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किरण १-२
चूड़ामणि और उसकी सुकियाँ
जिसके प्राणों के वे प्यासे थे, उसके ही पास उन्होंने भेट भेजकर बाह्य रूपसे सम्मानका भाव प्रदर्शित किया था।' मुद्राराक्षसमें राजनीतिकी विचित्रताका इन शब्दोंमे वर्णन किया गया है
मुह दयोदा मुरधिगमाभावगहना मुह मंत्री मुहरतिकृशा कार्यशतः । मुहश्यामुपापितले
यो चित्राकारा नियतिरिव नी तिर्नयविदः ।।५-३।। अर्थात कमी उसका स्पस्ट प्रतीत होता है, कभी वह गहन हो जाती है और उसका ज्ञान नहीं हो पाता, प्रयोअन कभी संयुक्त होती है और कभी न सूक्ष्म हो जाती है, कभी तो उसका बीज ही विनष्ट प्रतीत होता है और कभी वह बहुत फलवाली हा जाती है। यो ! नीतिजकी नीति के सहरा विचित्र आकार वाली होती है ।
कोष के कारण नरेशोंका विवेक-चक्षु श्रंधा बन जाता हैं, इस कारण वे अपने विद्वेदीका यथाशक्ति नाश करते हुए, उनमे सम्बन्ध रखने वाले व्यक्तियोंका भी संहार करनेसे नही चूका करते । महाकवि वादीभसिंहने जीवंधर कुमारको इस दुर्बलतासे दूर बताया है । काष्ठांगार जैसे पापीका संहार करने के श्रनंतर महाराज जीवंधरने काष्टांगार के कुटुम्बीनी के प्रति शनिक भी निरसा वा नृशंसनाका निष्ठुरता बर्ताव नही किया, प्रत्युत श्रपनी उदारताका परिचय देते हुए उनने काष्टांगारकी पत्नी श्रादिकोंको सान्वनारूप वाक्य कहे। इस प्रसंग आचार्य एक सुंदर नीति कहते हैं न म्यानपि रुद् सताम् 'सजनीका कोच अयोग्य ठिकानेपर नहीं होता ( १०-५५) । सचमुचमे ऐसी ही विवेकयुक्त नीतिके कारण शासक अपनी प्रजाके हृदयका सच्चा अधिपति बन जाया करता है।
इस प्रसंगका जीवंधर चम्पू महाकवि हरिचन्द्र ने भी बड़ा हृदयग्राही वर्णन किया है जिसका आशय यह है-
“उस समय पीड़ाके कारण भागे हुए शत्रु समूहको करुणाके स्थान कुरुवंशके वीर जीवंधरकुमारने अभय घोषणा कराई और उनके दीन बंधुजनको बुलाकर उस प्रतिस्प्रापात् स्वाभिमातुलः ॥
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समयके लिए उचित संभाषण आदिके द्वारा उनको सान्वना प्रदानकी- इसके मंतर शोकके दुःखसे दोन अंतःपुरषासिनियोंको समीपमें बुला कर उस समय कुररी पक्षीके समान आक्रन्दन करती हुई काष्टांगारकी महारानी तथा उनके पुत्रोंको देखकर करगामी तरंगदुक सामना कला प्रवीण कुरबीर जीवंधर कुमारने अमृतके समान मधुर और अनेक प्रकारकी बातोंमे आश्वासन दिया ।" "
अनीतिपूर्ण आचरण करनेका परिणाम बुरा होता है, इस बार निश्रय इससे होता है कि राजधा चाला काष्टांगार जीवंधर महाराजके द्वारा मारा गया। इस पर श्राचार्य कहते हैं 'स्वयं नाशी हि नाशकः ( १०-५० ) -- धन्यका विनाश करनेपालेका स्वयं वाश होता है। शेक्सपियरने भी इसी भावको इस प्रकार प्रकट किया है।" "To have the engineer hoist with his own petard"
वादसिंह सूरिका कथन है कि इस पृथ्वीका शासन तथा उपभोग दुर्बल व्यक्तियों द्वारा नही हो सकता। यह वसुन्धरा वीरोंके द्वारा भोगने योग्य है " वीरेण हि मही भोज्या ” ( 1०-३०)।
अत्याचारी काष्टांगारने प्रजाके उत्पीडनमें कसर नहीं की थी। उसने जबरदस्त करके द्वारा प्रजाका खून चूस लिया था, इस कारण महाराज धरने राज्यका शा जीवंधरने शासनसूत्र हाथमें लेते ही एक दम १२ वर्षके लिए पृथ्वीको कररहित कर दिया था इसका कारण कविवर यह बताते हैंमैसोंके द्वारा मंदा किया गया पानी अदी निर्मल नहीं होता । २"
श्नदानी मंत्रासपलायमानं शान्चलवलोक्य, कुरुवीर : करुणाकरादाय तबा माहूय तत्कालोचित भाषणादिभिः परिणाम | ततः कुरुवीरः शोक संत्रासदीनमनःपरिकाजनं समीपमानीय नव कुसीमितकदन्ती काठागारी तलवा चावलोक्य कृपानरंगिनः परिमान्वनकलाप्रवीण: पी मधुभिर्विचित्र मिगिरा परंामि ममाश्याममानिन्ये । १० १२२१२३) द्वारा पथम हि सद्यः प्रमदति ॥। ११०-५७ ॥
२०करोत् भामी वर्षा महिषैः क्षुभितं तायं न