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________________ अनेकान्त [वर्ष ५ तत्वार्थवृत्तिमें और अपराजितसरिने भगवती आराधनाकी किंग एडवर्ड कालेज, श्रमसबती। प्रकाशक, जैनपब्लीकेशन 'टीकामें उद्वत किया है। इसके सिवाय, 'परणुवीसं असणं,' सोसायटी, कारंजा। पृट संख्या ३३४, बड़ा साइज, मूल्य 'बाहिर सूईवग्गों' 'पल्लो सावरसूई' नामकी गाथाएं जम्बू. सजिल्द प्रतिका ६) रुपया। दीपपण्णत्तीमें, १०, ८१, ११, १३६, १३, ४३ नम्बपर प्रस्तुत ग्रंथमें मुनि कनकामरने करकंड राजाके चरित्रका पाई जाती है। मथि अणंताजीवा,' एयणिगोदसरीरे' अच्छा चित्रण किया है। ग्रन्थका कथा भाग बड़ा ही रोचक सोनों गाया मालाचार और प्राकत पंचसंग्रहमे उप- है और कविने उसे निबद्ध करने में सफलता भी प्राप्त की है लब्ध होती हैं। तथा 'तिरिणसया छत्तीसा' और 'लोया- ग्रंथको एक बार शुरु करके फिर उसे छोड़नेको जी नहीं यासपदेसे' नामकी गाथाएँ पूज्यपादकी तत्त्वार्थवृत्तिमै उद्धृत चाहता । सम्पादक महोदयने ग्रंथको सर्वाङ्ग सुन्दर बनानेका हैं। इनका उद्धरण भी दे दिया जाता तो अच्छा होता। प्रयत्न किया है और वे इसमें बहुत कुछ सफल भी हुए हैं। प्रस्तु, इन सब ऋटियों के होते हुएभी ग्रन्थका यह भाग पिछले अंग्रेजीमे ग्रंथका नुवाद भी दे दिया है जिससे प्रेजीके भागों के समान उपयोगी और संग्रहणीय बना है जिसके जानकार विद्वान भी इस ग्रंथसे लाभ उठा सकते हैं। लिये विद्वान सम्पादक धन्यवादके पात्र हैं। प्रस्तावना बड़ी ही खोजपूर्ण और परिश्रमसे लिखी गई है (२) महावीरवाणी-सम्पादक, पं. वेचरदास दोशी, उसमें ग्रंथके प्रतिपाद्य विषयका संचिप्त परिचय भी करा प्रकाशक, सस्तामाहित्यमंडल, नई दिल्ली। पृष्ठ संख्या, दिया गया है। तेरापुरकी गुफाओंके निर्मायादि सम्बन्धमें २०६ । मूल्य प्रजिलद प्रतिका) रु. सजिल्दका)ह । पर्याप्त परिश्रमद्वारा अन्वेषण किया गया है। और उनके चित्रों को भी साथमें दे दिया है जिससे तेरापुरकी गुफामोंका प्रस्तुत पुस्तक एक संग्रहग्रंथ है जिसमे श्वेताम्बरीय साक्षात परिचय भी पाठकोंको मिल जाता है। इसके सिवाय पागम ग्रन्यों परसे चुने हुए धर्म-सम्बन्धी ३४५ गाथा-सूत्रो का संकलन किया गया है। संकलन बहुत अच्छे ढंगसे टिप्पणिया भौगोलिक नामोंकी सूची, नोट्स और शब्दकोष के लगा देनेसे ग्रंथकी उपयोगिता और भी अधिक बढ़ गई हमा है। और उसे शांतिलाल बनमाली सेठ न्यायतीर्थ श्रध्यापक जैनगुरुकुल, व्याधरने किया है। सूत्रोंको एक पेज है। इस दिशामें प्रोफेसर साहबका प्रयत्न अभिनन्दनीय है। पर रखकर वगलके दूसरे पेजपर उसका हिन्दी अनुवाद ग्रन्थ पठनीय तथा संग्रह करनेके योग्य है। मुनि अमरचन्द्रकृत दिया गया है। संकलित सूत्रोंको (४) विभक्ति-संवाद-लेखक, उपाध्याय मुनि श्री अहिंसावि २५ विषयों में बांटा गया है। ग्रंथ सर्वसाधारणको श्रामाराम । प्रकाशक, ला. सीताराम जैन, प्रो. फर्म ला. भगवान महावीरकी वाणीका रसास्वादन करानेके लिये मल्लीमल संतलाल जैन लुधियाना। मूल्य, सदुपयोग। प्रस्तुत किया गया है। और इसमें सम्पादक महोदय बहुत १. पृष्ठकी यह पुस्तिका स्थानकवासी उपाध्याय मुनि श्री प्रान्मारामजीने लिखी है जो भागम-सूत्रोंके विशिष्ट कुछ सफल हुए जान पड़ते हैं। ग्रन्थके साथ में डा. भगवानदासकी लिखी हुई उपयोगी प्रस्तावना है और इस अभ्यासी हैं। आपने पागम ग्रन्थोंपरसे प्रथमा द्वितियादि तरह इस ग्रंथको सर्वोपयोगी बनाया गया है। इस ग्रंथमे विभक्तियोंका जो विस्तृत परिचय मनोरंजक संवादके रूपमे एक टि सबसे अधिक खटकती है वह यह कि संकलित लिखा है। और टिप्पणियोंमें दिये गए शाकटायनीय व्यासूत्रों के नीचे उन पागम ग्रन्धोंका कोई हवाला नहीं दिया करणके सूत्रोंकी हेमव्याकरण और पाणिनीय व्याकरणके गया है जिनपरसे इन्हें उद्धृत किया गया है। यदि यह साथ-साय जो तुलना परिशिष्टके रूपमें २८ पृष्टोंमें दी है। कर दिया जाता तो विद्वानों के लिये और भी उपयोगी उससे इस पुस्तककी उपयोगिता अधिक बढ़ गई है। होता। अगले संस्करण में इस मोर जरूर ध्यान दिया जाना उपध्यायजीका यह प्रयत्न अभिनन्दनीय हैं। व्याकरणके चाहिये। जिज्ञासुओंको उपाध्यायजीकी इस पुस्तकको ऊपरके निर्दिष्ट (३) करकंडचरियउ-मूललेखक. मुनिकनकामर । पतेपर तीन पैसेका पोज भेजकर मंगाकर अवश्य पढ़ना सम्पादक, प्रो. हीरानाखजी जैन एम. ए., संस्कृताध्यापक, चाहिये। ~परमानन्द जैत शास्त्री
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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