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अनेकान्त
[ वर्ष ४
छोटे भाई 'शिवायन' महिन, योगिराज श्रीममंनभद्र श्रवणबल्गालके एक शिलालेख में भी, जो को उहंड नमस्कार करता हा उनके चरणों में गिर ाजस आठमौ वर्षसे भी अधिक पहलका लिग्या पड़ा । ममंतभद्रने, श्रीवर्धमान महावीरपर्यंत स्तुति कर हुआ है, समन्तभद्रकं 'भम्मक' रोगकी शान्ति, एक चुकनेपर, हाथ उठाकर दोनोंका आशीर्वाद दिया। दिव्यशक्तिके द्वाग उन्हें उदात्त पदकी प्राप्ति और इसके बाद धर्मका विस्तृत स्वरूप सनकर गजा यांगमामर्थ्य अथवा वचन-बलम उनके द्वारा 'चंद्रप्रभ' मंमार-देह-भागोंमें विरक्त होगया और उसने अपने (बिम्ब) की श्राकृष्टि आदि कितनी ही बातोंका उल्लेख पुत्र 'श्रीकंठ' को राज्य देकर 'शिवायन' महिन उन
पाया जाता है । यथामुनिमहागजके ममीप जिनदीक्षा धारण की । और
बंद्या भस्मकभस्ममात्कृतिपटुः पद्मावती देवता
दत्तादात्तपद-स्वमंत्रवचनव्याहूनचंद्रप्रभः । भी कितने ही लोगोंकी श्रद्रा इस माहात्म्यम पलट
आचार्यस्म ममन्तभद्रगणभृद्येनंह काले कलौ गई और वे अरणबनादिकके धारक होगय *। जैनं वम समन्तभद्रमभवद्भः समन्तान्मुहुः॥
इम पद्यमें यह बतलाया गया है कि जो अपने ____इम नरह ममनभद्र थोड़े ही दिनों में अपने
'भम्मक' गंगका भम्मसान करने में चतुर हैं. 'पद्मावती' 'भम्मक' गंगका भम्म करनेमें ममर्थ हुए, उनका
नामकी दिव्य शक्तिकं द्वाग जिन्हें उदात्त पदकी प्राप्ति आपत्काल समान हुआ, और देहक प्रकृनिम्थ होजाने
हुई, जिन्होंने अपने मंत्रवचनांस (बिम्बरूपमें ) पर उन्होंने फिग्मे जैनमुनिदीक्षा धारण कर ली।
'चंद्रप्रभ' को बुला लिया और जिनके द्वाग यह ---- - - - - - - - - - - - - * देग्यो 'गजावलिकथे' का वह मल पाठ, जिसे मिस्टर कल्याणकार्ग जैनमार्ग (धर्म) इम कलिकालमें मब लविस गइस माहवन अपनी Inscriptions nt प्रोग्मे भद्र रूप हुआ, वे गणनायक आचार्य ममंतभद्र Sravana belgola नामक पुस्तककी प्रस्तावना पुनः पुनः वन्दना किय जानक याग्य हैं। के प्रष्ठ ६२ पर उद्धत किया है । इम पाठका अनुवाद मके वर्णी नेमिमागरकी कृपाम प्राप्त हश्रा, जिसके
इम शिलालेखका पुगना नंबर ५४ तथा नया नं० लिये मैं उनका श्राभारी हूँ।
६७ है; इस 'मलिपंणप्रशम्ति' भी कहते हैं, और यह शक मम्वन १०५० का लिग्वा हुआ है।
"सुग्वकर वही है, जिसमे इच्छा घटे और तृप्ति “जो हमारं म्वाधीन है और विपत्निमें हममे बढ़े । जिममे इच्छा और अतृप्तता बढ़ती जाय वह जुदा न हो, वही आनन्द है-सच्चा सुग्व है।" सुखकर कभी नहीं हा मकना है।"
____ "अपनी इच्छाओंका मीमाबद्ध करनेमें सुग्वका "सुग्वाभिलाषा हानेपर उसी सुम्बकी कामना
खाजो, नकि उन्हें पूर्ण करनेमें।" चाहिये, जिसका कभी हाम न हो और जिममें दुःख
____ "उच्च आकांक्षाका नो कहीं अन्न ही नहीं है। की कालिमा न लगी हा,।"
आवश्यकताएँ जहाँ तक हो, मंक्षिप्त करलो । देखें फिर सुख कैसे नहीं पाता है।"
-विचारपुष्पं द्यान