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अनेकान्त
[वर्ष ४
वहाँ विवाहसे स्त्री-पुरुषोंके गृहस्थ जीवनकी घनिष्ठता मीठी-मीठी प्रेमवार्ता करने लगेगा। और स्त्रियोंका के उद्देश्यको कतई भुला दिया जाता है। विवाहका क्या होगा ? वे भी जहाँ और अच्छे या सुन्दर पुरुष उद्देश्य स्वच्छन्द प्रेम नहीं है किंतु कुछ और भी के सहवासमें आई कि झटसे उनके प्रेमपाशमें पड़ महान है, जिसपर आगेके परिच्छेदमें विचार किया जायेंगी। और ऐसा करें भी क्यों नहीं ? जब विवाहजायगा । जब तक इस उद्देश्यकी प्राप्ति नहीं होजाती सम्बंध ही न हो ता फिर स्त्री-पुरुष दोनोंके लिए प्रेम है, ऐसी किसी भी उच्छङ्कल पद्धतिको विवाहका रूप का बाजार सदाके लिये खुला हुआ ही है। नहीं दिया जासकता।
ऐसा स्वेच्छाचार यदि समाजमें चलने दिया जाय पाठक-पाठिकाओंके सामने मगठीके सुप्रसिद्ध तो सर्वत्र अनर्थ ही मच जाय । मतलब यह है कि लेखक श्री बामन मल्हार जोसीके विवाह-सम्बंधी जब तक विवाह संस्था है तभी तक समाजमें स्थिरता लेखका अंश नीचे दिया जाता है, जिसमें आधुनिक है-हरएक व्यवहार सरलतासे होता है। जो लेखक युवक-युवतियों के उच्छृङ्खल विचारोंकी अच्छी यह कहते हैं कि विवाह संस्थाकी जरूरत नहीं, उनका विवेचना कीगई है
खुद का व्यवहार कैसा होता है ? उनकी स्त्री यदि "विवाह संस्थापर प्रहार करने वाले लेखक दूसरे पुरुषसे प्रेम करे तो यह उन्हें पसंद होगा ? कहते हैं कि विवाह-सम्बंधके कारण आज समाजमें यदि नहीं, तो फिर यह कहनेसे क्या लाभ कि विवाह विषमता और कष्टमय स्थिति दिखाई पड़ती है। संस्थाकी काई जरूरत नहीं ?" फलतः विवाह क्या परन्तु प्रश्न यह है-क्या विवाहसम्बंध बंद कर है ? इसका एक मात्र उत्तर यही हो सकता है कि दिया जाय तो यह स्थिति नहीं रहेगी उससे तो उल्टे विवाह एक ऐसा धार्मिक और सामाजिक संस्कार है अनाचारकी और वृद्धि ही नहीं होगी लेकिन इस जो दो स्त्री-पुरुषोंको उनके सांसारिक जीवनके प्रत्येक बारेमें तो कोई विचार ही नहीं करता। हम पुस्तकालय पहलू और भागमें अभिन्न होकर चलानेकी शुरुआत में पढ़ने जाँय, या नाट्य सिनेमा देखने जॉय, तो प्रदान करता है। वहाँ स्त्री-पुरुष सभी मिलते हैं । अगर सम्बंधका विवाह का उद्देश्य अस्तित्व न हो तो पुस्तकालय और नाट्यगृहमें पाये जो लोग यह समझते हैं कि विवाहका उद्देश्य हुये अनेक पुरुष किसी न किसी स्त्रीकी ओर और वाहियात विलास राग-रंग और मौज है, वे बहुत अनेक स्त्रियाँ किसी न किसी पुरुषकी ओर प्रेमाकर्षण बड़ी गलती पर हैं और जो इसी प्रलोभनसे विवाह से प्रेरित होंगे, यह तय है, और इससे बहुत से जैसे महान् उत्तरदायित्व पूर्ण कार्यमें हाथ डाल बैठते व्यक्तियोंकी स्थिति कष्टमय होजानेकी सम्भावना है। है वे बहधा धोखा खाते हैं। विवाहके चन्दरोज बाद भला ऐसा कोई प्रमसम्बंध स्थायी या दृढ़ होसकता ही वे देखते हैं कि विवाहके पहले वे जिन सुख और है, जिसमें किसी प्रकारका प्रतिबन्ध न झे? ऐसे आनन्दोंकी कल्पना करते थे वे अकस्मात् हवा होकर प्रणयी युगल में से तो पुरुषका कोई अधिक सुन्दर उड़ गये । उस स्थितिमें उनको अपना अमूल्य जीवन स्त्री दिखाई पड़ी कि वह पहली स्त्रीको छोड़ नईसे बड़ा कष्टकर और दुखप्रद मालूम होने लगता है। वे