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________________ किरण ३-४] क्षत्रचूड़ामणि और उसकी सुक्तियाँ १५३ अर्थात्-निर्धनके प्रशंसनीय संपूर्ण गुण जागृत नहीं होते, रमणियोंकी स्वाभाविक चेष्टाएँ हृदयको सम्मोहित करने और तो क्या विद्यमान ज्ञान भी शोभाको नहीं प्राप्त होता। वाली होती हैं। इस कारण ग्रंथकार उच्च तथा निर्मल प्रसिद्ध अंग्रेज कवि ही. ग्रे ने अपनी अमर रचना चरित्र वाले पुरुषों के लिए स्त्री-सम्बन्धये बचनेका उपदेश 'एलेजी (Elegy) में निर्धनताकी तीव ठंडपे तुलनाकी देते हुए कहते हैंहै और लिखा है कि इसके द्वारा प्रामाका सुन्दर निझर अंगारमहशी नारी नवनीत-ममा नराः। वर्फके समान जम जाता है ।* तत्तत्मानिध्यमात्रेण द्रवेत्युसा हि मानसम ७-४१॥x नारी-निरक्षण: मलापवामहामादि तदज्यं पापभीरु।। गुणवती नारियोंके विषयमे प्राचार्य के बालया वृद्धया मात्रा दुहित्रा वा व्रतस्थया ।।5-४२॥ महत्त्वपूर्ण उद्गार क्या हैं इसका पता इसमे अर्थात-नारी अंगारके तुल्य है और पुरुष मक्खनके चल सकता है कि उनमें जीबंधरकुमारकी माता विजयाका समान ह इस कारण नाराका समापतास पुरुषका श्रतःकरण वर्णन करते हुए लिखा है कि वह महागज सायंधरके द्रवीभूत होता है। राज्यासनके श्राधे भागमे पाकर बैठी थी। इसी प्रकार श्रत: पापसे डरने वाले व्यक्ति को बालिका, वृद्धा, सूरिकल्प श्राशाधरने भी गणसम्पन्न महिलाओंकी गौरव माता, पुत्री तथा वतस्थाके साथ (एकान्तमे) वचनालाप, पूर्ण अवस्था बताई है: हंसी श्रादि छोडना चाहिये। धर्मश्रीशर्म कीत्येक केतनं हि पतिव्रताः स्त्रियोंकी रूचिका वर्णन इस प्रकार करते है(मागारधर्मामृत) अप्राप्त हि रुचिः स्रगां न तु प्राप्ते कदाचन ।७-३५॥ धर्म, संपत्ति, सुख तथा कीर्तिकी एकमात्र ध्वजा उपलब्ध वस्तुमे सियोंकी रुचि कभी नहीं होती, पतिव्रता स्त्रियां हैं । इसी प्रकार अन्य जैन ग्रंथकाने किन्तु अप्राप्त वस्तुमे उनका अनुराग रहता है। महिला-महिमाका वर्णन किया है, किन्तु नारी जाति-मुलभ पुरुषवर्ग उतनी जल्दी श्रन्यके मनोभावोंको चेष्टानोंसे दोनीका वर्णन करनेमे ग्रंथकारने किसी प्रकार कमी नहीं नही मिनी नहीं पहिचान पाता, जितने शीघ्र स्त्री समझ लेती है। निमर्गादिङ्गितज्ञानमगनास हि जायते । ७-४४। स्त्रियोमें ईप्योकी प्रचुरताको देखकर श्राचार्य लिखते हैं- स्वभावसे अभिप्रायोको व्यक्त करने वाली शरीरादि ईर्ष्या स्त्री-ममुद्भवा' सम्बन्धी चेष्टाओंका परिज्ञान स्त्रियों में पाया जाता है। ईर्ष्याकी उत्पत्ति स्त्रीसे हुई। स्त्रियों के सम्बन्धमें शेक्सपियरने भी लिखा हैस्त्रियोंकी माया कषायके विषयमें कहते है कि Frailty thy name is wonian (Hamlet) मायामयी हि नारीणां मनोबत्तिनमर्गतः ॥७-४ा 'चंचलता तेरा नाम ही तो स्त्री है!' 'स्वभावमे स्त्रियों की मनोवृत्ति मायापर्ण होती है।' स्त्रियों में ममताका भाव अधिक मात्रामे पाया जाता है। प्रतारणा विधी त्रीणां बह द्वारा हि दुर्मतिः ७-४५॥ अपनी संततिके लिए वे अपने प्राणोंकी भी चिन्ता नहीं बंचना काने में स्त्रियोंको दुबुद्वि अनेक द्वार वाली होती है। करती। मुनिगज श्रीमान नंग ने बताया है कि हरिणी नाग महिला अपने शिशुकी रक्षाके लिए सिंह तकका मुकाबला करनेका - अति साहम कर लेती है। इस कारण थोडे शब्दों में But knowlerige to their ryes her . महाकवि वादीभसिंह वर्णन करते हैं किample page Rich with the spoils of time dil meer roll: chill penury x मृनानार शास्त्र नथा नुस्मृतिम भी इस प्रकार के भाव repressed their noble rage and froze व्यक्त किए गए हैं। the general current of the soul. अर्धासननिदिष्ट यम अभाषिष्ट च भूभुनः ॥१-२२ Greys Elegy * देखो भक्तामरस्तोत्र श्लोक ५
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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