SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 631
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५८६ अनेकान्त [वर्ष ४ श्वेताम्बर संप्रदायके ज्ञाताधर्मकथांगमें तीर्थकर- दर्शनविशुद्धि, विनयसंपन्नता, शील-प्रतानतिचार, प्रकृति के बंधके निम्न कारण बतलाय हैं अभीक्ष्णज्ञानोपयोग, संवेग,शक्तिअनुसारत्याग,शक्तिपरिहतमिदपवयणगुहथेरबहस्सुए तवस्सीसु । अनुसार तप, साधुसमाधि, वैयावृत्यकरण, अद्भक्ति, वच्छलया प एमि अभिक्खनाणोवोगे ॥१॥ भाचायभक्ति, बहुश्र नभक्ति, प्रवचनभक्ति, आवश्यदमणविणए प्रावस्सए अमीलम्बए निरहचारो। कापरिहाण, मार्गप्रभावना और प्रवचनवत्सलत्व, खणलवतवधियाए वैयावच्चे समाही य॥२॥ य तीर्थकरत्वके बन्धक कारण है। अपुश्वनाणगहणे सुयभत्ती पवयणे पहावणया। तत्त्वार्थाधिगमसूत्र में भी तत्त्वार्थसूत्र के अनुसार एएहिं कारणेहिं तिथयरतं बाइ जीवो ॥ ३॥ तीर्थकर प्रकृति के बन्धके कारण गिनाये हैं। केवल अहंद्वन्मलता, सिद्धवत्सलना, प्रवचनवत्मलता, साधुसमाधिक स्थानमें संघसमाधि और वैयावृत्य करण स्थानमे साधुवेयावृत्यकरण ये दो नाम भिन्न गुरुवत्मलना, स्थविग्वत्सलना, बहुभतवत्सलता, तपस्विवस्मलता, अभीक्ष्णज्ञानोपयोग, दर्शननिरति रूपसे स्वीकार किये गये हैं। परन्तु भाध्यम पवचनचारता, विनर्यानरतिचारता, आवश्यनिर्गमचारता, वत्सलताम श्रतधर, बाल, वृद्ध, तपस्वी, शेक्ष और शालनिर्गसचारता,व्रतनिरतिचारता, क्षणलवसमाधि, ग्लान मुनियो। भिन्न निर्देश किया है । यह ध्यान दन योग्य है, क्योंकि, इससे ऐसा मालूम होता है तपःममाधि, स्यागसमाधि, वैयावृत्यसमाधि, अपूर्वज्ञानप्रहण, भुनभक्ति और प्रवचनप्रभावना इमपकार कि भाष्यकार ऊपर कहे गये २० कारणांमें से जो इन कारणास जीव तीर्थकरत्यको प्राप्त करता है। कारण तत्त्वाथसूत्रकं १६ कारणोंमें छूट गये हैं उन का संग्रह करना चाहते हैं । यहां भाष्यकार पवचनका सत्यार्थसत्रमें तीर्थकरनामकमके बन्धके कारण प्रर्थ. अहवक शासनका अनुष्ठान करने वाल, कर निम्नप्रकार दिये हैं रहे हैं। इतने पर भी मिद्धवत्सलता और क्षणलवदर्शनविशुद्धिर्विनयसंपन्नता शीलवतेप्वमतीचारोऽभीषण- समाधि य दो कारण और छूट जाते हैं जिनके संग्रह ज्ञानोपयोगसंवेगो शक्तिस्स्यागतपसी साधुसमाधि यावृत्य- की सूचना मद्ध न गान की है। इसके लिये नन्होंने करणमईदाचार्यबहुश्रुतप्रवचन-भक्रिरावश्यकापरिहाणिर्मार्ग-प्र इति' शब्दका अथ 'श्रादि' किया है, जो भाष्यकारने भावना प्रवचमवत्सलत्वमिति तीर्थकरत्वस्य । ६, २४ नहीं किया। उपयुक्त चारों मान्यतामोंका कोष्ठक निम्नप्रकार है :नम्बर तत्त्वार्थसूत्र-मा० तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-मा० बंधसामित्तविचय-मा० ज्ञाताधर्मकथांग-मा० दर्शनविशुद्धि वही जो तत्वार्थसूत्रमें दर्शनविशुद्धना दर्शननिरतिचारता विनयसंपन्नता विनयसंपन्नता विनानगतिचाग्ता शीलतानतिचार शीलानर्गतचारता शीलनिगनिचारता निरतिचारता अभीषण ज्ञानोपयोग अभीक्ष्णज्ञानोपयोगयुक्तना अभीक्ष्णज्ञानोपयोग संवंग लब्धिसंयोगसंपन्नता शक्त्यनुसार त्याग साधुपासुकपरित्यागता त्यागसमाधि यथाशक्ति तप तपासमाधि साधुसमाधि मंघसमाधिकरण माधुममाधिमंधारणना x बयावृत्यकरण साधुओयावृत्यकरण साधुबेयाप्रत्ययुक्तना बेयावृस्यसमाधि
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy