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________________ साहित्यपरिचय और समालोचन १जैनसाहित्य और इतिहास-लेखक, पं. भी दे दिया है। और कही कही संस्कृत-गाठोका भावार्थ नाथूगमजी प्रेमी, मालिक हिन्दी ग्रन्थग्नाकर कार्यालय, भी लगाया गया है। प्राक्कथनम बाबू जयभगवानजी वकील हीराबाग पो. गिरगाव, यम्बई । प्रकाशक, हेमचन्द मोदी, ने विवाह-विधिार भी प्रकाश डाला है। इस पुस्तक के मूल बम्बई । पृष्ठ संख्या स्व मिलाएर ६३५ । मूल्य सजिल्द पाटांका संशोधन परिसेवामन्दिरमे कगया गया गया है प्रनिका ३) रुपया। जिससे इसकी उपयोगिता बढ़ गई है; क्योकि यहुधा संस्कृत पं. नाथूरामजी मी जैनसमाजके साहित्य-मेवी के पाट अशुद्ध पाये जाते थे, परन्तु खेद है कि इस विषयका गण्यमान गिद्वान और खक है। श्रारमे जैनसमाज भली कोई स्पष्ट उल्लेख परतक मे नही किया गया। अस्तु, पुरतक भाति परिचित है। श्राप हिन्दी साहित्यके मुयोग्य सम्पादक अनेक दृष्टियोंमे उपयोगी है और समाजको इमसे लाभ और प्रकाशक है। श्रापकी हिन्दी ग्रन्धरत्नाकर सीरीम उठाना चाहिये। बहुत उपयोगी साहित्य प्रकाशित दृश्रा है। प्रस्तुन पुस्तक ३ भावना-विवेक-मूल लेखक, पं. चैनसुखदास श्रापके संशोधित तथा परिवर्तित लेग्यांका उत्तम संग्रह है। जैन न्यायती अनुवादक, पं. भंवरलाल जैन न्यायनीर्थ, दि. जनसमाजमें ऐसे गदेपरणात्मक माहित्य और इतिहास- जयपुर । प्रकाशक, पं. श्रीप्रकाश जैन न्याय-काव्यतीर्थ, सब धी लेग्य लिम्बने तथा उसके पठन-पाटनी ओर मन्त्री, सबंध ग्रन्थमाला, मनिदागेका रास्ता, जयपुर । पृष्ट अभिरुचि उत्पन्न वन्ने और जैनाचार्यों व उनके लुमप्राय संख्या २८०, मूल्य १) रुपया । प्रन्योको प्रयाश मे लानेका श्रेय श्रापको और मुख्तार श्री. प्रस्तुत पुस्तकमे ३०६ श्लोको द्वारा तीर्थवर प्रकृति के पं. जुगलीशोरजी सरसागको है । श्राप दाना ही बंधी कारर-भूत दर्शन विशुद्ध यादि पोडरकारए भावनाओं विद्वानोने जैनमादित्यकी अपूर्व सेवा की है और कर रहे हैं। वा विवेचन किया गया है । और अनुवादमे रनवा इम पुस्तकम ४६ निबन्धाका संग्रह है, जिन्हे प्रेमी नी स्पष्टीकरए भी कर दिया गया है जिमसे स्वाध्याग प्रेमियोको ने बड़े भागे परिश्रमसे तय्यार किया है । मायमे उपयोगी उनके स्वरूपादि मम्भ नेमे कोई कटिनाई नही दो मक्ती। परिशिष्ट भी लगा दिये हैं जिससे प्रस्तुन पुन्तककी उपयोगिता अच्छा होता यदि गलपुरतक हिंदी पद्रोमे ही लिस्ली जाती; अधिक बढ़ गई है, कागज़ छगई मफाई सभी ग्राम पंक क्योंकि लेखक महोदय हिन्दीके भी अच्छे हेखक और कवि है । पुस्तक के मभी मनतव्यों से पूर्णतया सात न होने हुए हैं। इमसे समाजकी शक्ति और समयकी बहुत कुछ बचत भी यह कहना ही होगा कि पुस्तक निहामके द्यिार्थिाके हती। अस्तु, पुस्तक उपयोगी, पटनीय और संग्राय है। लिये बड़े काम की चीज़ है । इसके लिये प्रेमीज.का जितना ४ महर्न-दर्पर -संहकर्ता और अनुवादक, भी अभिनन्दन किया जाय थेड़ा है । श्राशा है अाप अपने पं. नेमिचन्द जैन न्याय-ज्योतिपतीर्थ, श्राग । सम्पादक, शेष लेविका एकदूमरा संग्रह भी शघ्र प्रकाशित वरनेम पं.. भुजबली जैन शास्त्री, अध्यक्ष जैन मिद्धान्तभवन समर्थ होगे। नेवान्त के पाटकोसे निवेदन है कि गे इस भाग । पृष्ठ संख्या ६.|गल्य, पाठ थाना। पुस्तकको मगाकर अवश्य पढ़े। प्रस्तुन पुस्तकमे मुहृताद विषयक १२१ बातोपर २जैन विवाह विधि-संग्रहकर्ता और प्रमशक, प्रकाश डाला गया है। धार्मिक और लौकिक वायोमेसे ला. सुमेरचन्द जैन, अराइजनवीस, १९३२ छत्ता प्रतापसिह किसी भी कार्यके मुहूर्तको मालूम वरना हो तो इससे सहज देहली। पृष्ठ संख्या रुब मिलाकर ४० मृल्प दो पाना । ही मे मालूम किया जा मकता है। पुस्तक अपने ढंगकी अच्छी इस पुस्तक में युक्तमान्त और पंजायमे प्रचलित जैन तथा संग्रह करने योग्य है। हिन्द में ऐसी पुस्तककी जरूत विवाह पद्धतिया अच्छे दंगसे रंग्रह किया गया है। विवाह थी, जिसके लिये संग्रहकर्ता शास्त्रीजी धन्यवादके पात्र हैं। विधिमें काम थाने वाली सामग्रियो धादिका संक्षेपमे परिचय -परमानन्दजैन शारत्री
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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