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अनेकान्त
[वर्ष ५
पोटलीसे भी भारी!
इनके यहाँ! भूग्य भी आज ऐसी लग रही है कि मुंह सूख रहा था! जीभ तालूम सटी जारही हिसाव नही । घीकी पूड़यां, 'माग, मीठा,.. थी ! उठते-बैठते चक्कर-से आ रहे थे ! बड़ी करुण दहा-बूरा' 'रबड़ी पार न जाने क्या-क्या खानेको हो रही थी वह !
मिलेगा-आज!'माचती-विचारती जागरा रास्ता सागरने कहा-मन दयासे भीगा हुआ था उन खत्म कर दरवाजे तक आई!.. का-'घर न चली जाओ, खाना मॉग लेना गुणपाल किवाड पकड कर दीन और धातर-स्वरमें की माँसे ! कष्ट भाग रही हो, बेकार ! बहुत भूम्बी बोलो-'मॉजी ! खाना मिल जाय ! संठजीने कहा हो न, क्यों ?'
है-घरम ले लेना ! बड़ी भूख लगी है, मॉ! प्राण जागराने कृतज्ञताम आँख भुकाते हुए कहा- निकल जारहे है ! सच कहती है-म.ट-सा दयावान् 'हॉ, आपने ठोक हो पहिचाना! गाँवस सवर हो चली मैंने नही देखा ! मुझ उदास देखा, कि कहने लगे
आई थी, अ.र आज दिन भर घूमते होगया- 'भूखी मत रहो, घरमे खाना मॉग लेना, जाओ !? सेठ जी! माल बिक जाता तो कवको घर पहुंच 'वानको अब ? इस वक्त ? रातमे... ?'गई होती?'
धनमतीने अचरज-भरे स्वर में पूछा-'रातमें नही
खाया करते बटी! भूख हो या प्याम ये तब जोर पकड़ती हैं, जब
जागरा सन्न रह गई ! कि मनमें ग्वानक लिये तय कर लिया जाता है, कि, वह हुआ, जिसकी कि ज़रा भी आशा नही थी! 'चलो अब खाएँ !' जागरा भूरदको भूल रही थी उसकी धारणा थी- 'पहुँची नही कि ग्वाना मिला!' उधरमे चित्त खीच रही थी, तब तमली थी! लेकिन कठोर-उपदेशन उमं, उसकी भूखको तिलमिला अब, जब खाना मिलनेकी आशा जाग उठी है, भूख दिया-कदम। उमे दम नहीं लेने दे रही!
वह बोली-भव जो लग रही है अब, मर जो वन बिक चुके हैं, पर उन्हीं पैसोसे अब कुछ
रही है इस वक्त ! दिन मुझे अब आयेगा ही, इसे कान खरीदना जो बाकी रहा है ! मोचने लगी-सेटजीने
जानता है माँ ?' कह दिया है, खाना तो मिल ही जायेगा ! इधर, दिन में ही अपने काममे निपट ले तो ठीक रहेगा ! फिर
_ 'जोरकी भूख लग रही है, इसीसे ऐसा कह रही रात होगी। अगर कुल मौदा न खरीद मकी, तो
हो ! नही, रात-भर मे कोई भूखा मर थोड़ा सकता
है ! और मर भी जार, तो मरना तो है ही है न, सुबह बाजार खुलने तक ठहरना पड़ेगा । जानेको दोपहर हो जायगा ! थोड़ी देर भूखे रहने की ही बात
एक बार ? चाहे आज मरलो, चाहे कल ! और यों तो है ! जब दिन-भर होगया, तो घण्टे-भर में क्या
रातका खाना छोड़ने पुण्य जो होगा-अतीव ! मरी थोड़े जाती हैं ? निक्रिन्त होकर खानेमें स्वाद
वह जो किसी मुम्बी-घरमें पैदा कर देगा ! जहाँ ग्याने भी मिलेगा कुछ ! और तभी खाकर सो भी रहँगी
__ को बढ़िया भोजन, पहिनने को सुन्दर कपड़े और वही! फिर बाजार न आना पड़ेगा दवारा! थक भी जवर का कमी न होगा।' बहुत गई हूँ आज!'
_ 'माँजी ! ये धर्मकी बातें तो तुम्हीं ऊँची जाति ___ जागरा जब सेटजीके घर पहुँची, तब रात हो वालोंके लिए हैं, हम लोगोंमें तो इनकी चर्चा नक चुकी थी! दिये जल चुके थे, अँधियारी बढ़ती चली नहीं ! हम ठहरे महतर-लोग, नीच, भंगी ! तुम्हारा आ रही थी!
जूठन खाने वाले तुम्हारेसे धरम-करम हममें 'बड़े आदमी हैं, बड़ा अच्छा खाना बनता होगा कहाँ ?”