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________________ किरण ३-४] मध्यप्रदेश और बरारमें जैनपुरातत्व को त्रास होतो हैं। वही चहानांपर और भी जैन- ऐतिहासिक दृष्टिले यह नगरी काकी प्राचीन है। खास मूर्तियां खुदी हुई है। अफसोस इस बातका है कि कर यहांपर बाद्धवर्मको विशेपता रही है । एवं पाश्चाउक्त स्तम्भ जीनमें लगा दिया गया है । कारंजा लाड़ त्य शंषमतावलम्बियोकी संख्या अधिक रही हो ऐसा जैनियोका केन्द्र है। सोलहवी शताविम यहाँके एक तत्रस्थित अवशेपोसे ज्ञात होता है। फिर भी वहांपर जैनश्रावकने बहुतसे जिनमन्दिर एवं ज्ञानभंटाकी जनमूर्तियां भी उपलब्ध होती हैं। कितनी ही मूर्तियां भिन्न भिन्न नगरामें स्थापना की थी ऐसा मेरे संग्रहके जैन मन्दिर के पाछेक भागम एक देवाके मन्दिरमे एक महत्वपूर्ण प्रतिमा-लेखमे जाना जाता है । हम पड़ी हुई है। संभवतः ५०० वर्ष पूर्व की होनी चाहिये। वहांके नगरनिवासियोसे उसकी सुरक्षाके लिये आशा वहांमे डेढ़ मील दूरी पर एक विजासनकी गुफामें रग्वे क्या ? तीन विशालकाय मूर्तियां उत्कीणित हैं। कहा जाता है आर्वी-यहाँके सैतवालके मन्दिर में एक सन्दर कि ये मूर्तियाँ जैन धर्म की हैं। हमारे खयालमें यह धातकी मनि पड़ी हुई है। यह मति उत्तर भारतीय मूतियाँ जनियोकी न होकर बौद्धधापी है । क्योकि कलाको शरीरपर वस्त्र पड़ा हुआ है और विजासनका संबंध चाहिये ।। लेग्य नही है । अपरिचित व्यक्तियोको बौद्धधर्मस है न कि जनधर्नस । यहांका पूर्ण इतिहास ऐसा प्रतीत होता है कि यह मूर्ति भगवान बुद्धदेवकी वर्तमानमें हम लिख रहे है। होनी चाहिये और इसीसे वे लोग इस मूर्तिको पूजा सिंधी-मिंधी ग्राम केलसरसे करीब ७ मील पर श्रचनामें नहीं लाते । पहिले लाते थे। है। वहाके दिगम्बर जैनमन्दिरमें बहुत सी पुरातन मेलमर-यह गांव वामे नागपुर जाते हये २० जैनमूतियाँ है। वहीं मन्दिरमे ३६ इञ्च ऊँची पद्मावती वे मीनपर है। वहांक प्राचीन जीर्ण दुर्गके खंडहरों देवीकी कलापूर्णबड़ी मनोज्ञ प्राचीन प्रतिमा श्रवमें किरते फिरते निम्नोक्त दो मूर्तियां देखने में आई स्थित है। मस्तकपराज स्थित है। मस्तकपर जिन भगवानकी मूर्ति रखी हुई है। थीं । दगके ऊपर के गणपति मन्दिरके पीछेके भागमें मूर्तिक आभूपणास ज्ञात होता है कि करीब १३ वी एक पुरातन वापिकामे करीब एक फलङ्गि दर दो शताब्दिकी होनी चाहिये । यह मृति शिल्पकलाफी फीट चौड़ी और चार फीट लम्बी दिगम्बर जैनमति हाष्टम महत्वपूर्ण हा दृष्टिम महत्वपूर्ण ही नहीं अद्वितीय है। हपका विषय वंडित अवस्थामें विद्यमान है। मालूम होता है इस है कि प्रतिमा बिल्कुल अवंटित है। मतिको किमीने बुद्धिपूर्वक खंडित किया है। कलाकी नागपुर-यह नगर मध्यप्रान्तम व्यापारका केन्द्र दृष्टि में इस मूर्तिका कोई खास महत्व नहीं है । आगे होनेके कारण तथा अन्य कारणों के सबब बहुत चलकर एक दृसरी मूवी वापिका-के पास जो घने महत्वपूर्ण समझा जाता है। यहां के अजायब घरमें खंडहरोमें है-तीन फीट चट्टानपर श्वेताम्बर पद्मा- श्वेताम्बर एवं दिगम्बर मूर्तियां काफी संख्या में विद्यसनत्य खुदी हुई है। उपरोक्त मूर्तियोसे पता मान है। वहां के कुछ लेख भी मैंने लिये हैं। चलता है कि यहांपर जैनियोंकी संस्था विशेष परि- सिवनी-यहांक दिगम्बर जैनमन्दिर मध्यभारत मागमें रही होगी । कहा जाता है पुरातन काल में में प्रसिद्ध है। इन मंदिरोम सात मूर्तियां इतनी यह स्थान इतना ऊँचा था जमा कि आज नागपुर है। प्राचीन है जा क्रमशः तेरहवीं और पन्द्रहवी शताब्दि आज भी वर्षा कालमें वहांपर बहुतमी चीजें उपलब्ध की हैं। ये मूर्तियां घुनसरसे लाई गई हैं। होती हैं। संभवतः यह दुर्ग भासलोने बनवाया होगा। छपारा यहांक पंचायती मन्दिरमें एक मूत्ति ___ भद्रावती-मध्यप्रदेशके इतिहासमें भद्रावती श्याम पापाणकी रखी हुई है जो घुनसौरमे लाई गई यह शुभ नाम बड़े ही गौरवके साथ लिखा जाता है। थी। इस मूर्ति के दोनों ओर खड़ी मूर्तियाँ खुदी हुई
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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