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________________ किरण १] गांधी-अभिनन्दन उन्होंने कई ग्रंथ जयसिंहदेवसे पहले भोजदेवके ग्रंथकर्ता भिन्न भिन्न हैं, दोनोंको एक समझना भ्रम समयमें भी बनाये हैं और उनमें अपने लिये है। ऐसा मालूम होता है कि जयपुरके लिपिकर्त्ताने लगभग यही विशेषण दिये हैं। पहले प्रभाचन्द्र के टिप्पणकी नकल की होगी और ___ इन सब बातोंसे स्पष्ट हो गया है कि ये दोनों तब उसकी यह धारणा बन गई होगी कि टिप्पणके xजैसे प्रमेयकमलमार्तण्डके अन्तमें-"श्रीभोजदेव कर्ता प्रभाचंद्र हैं और उसके बाद जब उससे श्रीचंद्र राज्ये श्रीमद्धारानिवासिना परापरपरमेष्ठिपदप्रणा- के टिप्पणकी भी नकल कराई होगी तब उसने उसी मार्जितामलपुण्यनिराकृतनिखिलमलकलंकेन श्री- धारणाके अनुसार श्रीचन्द्रको ग़लत समझकर मत्प्रभाचंद्रपंडितेन निखिलप्रमाणप्रमेयस्वरूपोद्योत- 'प्रभाचंद्राचार्यविरचितं' लिख दिया होगा। परीक्षामुखपदमिदं विवृतमिति । बम्बई, १४-११-४० गाँधी-अभिनन्दन भारतकी बलिवेदी पर, निज स्वार्थोंकी बलि देकर । स्वातंत्र्य-प्रेम-मतवाला, वाणीमें समता भरकर । ले साम्यवादका झण्डा, जगमें परिवर्तन लाकर । भारतका लाल निराला, बलिदानोंका बल पाकर । सोतेसे विश्व-हृदयमें, जागृतिका गीत सुना कर । दीनों-हीनों-निबलोंको, पथभृष्टोंको अपना कर। ले विश्व-प्रेमकी वीणा, __गा सत्य-अहिंसा-गायन । जगको आदर्श दिखाने, पाया गाँधी मनभावन । वैभव-विलाससे निस्पृह, सादा जीवन अपना कर । सच्चा सेवक दुनियाका, है आया जगतीतल पर । चिर-पराधीनता-पीड़ित, भारत माँका सुन क्रन्दन । स्वाधीन उसे करनेको, आया गांधी, अभिनन्दन । पं० रविचन्द्र जैन 'शशि'
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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