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________________ किरण १] विवाह और हमारा समाज दो स्त्री-पुरुषोंके भावो जीवनके कार्यक्रम, कर्तव्य, सम्बंधी इच्छा जमीनपर चलने वाले चौपाये जानवरों अनुष्ठान व आचरण को इस तरह एक दूसरेके और पासमानमें उड़ने वाले पक्षियोंमें भी पाई जाती जीवनसे बाँध देता है कि एकके अलग रहनेपर उनमें है, किंत उनके समाजमें एक संस्कार विशेष न हो से एकका भी कार्यक्रम, कर्त्तव्य, अनुष्ठान व पाच- मकनेके कारण विवाहकी स्थिति बिल्कुल अव्यवहार्य रण भली प्रकार सम्पन्न नहीं हो सकता। इसलिए है। यह माना जासकता है कि अगर प्राणियोंमें प्रणयविवाहकी व्याख्या करनेमें उसका साधारण और सम्बंधी भावना और इच्छाका कदाचित् उदय ही सरल स्वरूप यही स्थित होता है कि विवाह दो स्त्री- नहीं होता तो शायद विवाहकी पद्धति भी प्रचलित पुरुषोंके जीवनको बाँधने वाला एक पवित्र, धार्मिक नहीं होती, किंतु कोरी प्रणयसम्बंधी इच्छाको ही और सामाजिक बन्धन है, जो समाजमें अनिश्चित विवाहका रूप मान लेना सामाजिक-संगठनकी दृष्टि कालसे एक विशेष संस्कार के रूपमें चला आरहा है। में बिल्कुल असंगत है। पशु-पक्षियोंकी बात जाने ___ समाज-विज्ञानके कुछ आधुनिक विद्यार्थियोंका दीजिये । मनुष्यों में भी हम देग्यते हैं-प्रणयसम्बंधी कहना है कि विवाहके मूल में स्त्री और पुरुषोंकी इच्छा होजानेपर भी दो स्त्री पुरुषोंका जब तक एक केवल एक ही भावना काम करती है, जिसे वे अपने सामाजिक और धार्मिक सम्बंध स्थापित नहीं शब्दोंमें लैङ्गिक (Sexual ) भावना कहते हैं। होजाता तब तक वे विवाहका ध्येय प्राप्त करने में कभी इसलिए उसीके आधारपर विवाहकी स्थिति होनी सफल नहीं होसकते । जिस देश और समाजमें ऐसी चाहिये । उसे सामाजिक और धार्मिक बन्धनके साथ प्रथा का प्रचार है कि जहां प्रणयसम्बंधी इच्छाका • जकड़नेकी जरूरत नहीं । एक अंग्रेज प्रोफेसरके उदय हा वहां तत्क्षण ही दाम्पत्य-सम्बंधकी स्थिति मतमें भी विवाह हरएक प्राणीमें पाई जाने वाली भी कायम होगई, तो वह विवाह, विवाहके उद्देश्य एक इच्छापर ही स्थित है जिसे वे अंग्रेजीमें Erotic की सिद्धिमें कदाचित् ही सफल होसकेगा। इसलिए tendency कहते हैं । विद्वान् लोग हिन्दीमें इसका यह मानना ही पड़ेगा कि जिसे हम विवाह कहते हैं अनुवाद करेंगे-प्रणय-सम्बन्धी इच्छा । यह हरएक वह हमारे समाजमें प्रचलित सामाजिक और धार्मिक प्राणीको एक दूसरेके प्रति आकर्षित करती है और संस्कारसे ही परिपूर्ण होता है । केवल प्रणयउनमें सम्बंध स्थापित कराती है । यही सम्बंध सम्बंधी भावनाएँ दो आत्माओंका एकीकरण अवश्य विवाहका रूप होना चाहिये । उसमें धार्मिक और करा देती है कितु उसके स्थाई और आजीवन बने सामाजिक बंधनके पुटकी आवश्यकता नहीं है । इस रहने की गारण्टी नहीं कर सकती। जब तक उसके मतपर भारतीय समाजवेत्ता अपनी यह सम्मति साथ सामाजिक बन्धनका समन्वय न होगा, वह प्रकट करते हैं कि विवाहकी सत्तामें सेक्स सम्बंधी एकीकरण अस्थायी और ढीला ही रहेगा । विवाहके भावना और प्रणय सम्बंधी इच्छाका अस्तित्व उद्देश्यकी सिद्धि में तो वह शायद ही सफल हो । एक आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी है, किंतु विवाहकी बात और है, जहाँ प्रणय अथवा स्त्री पुरुषसम्बंधी प्रेम सम्पूर्ण स्थिति तन्मूलक ही नहीं होनी चाहिए । सेक्स के आकर्षणसे ही विवाहकी स्थिति मानली जाती है,
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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