SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण १] विवाह का उद्देश्य पहले थी । "यार ! तुम तो अब बहुत सूग्वते चले जारहे हो, खेलने भी कभी नहीं आते, ऐसी तुम्हें कौनसी चिन्ताने या घेग ? कुछ मैं भी तो समझ पाऊँ ।” मित्रने उत्सुकता से पूछा । नहीं था, वह प्रसन्नता भी नहीं थी जो कि महीनाभर गये । उसका मुँह पीला था, उसके गालोंमें खड्डे पड़ गये थे, शरीर हाड-पंजर ही रह गया था। खटियाके नजदीक जाकर बोले - " रमेश !” उसने चांखें खोलीं। मास्टर को देखते ही उसका गला भर आया, आंखें आंसुओं से भर गई । वह बोलने का प्रयत्न करने लगा । "कुछ नहीं मोहन, जरा दिल ही कम होगया है ।” “हाँ मैं समझ गया, शायद अपनी नव वधू से छुटकारा नहीं मिलता होगा, और तो हो ही क्या सकता है ?" मोहन बीच में ही बोल उठा । रमेश सटपटा गया, शरमके मारे कुछ बोल नहीं सका । * * * महीनाभर बाद रमेशका स्कूल खुला । उसकी क्लासके सभी लड़के वहाँ हाजिर थे, लेकिन रमेश ही नहीं दीख रहा था । मास्टर साहब ने पूछा - "मोहन, तुम्हारा मित्र रमेश आज स्कूल क्यों नहीं आया ? क्या उसे आज मिलने वाले पुरस्कारपर कोई खुशी नहीं है ?" "नहीं जनाब, वह बीमार है। उसके पिता उसे डिस्ट्रिक्ट बोर्ड अस्पतालमें इलाज कराने लेगये हैं । लेकिन उसकी स्थिति चिंताजनक है ।" मोहनने दुःख प्रकट करते हुए कहा । मास्टर साहब अवाक रह गये । उनके दर्जेका प्रथम आने वाला लड़का चिंताजनक स्थितिमें है, यह जानकर उनके होश उड़ गये। उसी रोज शाम को वे अस्पताल पहुँचे । डाक्टरने बतलाया कि उसे सूजाक होगया है, और टी० बी० ( Tuberculosis) ने काफी जोर पकड़ लिया है। "अब केवल ईश्वरपर ही भरोसा रक्खे बैठे हैं, उसकी नसें बहुत कमजोर होगई हैं। " आखिर में डाक्टरने कहा। मास्टर का मुंह सूख गया। वे रमेशके कमरे में मास्टरने उसे शान्त करते हुए कहा - " रमेश, तुमने भूल की !” 1 “हां गुरुजी !” रमेशको बोलने में बड़ी मुश्किल पड़ रही थी। फिर भी वह बोलने का साहस कर रहा था । "मैं अपने किये पापका फल भोग रहा हूं, यह इस जन्म में ही किया हुआ अपराध है। अब मैं नहीं बच सकता, मेरी आशाका ताँता टूट गया है ।" बोलते-बोलते उसका गला भर आया । मास्टरने उसको शान्त होने को कहा, लेकिन वह कह रहा था"गुरुजी मेरा यह संदेश, कृपया मेरे सहपाठियोंको कह दीजियेगा । मैं तो मर जाऊंगा । लेकिन वे इस की हुई भूल से पाठ लें, उन्हें ऐसा मौका न आवे। यह सब मेरी बचपनमें शादी हो जानेका परिणाम है। अब मेरी पत्नी सदाकेलिये विधवा हो जायेगी। उसकी इच्छा को कौन पूरी करेगा ? उसकी "सं'''ता'''न' की भूग्व'अब कैसे रमेशकी आंखों से आंसू टपकने लगे। उसे की याद आ गई जब कि उसकी पत्नी लीलाने उसके गले लिपट कर कहा था कि उसे संतानकी भूख सता रही है । वह और कुछ कहने का प्रयास कर रहा था, लेकिन मुंह खोलते ही पिचक जाता था । मास्टरने उसे धीरज देना चाहा। उन्होंने रमेशका हाथ अपने हाथमें लिया, वह एक दम ठंडा था । .....99 देखते ही देखते रमेशका सांस बढ़ने लगा । ..
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy