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________________ अनेकान्त ६६ आत्म प्रायश्चित्त करता है और हिंसा बन जाने निन्दा व अफसोस किया करता है । व्रती श्रावकके लिये आरम्भी, उद्योगी, विरोधी हिंसाकी इजाजत, अनुज्ञा, अनुमति, आदेश जैनाचार्योंने कहीं कभी नहीं दिया है। हिंसा हर हालत में हिंसा है— अहिंसा नहीं हो सकती । हिंसा में कषायभावों के कारण जिस प्रकार की तीव्रता या मंदता होगी उसके कारण से होने वाले कर्मबन्ध में भी उसी प्रकारकी तीव्रता या मंदता tri और फल भी उसका तद्रूप ही होगा। इसमें किसी की भी कोई रू- रियायत नहीं चल सकती । व्रती श्रावकके लिये हिंमा अनिवार्य भी नहीं है । महात्मा गांधीने तो मनुष्यमात्रके लिये यह स्पष्ट शब्दों और विशद युक्तियोंसे घोषित कर दिया है कि हिंसाप्रत बड़ी हद तक प्रत्येक नागरिक धारण कर सकता है - दैनिक सामाजिक व्यवहार में लासकता है। राष्ट्रीय स्वराज्य-प्राप्ति में और तत्पश्चात् राज्यप्रबन्धमें, नागरिक जीवन में, हिंसा से बचे रहना मुश्किल नहीं है । महात्माजी प्रश्न किया गया कि कांग्रेस- बाल - एटीयर-दलको भाले, तलवार, लाठी आदि शस्त्र चलाने की शिक्षा दी जाती और अभ्यास कराया जाता है, यह कहां तक ठीक है और इसका श्राशय क्या है ? उन्होंने जवाब में लिखा है कि - फ़ौज में भरती होने वाले सिपाही के लिये तो केवल शारीरिक मजबूतीकी परीक्षा की जाती है; औरतें, बुड़े, कच्चे, जवान और रोगी भरती नहीं किये जाते; लेकिन कांग्रेसकी अहिंसात्मक पलटन में तो मानसिक योग्यता की परीक्षा ही प्रधान है और औरतें, बुड्ढे, कच्चे जवान, लंगड़े, अन्धे और कोढ़ी भी भर्तीके लायक़ हो सकते हैं। कांग्रेसके अहिंसात्मक शान्त सैनिकको [ वर्ष ४ दूसरेके वध करनेकी लियाक़त नहीं चाहिये; उसमें अपने प्राण समर्पण की हिम्मत होने की जरूरत है । हमने देखा है कि दस-बारह वर्ष के बच्चे पूर्ण सत्याग्रह करने में सफल हुए हैं। कांग्रेस- चालण्टीयरको तलवार, भाले, लाठीकी जरूरत नहीं पड़ेगी। जनता की सेवापरिचर्या, चौकीदारी, दुर्जनको दुर्व्यवहार से रोकना और दुर्जनकं आक्रमणसे अपनी जान देकर भी सज्जनको बचाना उसका कर्तव्य होगा । कांग्रेस वालण्टीयरकी वर्दी भड़कीली न होगी बल्कि सादी और ग़रीबों कीसी रहेगी। कांग्रेस- वालण्टीयर प्राणीमात्र का मित्र होगा; वह किसीको शत्रु नहीं मानेगा; और जिसको लोग शत्रु समझें उसके वास्ते भी कांग्रेस वालरटीयरके हृदय में दयाभाव होगा । कांग्रेस- वालटीयरका यह अटल श्रद्धान है कि कोई मनुष्य स्वभावसे दुर्जन नहीं है और प्रत्येक मनुष्यको भले, बुरेमें विवेक करनेकी शक्ति है। शरीरका शक्तिमान रखनेके लिये वह हठयोग-व्यायामका प्रयोग करेगा । ऐसे वालटीयर में यह शक्ति होगी कि वह रात-दिन एक जगह जम कर पहरा देगा; गर्मी, सर्दी, वर्षा सह लेगा और बीमार नहीं पड़ेगा; खतरे की जगह निडर पहुँचेगा; आग बुझाने के लिये भाग पड़ेगा; सुनसान जंगलों और भयानक स्थानों में अकेला पहुँचेगा, मार-पीट, भूग्य प्यास, अन्य यातना सह सकेगा, लाठी चलाते हुये बलवाइयोंकी भीड़ में घुस पड़ेगा, चढ़ी हुई नदी और गहरे कुएँ में जनताको बचाने के लिये फाँद पड़ेगा, उसका शस्त्र और अस्त्र आत्मबल और परमात्म-विश्वास है । ती जैन श्रावक भी प्रायः ये ही लक्षण हैं जो ऊपर कहे गए हैं। हर ऐसा श्रावक अहिंसक, सत्यवक्ता, निर्लोभी, सरल स्वभावी, ब्रह्मचारी, निडर,
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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