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________________ पचोंकी हाईकोर्ट नजदीकके जंगल में नालाबके पास एक लाश पड़ी एक उमड़ता हुआ फूल बीच ही में तोड़ डाला पाई है। उसके गले में एक रस्सी है और महाजन घर गया। की खीसी मालूम पड़ती है। जान पड़ता है उसने एक जवान बालाको जीवन असहा हो जानेके आत्महत्या ही करली है। भयसे और अपनी इच्छाओंकी पूर्ति न होने रूप __जाँच करने पर मालूम हया कि वह लीला ही घोर निराशासे संसार छोड़ देना पड़ा !! सेठजी अकलचन्दकी अक्ल अब ठिकाने आई, जबकि वे अपने इकलौते पुत्रसे हाथ धो बैठे थे। आत्महत्या ! और किसलिये यह महापाप ? मास्टर साहबको अब समझ पड़ा कि रमेशके पाठक खुद ही इसका निर्णय करलें। विवाहका उद्देश्य क्या था। थी। ===[ बच्चोंकी हाईकोर्ट ] = (१) बड़े भैया एक स्लेट-पेसिल लाये, चार टुकड़े बराबरके किए, चारों बच्चोंको देने लगे, चारों मचल पड़े, यह तो छोटी है, हम नहीं लेते! प्रयोग किया था वही यहाँ किया गया। सबके सब -हाँ, अब बनगई ! एक एक टुकड़ा सबने ले लिया। (४) हाईकोर्ट ? - "माँ" (२) पिताजी आये-अच्छा हम इन्हें बड़ी करदें। _ + + + + मुट्ठीमे दबाई, पीछे मुट्ठी खोली-लो, बड़ी बन गई ! जिस प्रकार ज्ञानीजनोंको 'स्याद्वाद' मान्य है सबके सब-नहीं बनी। उसी प्रकार बच्चों को 'मातृवाद' मान्य है। (३) हाई कोर्ट में मामला पेश हुआ। पिताजीने जो -दौलतराम मित्र
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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