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साहित्य-परिचय और समालोचन
(१) पटखण्डागम-(धवलाटीका और उसके हिन्दी लिये एकमे एक तुलनात्मक तरीकेका विधान किया है वह अनुवाद सहित) प्रथमखण्ड जीवट्ठाणका क्षेत्र-स्पर्शन- "One-to-01 Come-pondence"-अनन्ताकालानुगम नामक चतुर्थ अंश, मूल लेखक, भगवान पुष्प- स्मक मूलतम्बों-"Infinite cludinals"-के दन्त भूनबलि । सम्पादक, प्रो. हीरालाल जैन एम. ए. अध्ययन करने के लिये बहुत ही लाभदायक साबित हुश्रा संस्कृमाध्यापक किंगएडवर्ड कालेज अमरावती। प्रकाशक, है। इस विधानको सबसे पहले मालूम करने और प्रयोग श्रीमन्त सेठ लक्ष्मीचन्द सिताबराव जैन साहिन्योहारक फण्ड करनेका श्रेय जैनाचार्योंको है।" डाक्टर माहबका यह निबन्ध कार्यालय, अमरावती। बड़ा साइज पृष्ठसंख्या सब मिला बड़ा ही महवपूर्ण है और वह भारतके प्राचीन गणितके कर ६२८ । मूल्य पजिल्द प्रतिका १०) शास्त्राकारका १२)रु०। सम्बन्धमें बहुत कुछ प्रकाश डालता है। इस निबन्धके
इस चतुर्थभागमें जीवस्थानके क्षेत्र-स्पर्शन और काल- हिन्दी अनुवादको अागेके खण्ड में लगा देनेकी जो सूचना रूप तीनों अनुयोगद्वारोंका कथन किया गया है। लोकादिकी सम्पादकजीने दी है उसमे हिन्दीके अभ्यासी सजन समु.
और तत्सम्बन्धी गणितभागको स्पष्ट करने के लिये चिन लाभ उठा सकेंगे । आशा है कि कोई अधिकारी २० चित्र दिये गए हैं जिनसे उस विषयका बहुत कुछ विद्वान भारतीय गणित-शास्त्रका जैनगणितके साथ खुलामा हो जाता है। लखनऊ विश्वविद्यालयके गणितके तुलनात्मक अध्ययनको लिये हुए ऐसी पुस्तकका निर्माण प्रोफेसर डा. ए. एन. सिंह डी. एस. सी. ने करनेकी कृपा करेंगे जिससे जैनसिद्धान्त-ग्रन्थोंकी गणित १२ पृष्टम धवलाके गणितके सम्बन्धमें एक विस्तृत निबंध सम्बन्धी उलझने दूर हो जाय । लिखा है जिसमें उन्होंने ५ वीं शताब्दीके श्रार्यभटियसे पूर्व प्रस्तावनामें, सिद्धान्तग्रन्थ और उनके अध्ययन के अधिकार' भारतीय गणितका धवलाके जैनसाहित्यपरसे दिग्दर्शन शीर्षक लेखको जो निबद्ध किया गया है वह ऐसे स्थायी कराया है और उसमें बतलाया है कि ईसासे भी पूर्व साहित्यके माथ कुछ अच्छ। मालूम नहीं होता । प्रस्तावनामें भारतके जैनाचार्योंने विश्वक्षेत्र प्रदेश, कालके समय और शंकासमाधानके पश्चात तीनों अनुयोगद्वारोंके विषयका प्रकृतिके अणु तथा जीवा'मायोंग संख्याको बुद्धिगम्य रीतिसे संक्षित परिचय करदिया है और नक्शा द्वारा उनके विषयको निर्धारित करनेके लिये उन्होंने संख्यात असंख्यात स्पष्ट भी कर दिया है । विस्तृत विषय-मूची लगी हुई हैं।
और अनंतकी धारणाओंको जन्म दिया और उन धारणाओ इस भागमें अर्थादिविषयक बहुतसी त्रुटियां पाई जाती को बहुत ही विस्तृत रूपमें पल्लवित किया था। आजकलके है जिनका सुधार होना श्रावश्यक है। ग्रंथके अन्त में ५ वैज्ञानिक कल्पनातीत संख्याओं को निश्चित करने के लिये परिशिष्ट भी लगाए गए हैं जिनसे उन खण्डकी उपयोगिता जिन तीन प्रकारके गणितके विधानोंका प्रयोग करते हैं . और भी अधिक बढ़ गई है। हां, अवतरण-गाथा-मृची १ परिसंख्यान Place-value motation,२ वर्गित नामके दूसरे परिशिष्टमें कुछ गाथाएं ऐसी भी हैं जिन्हें संवर्गित Law of indices (varga-samvarga) टिस्पणीमें सर्वार्थद्धिमें उद्धत बतलाया गया है. परन्तु वे मूल ३ अर्धद Logarithm (Ardha-ccheda) वही में किस ग्रन्थकी हैं इसे नहीं प्रकट किया गया । उदाहरणके प्रयोग विश्वकी बड़ी संख्याओंको निर्धारित करने के लिये लिये पंच संसारविषयक जो गाथाएँ धवलाके इस अंशमे जैनाचार्यों ने किए थे। धवलामें अनन्तका जो वर्गीकरण- पृष्ठ ३३३ पर उद्धृत की गई हैं वे कुन्दकुन्दाचार्यकी वारसद्वारा विवेचन दिया हुआ है वह बहुत ही सुन्दर और अणुवेक्वामें ज्यों की स्यों और कुछ थोडेसे पाठ-भेद तथा व्यापक है। इसके सिवाय, डाक्टर साहबने यह भी कहा शब्द परिवर्तनके साथ २५,२६,२७,२८ नम्बरोंपर उपलब्ध है कि-"धवलामें विश्व तत्वोंकी संख्या निर्धारित करनेके होती है। इन गाथाओंको प्राचार्य पूज्यपादने अपनी