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अनेकान्त
[वर्ष ४
मास्टर माहब उसका हाथ मसलन लगे, ताकि उसमें के वक्त आज उन्हें उदयाचल से निकलते ही श्मकुछ गरमी आजाय, परन्तु यह सब व्यर्थ था । उसकी शान भूमिको भयानकताका दृश्य देखना पड़ेगा। घड़ी आगई थी। अकलचन्द सेठ अन्दर आय, शायद वे ही सुनहरी किरणें उस भयानक भूमिको उनका मुंह सूखा हुआ था। रमेशकी सांस चढ़ी और भी ज्यादा भयानक कर देव। हुई देखकर तो उनकी हड़ी हड्डी पानी होगई, वे बहुत चिता जल रही थी। अकलचंद सेठ रुदन कर ही अधीर थे । मास्टर साहबने कहा, "संठजी ! अब रहे थे । लोग बैठे बातें कर रहे थे। कोई कहता था
आपको बहुत दुःख होरहा है, लेकिन अब काम "लड़का होशियार, तन्दुरुस्त था, पर न जाने उस बिगड़ गया है। अपने हाथोंसे अपनेही पैगेंमें एकाकी क्या होगया ।" दूसरा कहना था-"अजी कुल्हाड़ी मारी है, आपने ! लेकिन उस समय आप लड़की ही बड़ी चुडैल है. उसीने इस भोले-भाले अपनी धुनमें थे। तुम्हें दादा और परदादा बननेकी लड़केका सर्वनाश किया।"एक महाशय कह रहे थेइमछाने अपने इकलौते पुत्रसे हाथ धुलवा दिये ! वह लड़कीने शादी करके घर आय उसी दिनसे अपना अब संसारमें नहीं रह सकता, उसका अन्तिम समय पैर बाहर छोड़ रखा था, और इसी कारण लड़का श्रा पहुंचा है !!" सेठकी छानी बैठ गई !' चिन्तित था, दिन ब दिन कमजोर हो रहा था।"
"हाय । यह क्या कह रहे हो? क्या मेग बेटा इतनमें एक आदमी गाँवकी आरसे भागता हुश्रा अब...न...ही...बच...स...क...ता!" यह कहने आया । मब उसकी ओर देखने लगे। वह नजदीक कहते उनकी आँखें भर आई। वे चारपाईक नजदीक आकर कहने लगा, "लीलाका कुछ पता नहीं है।
आये । रमेशका मुह खुला था, उसका अन्तिम साँस अभी तक उसका चूड़ा भी नहीं फोड़ा गया । न निकल गया था। देखते ही उनकी आशाएँ हवा मालूम वह कहाँ भाग गई !” बस फिर क्या था। होगई, उनका सिर चकगने लगा। "हाय !" कहते पहले ही उसको बात चली हुई थी, अब तो और भी हुए वे धड़ामसे पृथ्वीपर गिर पड़े ! मास्टर साहब भी बढ़ गई । हजारों गालियाँ उसके नामपर बरसने लगी. बहुत दुःखित हुए, पर सब व्यथे था।
न जाने कितने विशेषण-चुडैल, हरामजादी, कुलटा, ___ * *
* कुलक्षिणी, वगैरह उसके नामपर लगाये जाने लगे! सुबहके छः बजे हैं, सूर्य भगवान अपनी सुन- अन्तिम क्रिया करके गांवमें लोटे, इधर उधर हरी किरणोंको पहाड़ के पीछे छिपाए हुए हैं, वे कुछ खूब आदमी दौड़ाये गए, पुलिसको भी खबर दीगई किरणें आकाशमें बादलोंकी तरफ छोड़ रहे थे, पर पर लीलाका कहीं पता न था। शामको उठामणे पे भूतलपर दृष्टि डालनेके पहले वे कुछ मोच रहे थे। लोग उसके नामपर चर्चा चला रहे थे। सब उसके मानों, उन्हें यह दुःस्व था कि किसी दिन उन्होंने बारेमें बुरी आशंकाएँ करते थे। - अस्ताचलको जाते वक्त अपनी सुनहरी किरणोंसे पर भाखिर वह गई भी तो कहां गई ? जिस रमेशकी इन्द्र की-सी शोभाको बढ़ानेमें आनन्द * * * * प्रकट किया था, उमी रमेशके शवकी अन्तिम क्रिया दूसरे दिन चरवाहा गांवमें खबर लाया कि उसने