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________________ मध्यप्रदेश और बरारमें जैनपुरातत्व ( लेखक - मुनि फांतिसागर ) AXAA या एक कला-प्रधान देश है, क्योंकि तो दूर रही, उनपर ध्यान तक भी नही दिया जाता । की अवस्थामें कई शिल्प स्थापत्य यो ही नष्ट हो गये । जो कुछ भी शेष रहे हैं उनकी भी रक्षा न होगी तो न मालूम भविष्य मे क्या होगा ? पुरातन काल से ही कलाको इस देशमें बहुत महत्व दिया जाता रहा है । इस देशने अनेक क्लाविदों को उत्पन्नर कलाको विस्तृत किया है। भारतकी प्राचीन सर्वोत्कृष्ट फलाएँ आज भी समस्त विश्वक आति कर रही है। आज अभारतीय जिनने देश कला-कौशल्य का दावा करते हैं वे संभवतः भारतीय कलाका मुफाबिला किसी हालत में भी नही कर सकते । यहाँ के निवासी कलाविद्वारा निर्मित साहित्य में कलाका विशेष रूपसे प्रतिपादन किया गया है । भर्तृहरिने तो यहाँ तक लिखा है कि 'कलाविहीन मानव-जीवन पशु तुल्य है।' इमी फलाफी] सर्वव्यापकता स्वतः सिद्ध हो जाती है। यहां पर यह न भूलना चाहिये कि कला नाना प्रकारकी होती है । जसे कि ग्रंथ निर्माण कला, शिल्प स्थापत्य कला, गृह-निर्माणकला आदि भिन्न भिन्न प्रकार की कलाओं के विवेचन वरदेवा यह स्थान नहीं है । इसके लिये तो स्वतन्त्र निबन्धकी यता है । भारतीय प्राचीन शिल्प-स्थापत्य के इतिहास में जैन शिल्प स्थापत्यका एक विशेष स्थान है। उसमे भी मध्य फालीन गुर्जर-शिल्प स्थापत्य कला जितनी जैनियों में पाई जाती है उतनी अन्यत्र उपलब्ध नहीं होती। भारतीय शिल्प स्थापत्य के इतिहास मे जैन-शिल्पस्थापत्यका हिस्सा सर्वोत्कृष्ट है । यों तो जैनियोषी शिल्प स्थापत्य कला समस्त भारतमे फैली हुई है, जिनमें से कईके विवरण भी प्रकाशित हो चुके हैं। सी०पी० और बरार प्रान्तमे जैनियोंका काफी प्रभुत्व है । अतः यहाँ भी कुछ स्थापत्य कला के नमूने पाये जाते हैं। पर जैनी लोगों द्वारा अपनी संस्कृतिक गौरवको बढ़ाने वाले उन प्राचीन शिल्प स्थापत्योकी रक्षा करनी हम यहाँ पर इस प्रातमें पाये जाने वाले कतिपय जैन-शिल्प-स्थापत्य का मेक्षित परिचय पराते हैं । जो अभी तक शायद श्रप्रकाशित है। आशा है, यह पापों को चिर एवं पुत्रोको पथ-प्रदेश क सिद्ध होगा । रोहण - पूर्वकालमें यह नगर पूरा नितिके शिखरपर पहुंचा था ऐसा तत्र स्थित भग्नावशेषो से ज्ञात होता है । पुरातन काल मे रोहाबाद नामसे उक्त शहर मशहूर था। आलमगीर (औरंगजेब) का एक सूत्रा भी वहां रहता था। वहां के बालाजीके मन्दिर के सामने वाले खेतमे परीब ३|| फीट लम्मी और २ फीट चौड़ी पद्मासनस्थ प्राचीन अखंडित वेताम्बर जैनमृति पड़ी हुई है । यद्यपि मूर्त्तिपर लेख उत्पीर्णित नहीं है, पापा पर से जाना जाता है कि यह मृति ६०० साल पूर्व की होनी चाहिये । मूर्ति बहुत ही सुन्दर एवं मनोज्ञ है। बगल मे ही तीन फीट लम्बा और दो फीट चौड़ा स्तंभाकार रूप बना हुआ है । जिसमें चारों ओर श्वेताम्बर मूर्त्तियाँ खुदी हुई हैं। तथा वहाँ पर शिव मन्दिर में चक्रेश्वरी एवं त्रिदेवीकी वलापूर्ण मृतिये बहुत ही दुरावस्था में वर्तमान है । इनके अतिरिक्त और बहुतसे जैनंतर देव-देवियांची मृतिये वहाँ पर पड़ी हुई है । यदि कोई उक्त मूर्तियाँ ले जाने वाला होवे तो कोई प्रकार भी रोक टोक नहीं है । कारंजा - दहाँसे सात कोरूपर अवलिया बाबाका एक स्थान है जहाँपर आजू बाजूक ग्रामीण लोग विश्राम करते हैं । वहाँ एक सुन्दर स्तम्भपर चारों ओर दिगम्बर जैनमृतियां उल्लिखित हैं । ६०० साल पूर्व
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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