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________________ मृग-पक्षि-शास्त्र का सिद्धान्तम श्री . ना क्रीडा" लिटते हैं:- सन १९२७ में यह अनुवाद कालहम्तीम प्रकाशित जुग्राला नी ( Zoology ) अर्थात् 'जन्तु- हुश्रा । खेद है संस्कृतका मूलमन्थ हम दग्बनका नही विज्ञान' की ननि पाश्चात्य देशोंने १८ अठारहवीं मिला, अंग्रेजी अनुवाद ही उसका परिचय यहाँ शताब्दीस हुई, परन्तु भारतमें प्राचीन कालमं दिया जारहा है। इसका पता लगना है । आयुर्वेद के सम्बन्धमे पशुः जिनपुर के थाई दात्रिय राजा मौददेव थे । एक पक्षियांवी शरीर-रचना, उनके स्वभाव, उनके गंगों बार यह घाइपर चढ़कर मय साज सामान सहित नथा उकालिकित्मापर बहुत कुछ लिग्ना गया है। जंगम शिकारक लिय गए । वहाँ पहुँच कर उन्होंने अनिगम ‘गवायुर्वेद', 'गजाचकित्मा', 'अश्व- अपने आदर्दा मयांका ढोल पीटकर पशुश्रीको बाहर चित्मिा ' आदि प्रकरण श्राय है । श्री पालकाय्य निकालने के लिये कहा। उछल कूदन जब पशु विर्गचत 'हस्ति श्रायुर्वेद' भी एक प्राचीन ग्रन्थ है। झाड़ियोंम, पन्दगओंसे बाहर निकल आये तब भी नाल कगठन 'मातङ्गलीला', में हाथियोंके लक्षण उनकी सुन्दग्ना दबकर वे मुग्ध रह गये । व्याघ्र, बड़े अन्छ ढगमे बतलाये गए है । श्री जयदेवनं चीना, मृग, भाल , जंगली भैंस, शुक, हंस श्रादिका 'अश्ववद्यकम' लिग्वा है । कृमाचल (कुमाऊ) के दबकर वे विचार करने लगे कि य'द इन मयका गजा श्रीमद्रदेवका एक ग्रन्थ 'श्यनिकशास्त्र' है। वध कर डाला जायेगा तो वनांकी शोभा ही नष्ट हो इमम श्यैनिक' अर्थान शिकग या बाज द्वारा शिकार जायगी और मृग-पक्षि-शास्त्र ही लोप हो जायगा। करकी विधि बतलाई गई है । उनी प्रसंगी श्यनों दम दिन दरबाग्मं आकर उन्होंने मब पण्डितों का पूरा विवरण दिया गया है। नथा विद्वानोंको बुलाया और पशुपक्षियों का वर्णन परन्तु इम विपयपर ईश्वी मन की १३ वीं करने के लिये कहा । तब उनके मंत्री श्री नागचन्दने शताब्दीमे लिखी हुई एक बड़ी सुन्दर पुस्तक है। प्रमिद्ध व वि श्रीहमदेवका राजाम परिचय कराया जिसका नाम 'मृग-पक्षि शास्त्र' है । इमक लेखक है और एक ग्रन्थकी रचनाका भार उन्हें मौंपा। एक जैनकवि श्री हंमदेव । इस पुस्तक में १७०० इस पुस्तकमें प्रधान पशुपतियांक ३६ वर्ग किय अनुप्रपश्नाक है। इसकी हस्तलिखित प्रतिका पना गप है, जिनमें उनके रूप, रंग प्रकार पहल-पहल मदगमक एपीफिस्ट' श्री विजयराघ- किशोगवस्था, मम्भाग-ममय, गर्भकाल, भोजन, वाचायका लगा, जिन्होंने उम ट्रावन्कार के गजाको आयु नथा अन्य विशेषताओंका वर्णन किया गया गेंट किया । उमकी एक प्रतिलिपिको डाक्टर के०मी० है। विद्वान् लग्वक मनानुमार सत्त्वगुग्ण मनुष्यों ही वुड अमर्गका ले गये । प्रसिद्ध जर्मन विद्वान् डाक्टर में पाया जाता है, पशुपक्षियोंमें रजोगुण नथा नमा ओटा श्रेडर, जो अदयापमं काम करते थे, इस जर्मन गुण ही अधिक पाया जाता है । इम भी उत्तम, तथा अंग्रेजी अनुवादक माथ प्रकाशिन करना चाहने मध्यम तथा अधम नीन भेद हैं। मिह, हाथी, घोड़ा, थे । परन्तु गत महायुद्ध में उनके नजरबन्द होजानस गाय, बैल, हम, माग्म, कोयल, कबूना श्रादि उत्तम यह काम पूरा न हो सका। अन्ततः देवनागरी लिपि गजस हैं । चीता, बकग, मृग, वाज आदिमें मध्यम में यह पुस्तक १९२५ के लगभग प्रकाशित हुई, जिस और भालू, भैंस, गैंडा आदिमें अधम है। इसी तरह का श्री सुन्दराचार्यजीने अंग्रेजी में अनुवाद किया। ऊँट, भेड़िया, कुत्ता, कुक्कुट (मुगो) आदि में उत्तम
SR No.538004
Book TitleAnekant 1942 Book 04 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1942
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size73 MB
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