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________________ किरण १] विवाह और हमारा समाज समझते हैं जैसे उनके जीवनकी सारभूत चीज़ कोई उद्देश्य समझने और निर्धारित करने चले उन्होंने यह चुराकर लेगया और उसके प्रभावमें वे निर्धन होगये। निश्चित किया कि विवाहका उद्देश्य सन्ततिक्रमको यह सारभूत चीज जो वास्तवमें सारभूत नहीं है और बराबर चलाते रहना है। श्राम लोग ऐसा ही समझते कुछ नहीं, बेसमझ दम्पतियोंमें पाये जानेवाला महज हैं और ऐसा समझना कुछ अंशोंमें ठीक भी है। वासनाका आकर्षण है। यह प्राकर्षण तांबेपर चढ़े मोटे तौर पर विचार करनेपर सर्वसाधारणके सामने हुए सोनेके मुलम्मेकी तरह कुछ दिन तो चमकता है यही उद्देश्य निश्रितसा होरहा है। सच तो यह है कि किन्तु ज्यों-ज्यों समय गुजरता है त्यों-त्यों वह खुली साधारण लोग इसके अतिरिक्त विवाहके उद्देश्यको डिबियामें पड़े हुए कपूरकी तरह उड़ने लगता है। सोचने और समझनेकी कोशिश भी नहीं करते । ऐसे स्त्री-पुरुष समझते हैं कि कुछ साधनोंकी कमी हम लोगोंमें अगर कभी विवाहका सवाल उठता है होजानेसे उनका यह आकर्षण ढीला पड़ गया, इस तो उसकी आवश्यकता यही कहकर बतलाई जाती लिए वे इसमें खिंचाव लानेकेलिए तरह-तरहके है कि पीछेसे कोई घर सँभालने वाला भी चाहिये । साधन जुटाते हैं और व्वर्थ समय, शक्ति और धनका अगर विवाह न किया जाय तो हमारे कुलका नाम व्यय करते हैं किंतु वे जितना ही सुखोपभोग और ही न रहे । 'अपुत्रस्य गतिर्नास्ति' आदि स्मृतिके आनन्द-विलासकी ओर जानेका प्रयत्न करते हैं उनके सूत्रोंसे भी लोगोंके दिलोंपर यह विश्वास जमा हुआ जीवनमें मृगतृष्णासे व्यथित और निराश प्राणियोंकी है कि जिसके सन्तान न हो उसका परलोक बिगड़ तरह उतनी ही एक मानसिक अन्तर्वेदना और जाता है। इस तरह एक अनिश्चित कालसे सर्वनिगशा बढ़ती हुई चली जाती है। इसलिए जो लोग साधारण सन्मुख यह कथन एक सत्यके रूपमें विवाह जैसी जिम्मेवारीमें हाथ डालें पहले यह समझलें चला पारहा है कि विवाहका उद्देश्य सन्ततिक्रमको कि विवाह क्यों किया जारहा है और वे किस नरेश्य बराबर चलाते रहना है और इसी उद्देश्यसं इस से प्रेरित होकर विवाह कर रहे हैं। अगर उनका कर्मकी आयोजना की गई है। उद्देश्य गग-रंग और मौज ही हो तो वे तुरन्त ही जिन विद्वान् लोगोंने विवाह और उसके उद्देश्य विवाहकी जिम्मेवारीसे दूर भाग खड़े हों और उसका पर गंभीर विचार किया वे इस परिणामपर पहुँचे कि नाम भी न लें । विश्वास रक्खें कि उनका गग-रंग सन्ततिक्रमको बनाये रखना विवाहका मुख्य उद्देश्य और भोग-विलास विवाह जैसे पवित्र कार्यमें कतई नहीं उसका एक फल है । जिस तरह पढ़ लिम्वकर निहित नहीं है। विवाह उनके गग-रंग और भांग- विद्वान होनेका उद्देश्य धन कमाना नही हो सकता, विलासको बहुत ही तिरस्कार और घृणाकी दृष्टिसे अलबत्ता यदि कोई विद्वान् अपनी विद्यासे भाजीदेख रहा है । अगर वे इसके सामने अपने इस विका चलानेका भी काम करता हो तो उसका फल निकृष्ट ध्येयको लेकर खड़े हुए तो कोई आश्चर्य नहीं जरूर हो सकता है, उसी तरह विवाहके बहुतसे फलों वह उनको अपनी प्रबल तेजस्वितासे भस्म कर बैठे। में सन्ततिका उत्पादन भी एक फल है। यह जरूर है जो लोग सामान्य बुद्धिको साथ लेकर विवाहका कि यह फल और सब फलोंसे जो विवाह करनेसे
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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