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________________ किरण १] समन्तभद्रका मुनि-जीवन और आपत्काल संघको अभिवादन करके अब समंतभद्र एक वीर दिया। संपूर्ण भोजनकी समाप्ति को देखकर राजाका योद्धाकी तरह, कार्यसिद्धि के लिये, 'मणुवकहल्ली से बड़ा ही आश्चर्य हुा । अगले दिन उसनं और भी चल दिये। अधिक भक्तिकं साथ उत्तम भोजन भेंट किया; परंतु ___ राजावलिकथे' के अनुमार, समंतभद्र मणुवक पहले दिन प्रचुरपरिमाणमें तृप्तिपर्यंत भोजन कर हल्लीम चलकर 'कांची' पहुँचे और वहाँ 'शिवकोटि' र लेनक कारण जठराग्निक कुछ उपशांत हानेसे, उस गजाकं पाम, संभवतः उमकं 'भीमलिंग' नामक दिन एक चौथाई भोजन बच गया, और तीसरे दिन शिवालय में ही, जाकर उन्होंने उस आशीर्वाद दिया। आधा भाजन शेष रह गया। समंतभद्रने साधारणगजा उनकी भद्राकृति आदिको देखकर विम्मित - नया इस शंषान्नका देवप्रसाद बतलाया; परंतु राजाको हुआ और उसने उन्हें 'शिव' समझकर प्रणाम किया। उमस संतोष नहीं हुआ। चौथे दिन जब और भी धर्मकृत्योंका हाल पछे जानेपर गजान अपनी शिव अधिक परिमाणमे भोजन बच गया तब गजाका भक्ति, शिवाचार, मंदिनिर्माण और भीमलिंगक संदेह बढ़ गया और उसने पाँचवें दिन मन्दिरका, मंदिर में प्रतिदिन बारह खंडुग + परिमाण तंडुलान उस अवसर पर, अपनी सेनासं घिरवाकर दरवाजे विनियोग कग्नका हाल उनम निवेदन किया । इसपर . को ग्वाल डालनेकी आज्ञा दी। ममंतभद्रने, यह कहकर कि ' मैं तुम्हारं इम नैवद्यका दरवाजको खोलनके लिए बहुतमा कलकल शब्द शिवार्पण : काँगा.' उस भाजनके साथ मंदिर में होनेपर ममंतभद्रने उपमर्गका अनुभव किया और अपना आसन ग्रहण किया, और किवाड़ बंद करके। उपमर्गकी निवृत्तिपर्यंत समस्त आहार पानका त्याग मवका चले जानकी आज्ञा की। मब लोगोंक चले कर तथा शरीरसे बिल्कुल ही ममत्व छोड़कर, जानपर ममंतभद्रने शिवार्थ जठगग्निमें उम भोजन आपने बड़ी ही भक्तिक साथ एकाग्र चिनस श्रीवृपकी आहुतियाँ देनी आरम्भ की और पाहुनियाँ देत - भादि चतुर्विशनि नीर्थकरोंकी स्तुति * करना प्रारंभ देने म भोजनमेंम जब एक कण भी अवशिष्ट नहीं किया । स्तुति करते हुये, समन्तभद्रनं जब आटवें रहा तब आपन पूर्ण तृप्ति लाभ करकं. दरवाजा खोल तीर्थकर श्रीचन्द्रप्रभ स्वामीकी भलं प्रकार स्तुनि करके भीमलिंगकी ओर दृष्टि की, तो उन्हें उस स्थानपर + 'वंडग' कितने सन्का होता है, इस विषयमें वर्णी किमी दिव्य शक्तिक प्रतापस, चंद्रलांछनयुक्त अर्हत नामसागरजीने, पं० शांतिगजजी शास्त्री मैमूरक भगवानका एक जाज्वल्यमान सुवर्णमय विशाल बिम्ब पवाधारपर, यह सूचित किया है कि बेंगलोर प्रांतमें २०० मरका, मैसूर प्रांनमें १८० सेग्का, हेगडदेवन विभूनिहित, प्रकट होता हुआ दिखलाई दिया । काटमें ८० संरका और शिभागा डिस्ट्रिक्ट में ६० यह देखकर समंनभद्रन दरवाजा खोल दिया और सरका खंडुग प्रचलित है, और संरका परिमाण श्राप शंप तीर्थकगेकी स्तुति करनम तल्लीन होगय । मर्वत्र ८० नालेका है। मालूम नहीं उम ममय वाम दरवाजा खुलते ही इस महात्म्यको दंग्यकर शिव कांची में कितने मरका खंड्ग प्रचलिन था। संभवतः जाबरत ही आश्रयचकित हश्रा और अपने वह ४० मंग्स ना कम न रहा होगा। * शिवार्पण' में कितना ही गृढ अर्थ मंनिहित है। * इमी स्तुतिको 'स्वयंभृम्नात्र' कहते हैं।
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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