तुम्हे बड़ा ही बनना है। Alasl my friend, the boast is poorतो परजन का त्याग भरोसा, आत्म-श्रद्धा करना है। He who has mingled in the pray लोगों की पर्वाह करो मत मनमें तुम दृढ़ता धारो। of duty, that the brave endure ढीले पड़कर जन-मन-रंजन की चिन्ता को भी टारो॥"* Must have made foes! If you have none Small in the work you have done, “When you have resolved to be You've hitno trator on the bap great abide by yourself and do not You've never turned the wrong to tight weaking try to reconcile yourself You've been a coward in the fight with the world." (Emerson) (Charles Mackay)
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy